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देश में अपनी अंतिम सांसें गिनता नक्सलवाद 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 19, 2025 07:37 IST

दरअसल बहुत सारे नक्सली चाह कर भी सिर्फ इसलिए संगठन नहीं छोड़ पाते हैं क्योंकि ऐसा करने वाले को अन्य नक्सली मार डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते.

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छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश सीमा पर सुरक्षाबलों द्वारा कुख्यात नक्सली कमांडर हिडमा और उसकी पत्नी राजे सहित छह हार्डकोर नक्सलियों को मार गिराने के बाद अब नक्सलवाद देश के गृह मंत्री अमित शाह द्वारा तय की गई 31 मार्च 2026 की समय सीमा से भी पहले खत्म होता दिखाई दे रहा है. इसी साल मार्च में बीजापुर में जब 50 नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर आत्मसमर्पण किया था, तब अमित शाह ने उनके फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि सभी का पुनर्वास कर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा.

साथ ही उन्होंने सरकार की प्रतिबद्धता को  दोहराते हुए कहा था कि 31 मार्च 2026 के बाद नक्सलवाद देश में इतिहास बन जाएगा. उन्होंने कहा था, ‘पीएम मोदी की नीति स्पष्ट है कि जो भी नक्सली हथियार छोड़कर विकास का मार्ग अपनाएंगे, उनका पुनर्वास कर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा.’ सरकार के कड़े रुख और सुरक्षाबलों के कसते शिकंजे को देखते हुए नक्सलियों ने भी समझ लिया था कि अब समर्पण कर देने में ही भलाई है.

इसीलिए अभी पिछले महीने 14 अक्तूबर को ही करोड़ों रुपए के इनामी नक्सली मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति ने अपने कई साथियों के साथ गढ़चिरोली में पुलिस के सामने सरेंडर किया था. इसके बाद उनकी अपील पर  140 से ज्यादा नक्सलियों ने बीजापुर में सरेंडर किया था.

भूपति ने अपने सक्रिय साथियों से हथियार डालने और जनता के बीच काम करने के लिए मुख्यधारा में शामिल होने का आग्रह किया था, जिसके बाद बड़ी संख्या में नक्सली समर्पण करना चाह रहे थे. कहा तो यह भी जाता है कि हिडमा खुद भी सरेंडर करना चाहता था लेकिन बचे-खुचे नक्सली नेताओं द्वारा ‘गद्दार’ करार दिए जाने के डर से वह ऐसा नहीं कर पा रहा था.

नक्सल आंदोलन में गद्दार करार दिए जाने का मतलब होता है मौत का फरमान जारी होना. रुपेश और चंदना का हश्र हिडमा के सामने था, जो कभी नक्सली संगठन में ऊंचे पदों पर थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने हथियार छोड़ने का मन बनाया, संगठन ने उन्हें न सिर्फ गद्दार कहा, बल्कि उनकी हत्या तक कर दी.

दरअसल बहुत सारे नक्सली चाह कर भी सिर्फ इसलिए संगठन नहीं छोड़ पाते हैं क्योंकि ऐसा करने वाले को अन्य नक्सली मार डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते. लेकिन अब हिडमा के खात्मे ने निश्चित रूप से नक्सली संगठन का मोटे तौर पर खात्मा कर दिया है और अब तय है कि बचे-खुचे नक्सलियों ने भी अगर सरेंडर नहीं किया तो कुछ ही दिनों में उनका भी काम तमाम हो जाएगा.

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