National Human Rights Commission: राष्ट्रीय राजधानी में ऐसी खबरें जोरों पर हैं कि भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के पद से सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का अगला अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है. मोदी सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जून 2024 में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद से ही सरकार ने एनएचआरसी का शीर्ष पद खाली रखा हुआ था. यह पद खाली पड़े हुए लगभग छह महीने हो रहे हैं और इन अटकलों को बल मिल रहा है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ इसके लिए आदर्श व्यक्ति होंगे.
वर्तमान में, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद एनएचआरसी सदस्य विजया भारती सयानी अध्यक्ष का कार्यभार संभाल रही हैं. सयानी को 5 जून, 2024 को एनएचआरसी का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. खबरों की मानें तो भारत के नए प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस प्रतिष्ठित पद के लिए चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की है.
यह पहले से ही संभावना के दायरे में था कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद कोई महत्वपूर्ण भूमिका दी जा सकती है. सिफारिश कानून मंत्रालय को भेज दी गई है और चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. कानून के अनुसार, अध्यक्ष भारत के सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त या कार्यरत मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए.
पहले कानून में यह प्रावधान था कि एनएचआरसी का अध्यक्ष भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ही होगा. लेकिन इससे समस्या पैदा हो गई क्योंकि इस पद के लिए बहुत अधिक लोग उपलब्ध नहीं थे. दायरा बढ़ने के साथ अधिनियम में संशोधन किया गया. आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिशों पर की जाती है, जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री सहित लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उपसभापति शामिल होते हैं.
एनएचआरसी अध्यक्ष के चयन में राहुल की भूमिका
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर सबकी निगाहें टिकी हैं कि वे एनएचआरसी के नए अध्यक्ष के चयन में क्या करेंगे. अब तक गांधी परिवार पर्दे के पीछे से व्यवस्था पर शासन करता रहा है. राहुल गांधी ने संसद की लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनने की प्रतिष्ठित जिम्मेदारी भी छोड़ दी. विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी के पास कई जिम्मेदारियां हैं.
लेकिन राहुल गांधी ने पीएसी की बागडोर अपने विश्वस्त सिपहसालार केसी वेणुगोपाल को सौंपना बेहतर समझा. लेकिन विपक्ष के नेता के रूप में वे न केवल एनएचआरसी के अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया का हिस्सा हैं, बल्कि सीबीआई के निदेशक, मुख्य सतर्कता आयुक्त, मुख्य चुनाव आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयुक्त, लोकपाल और अन्य संस्थाओं के प्रमुखों और सदस्यों का चयन करने वाली समिति में भी शामिल हैं.
अगले कुछ महीनों में राहुल गांधी ऐसी समितियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमने-सामने होंगे, क्योंकि एनएचआरसी के बाद सीईसी राजीव कुमार भी 2025 की शुरुआत में सेवानिवृत्त होने वाले हैं. गांधी के पास विपक्ष के नेता के तौर पर कैबिनेट रैंक है, जो उन्हें संवैधानिक पद देता है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी है.
प्रधानमंत्री के साथ पहली मुलाकात का नतीजा देखना होगा, क्योंकि इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने पहले ही अप्रत्यक्ष रूप से चंद्रचूड़ की दिवाली पूजा पर प्रधानमंत्री को अपने आवास पर आमंत्रित करने के लिए आलोचना की है.
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से कैसे लड़ें?
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा और भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पिछले 11 सालों से अरविंद केजरीवाल को दिल्ली से बेदखल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं. फरवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल को हटाने के लिए भाजपा बेहद आक्रामक है. चुनाव की घोषणा दिसंबर के अंत में कभी भी हो सकती है.
भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में अपने 30 साल के सूखे के खत्म होने की उम्मीद कर रही है, क्योंकि वह पिछले तीन संसदीय चुनावों से सभी सातों लोकसभा सीटें जीत रही है. वह आप और कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है और कोई भी मौका नहीं छोड़ रही है. हाल ही में केंद्र ने अरविंदर सिंह लवली को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली में अपनी ताकत साबित करने के लिए केंद्रशासित प्रदेश को छीनने के लिए दृढ़ हैं. कांग्रेस भी केजरीवाल से सत्ता वापस छीनने के लिए संघर्ष कर रही है, क्योंकि उन्होंने 2013 में शीला दीक्षित को बेदखल किया था, जिन्होंने 15 साल तक राज किया. दिल्ली में आप-कांग्रेस को साथ लाने के इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं के प्रयास विफल हो गए,
हालांकि केजरीवाल इस सुझाव के लिए तैयार थे. पता चला है कि राहुल गांधी के खास अजय माकन ने इस कदम को विफल कर दिया. कांग्रेस नेताओं को आश्चर्य है कि राहुल गांधी ने उन्हें इतना महत्व क्यों दिया, खासकर तब जब पिछली बार विधानसभा चुनावों में उनकी खुद की जमानत जब्त हो गई थी.
राहुल गांधी ने उन्हें छत्तीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा में स्क्रीनिंग कमेटियों का अध्यक्ष नियुक्त किया था. लेकिन पार्टी सभी राज्यों में हार गई और इन हारों के लिए उन पर कोई जिम्मेदारी नहीं डाली गई. माकन अभी भी राहुल गांधी के चहेते हैं.
और अंत में
असम और झारखंड के बीच क्या कोई समानता है! हकीकत में भले न हो लेकिन चुनावों के दौरान यह देखने को मिल रही है. झारखंड में लड़ाई के भीतर लड़ाई देखने को मिली. कांग्रेस ने लोकसभा में अपने उपनेता गौरव गोगोई को राज्य चुनावों के लिए वरिष्ठ समन्वयक नियुक्त किया.
जबकि भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को झारखंड के लिए अपना सह-प्रभारी नियुक्त किया, जो राज्य में आदिवासी आबादी को लुभाने में लगे हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि गोगोई असम के चाय बागानों के लिए भाजपा के अधूरे वादों को सामने लाकर सरमा के मुद्दे का मुकाबला करने में सक्षम होंगे. दोनों के बीच यह एक कड़ा मुकाबला है क्योंकि असम में उपचुनाव भी हो रहे हैं.