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एन. के. सिंह का ब्लॉग: एनआईए को मजबूत करना जरूरी

By एनके सिंह | Updated: July 21, 2019 06:53 IST

आतंकवाद की प्रकृति, बदलते आयाम के मद्देनजर एनआईए को और शक्ति देना एक जरूरी कदम है. यह अलग बात है कि महज कानून बनाने से अगर दुनिया की इतनी बड़ी समस्या पर काबू हो सकता तो करीब 45 देश जो इस दंश को ङोल रहे हैं, कब से मुक्ति पा चुके होते.

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आतंकवाद की प्रकृति, बदलते आयाम के मद्देनजर एनआईए को और शक्ति देना एक जरूरी कदम है. यह अलग बात है कि महज कानून बनाने से अगर दुनिया की इतनी बड़ी समस्या पर काबू हो सकता तो करीब 45 देश जो इस दंश को ङोल रहे हैं, कब से मुक्ति पा चुके होते. पोटा और उसके पहले टाडा (आतंकवादी गतिविधि निरोधक कानून) भी यही कह कर खत्म किया गया था कि सजा की दर 5 फीसदी भी नहीं है. यानी यह कह कर कि पुलिस 95 प्रतिशत गलत लोगों को इन सख्त कानूनों के तहत फंसाती है. यह अवधारणा गलत थी.

दरअसल गलती पुलिस की नहीं, बल्कि अभियोजन की गुणवत्ता की थी. क्योंकि राज्यों की पुलिस एक ऐसे अपराध की, जिसका आयाम वैश्विक हो, जिसका जनक किसी शत्नु देश में बैठा हो और जो आतंकवाद के तरीके को लगातार बदल रहा हो, रोकने या जांच करने में सक्षम नहीं थी. आज जब साइबर इंटरनेट और फेसबुक मैसेंजर से सीरिया में बैठा आईएसआईएस केरल के युवकों को गुमराह कर रहा हो और इनडॉक्ट्रिनेशन (उनमें धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए) के लिए किसी धार्मिक स्थल का नहीं नेट का इस्तेमाल कर रहा हो, राज्य अभिकरण इस पर प्रभावी अंकुश नहीं लगा सकते, न ही अच्छी जांच कर अकाट्य साक्ष्य इकट्ठा कर सकते हैं.          

पुलवामा हमले के बाद यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान की ‘फौजी’ खुफिया एजेंसी आईएसआई का भारत में उपद्रव का यह पांचवां और शायद सबसे खतरनाक चरण है. पहला चरण 1980 के दशक में ‘पीटीपीएम’ यानी पाक-ट्रेंड-पाक-मिलिटेंट (पाकिस्तान में ही प्रशिक्षित पाकिस्तानी उग्रवादी) का था लेकिन जब भारत में वह घटना करता था और अगर पकड़ा जाता था तो पाकिस्तान की दुनिया में किरकिरी होती थी. लिहाजा नब्बे के दशक तक आते आते पीटीआईएम यानी पाक-ट्रेंड-इंडियन-मिलिटेंट (भारतीय आतंकवादी जिसकी ट्रेनिंग पाकिस्तान में हुई) का सिलसिला शुरू हुआ. लेकिन इसमें भी पाकिस्तान को तब दिक्कत होती थी जब पकड़े जाने पर वह यह कबूल करता था कि उसकी ट्रेनिंग किसने और पाकिस्तान के किस ट्रेनिंग कैंप या शहर में दी थी).

तीसरा चरण सन 2000 से ‘स्लीपर सेल्स’ और ‘मोड्यूल्स’ का था जिसमें तीन से पांच की संख्या में हर स्लीपर सेल में सदस्य होते थे और जो भारत के ही थे और उन्हें कभी-कभी अचानक किसी एक कार्य के लिए आदेश मिलता था. मसलन केरल के किसी सेल को आदेश होता था- उत्तर भारत के अमुक शहर में किसी धर्मस्थल के पास रात में कोई कटा जानवर रखने का ताकि सुबह उस धर्मस्थल के अनुयायियों में आक्रोश पैदा हो. इस सेल का काम बस इतना ही था. अगला स्लीपर सेल, जो हजारों किमी के सुदूर भाग से था, को आदेश होता था इस धार्मिक स्थल के बगल के मोहल्ले या आसपास के शहर में किसी समुदायविशेष के संभ्रांत व्यक्ति को गोली मार देना (और इसके लिए उसे सभी जानकारी पहले से मुहैया होती थी) या किसी धर्म के खिलाफ आग उगलने वाले मजमून की पर्चियां बांटना.

तीसरे सेल से उसी दिन किसी परंपरागत उपद्रव वाले मोहल्ले में हथियार की सप्लाई करना. जब अदालत में केस जाता था तो अलग-अलग शहरों में अलग-अलग जज मामले को देखते थे और अगर केरल का स्लीपर सेल पकड़ा भी गया तो जज को यह समझ में नहीं आता था कि केरल के किसी व्यक्ति ने मेरठ के किसी व्यक्ति को क्यों मारा. लिहाजा आतंक की घटनाओं में सजा की दर काफी गिर जाती थी. आरोप लगता था कि पुलिस सांप्रदायिक विद्वेष से गलत लोगों को फंसाती है. टाडा कानून खत्म करने के पीछे यही कारण था. चौथा चरण आईएसआई का था ‘‘होम ग्रोन टेररिज्म का यानी भारत में ही आतंकवादियों की पौध तैयार करना, उन्हें आर्थिक और हथियार की मदद देकर. अबकी उनके प्रशिक्षण की जगह भी पाकिस्तान न होकर नेपाल और बांग्लादेश कर दी गई. अगर आतंकी पकड़ा भी गया तो पाकिस्तान किसी आरोप से साफ बच जाता था.

इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रसार के कारण आतंकवाद आज वैश्विक आयाम ले चुका है. सीरिया में बैठा आईएसआईएस केरल के युवकों को प्रभावित कर रहा है तो दुबई में बैठा पाकिस्तानी आईएसआई का हैंडलर भारत सहित दुनिया के किसी भी कोने में धमाका करा सकता है. ऐसे में भारत की कम से कम एक एजेंसी को पूरी तरह सशक्त करना जरूरी बनता जा रहा है. संसद के दोनों सदनों में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) कानून में संशोधन पारित करने में लगभग सभी दलों की सहमति इस आसन्न संकट के प्रति राजनीतिक दलों की संवेदनशीलता दिखाती है. 

एक उदार लोकतंत्न में मौलिक अधिकारों को सख्ती से बाधित किए बिना इस नई समस्या से जूझना सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के लिए नई चुनौती होगी. भूलना न होगा कि 9/11 की घटना के बाद अमेरिकी सरकार ने होमलैंड सिक्योरिटी एक्ट बनाया जिसके तहत किसी भी नागरिक की निजता पुलिस चाहे तो भंग कर सकती है लेकिन किसी एक नागरिक ने भी चूं तक नहीं किया था. क्या भारत में हम ऐसा कर सकते हैं?

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