Maharashtra water shortage: मानसून के एक दिन पहले केरल पहुंचने के साथ वर्षा की प्रतीक्षा में एक भरोसा पैदा हो गया है. किंतु बीते तीन माह से महाराष्ट्र में पानी की कमी को लेकर चल रहा हाहाकार थम नहीं रहा है. आशंका यह है कि जून माह भी जल संकट के साथ बीतेगा. चुनावी साल होने से पानी की कमी की चर्चा राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के शोर में दबकर कहीं रह गई. अन्यथा हर वर्ष फरवरी माह के अंत से पानी को लेकर चिंताएं सामने आने लगती हैं. अब लोकसभा चुनाव का मतदान पूरा होने के बाद विपक्षी दल जल संकट को लेकर आवाज उठा रहे हैं.
वे किसानों से लेकर ग्रामीण भागों तक के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. किंतु महाराष्ट्र के बड़े भाग में पानी की कमी कोई राजनीति का विषय नहीं रह गया है, क्योंकि केंद्र से लेकर राज्य तक हर दल की सरकार ने पानी की समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं दिया, जिसके चलते अनेक क्षेत्रों में जमीन का पानी भी एक हजार फुट से नीचे जा चुका है.
राज्य सरकार की एक ताजा आधिकारिक रपट बताती है कि लगभग 3,000 बांधों का औसत जल भंडार 22 प्रतिशत तक रह गया है, जिसमें छत्रपति संभाजीनगर संभाग में सबसे कम 9.06 प्रतिशत जल भंडार दर्ज किया गया है. पिछले साल इसी समय राज्य में 31.81 प्रतिशत जल संचय था, जो वर्तमान की तुलना में 9.17 प्रतिशत अधिक था.
महाराष्ट्र जल संसाधन विभाग के अनुसार राज्य के छह संभागों में से छत्रपति संभाजीनगर के बांधों में औसत भंडार 9.06 प्रतिशत, पुणे संभाग में 16.35 प्रतिशत, नासिक में 24.50 प्रतिशत, कोंकण में 35.88 प्रतिशत, नागपुर में 38.41 प्रतिशत और अमरावती संभाग में 38.96 प्रतिशत जल है. तेज गर्मी के कारण हो रहे वाष्पीकरण से भी जल आपूर्ति करने वाली प्रमुख परियोजनाओं में पानी तेजी से कम हो रहा है.
अनेक गांवों के बांधों में जलस्तर शून्य पर पहुंच चुका है. छत्रपति संभाजीनगर और नासिक संभाग में भारी कमी से सिर्फ पीने का पानी उपलब्ध है, यहां तक कि जानवरों को पानी पिलाने में काफी परेशानी हो रही है. इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य में पानी के टैंकर चलाए जा रहे हैं. जिनकी संख्या रिकॅार्ड स्तर पर जा पहुंची है.
राज्य के 25 जिलों के 11 हजार से ज्यादा गांवों में रोजाना 3 हजार 700 से ज्यादा टैंकरों से पानी आपूर्ति हो रही है. इससे पहले इतनी खराब स्थितियां 2013 में पैदा हुई थीं. एक अनुमान के अनुसार महाराष्ट्र का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट में है, लेकिन चुनावी शोर में भी इसका जिक्र कहीं नहीं हुआ.
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले का कहना है कि राज्य में लोकसभा चुनाव खत्म हो गए हैं. बांधों में पानी का भंडारण कम है और हजारों गांवों, मोहल्लों और बस्तियों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है. इसलिए आचार संहिता में ढील देकर पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए. इसके साथ ही कांग्रेस के कई नेताओं ने जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों का दौरा करना आरंभ कर दिया है.
राज्य सरकार अपने परंपरागत ढर्रे की तरह ही काम कर रही है. असल तौर पर महाराष्ट्र में पानी की कमी कभी नई नहीं रही. सभी दलों ने सत्ता को पाकर इस समस्या से निपटने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इसीलिए आम चुनाव के दौरान भी किसी दल ने पानी का मुद्दा जोर-शोर से उठाने का प्रयास नहीं किया.
मराठवाड़ा के मुख्यालय छत्रपति संभाजीनगर में आठ से पंद्रह दिवस की अवधि में कभी नलों में पानी आता है. जैसे-जैसे संभागीय मुख्यालय से जिला स्तर, तहसील स्तर और फिर गांव-कस्बे तक पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया जाए तो पानी मिलना बीस-पच्चीस दिन की बात हो जाती है. इसे देखते हुए सरकारी टैंकर अपनी जगह हैं, किंतु निजी टैंकरों के जाल ने आम आदमी को बुरी तरह से जकड़ लिया है.
नौबत तो यहां तक है कि वर्तमान समय में टैंकर से समय पर पानी पाना एक चुनौती बन चुका है. उनकी कीमत पर तो किसी का कोई बस चलता ही नहीं है. मौसमी दृष्टिकोण से राज्य में बरसात की स्थिति कई सालों से असामान्य होती जा रही है. कोरोना महामारी के सालों को छोड़ दिया जाए तो मराठवाड़ा और विदर्भ में पानी की समस्या का कोई समाधान नहीं है.
वर्ष 2014 में देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने ‘जलयुक्त शिवार’ नामक योजना को आरंभ किया था, जिससे गांवों में जल संकट से राहत मिलने की उम्मीद थी. किंतु वर्ष 2024 में भी उस योजना के परिणाम दिख नहीं रहे हैं. राज्य में कभी मानसून सीधा तो कभी भटकता हुआ आता है. जिससे जल भंडारण क्षेत्रों में पानी पर्याप्त एकत्र नहीं हो पाता है.
मराठवाड़ा के बड़े जलस्रोत जायकवाड़ी बांध का भरना नासिक और अहमदनगर जिले की बरसात पर निर्भर है. बढ़ती आबादी के चलते यदि किसी साल बांध पूरा भर गया तो वह उसी साल की अपेक्षा को पूरा करने में समर्थ हो पाता है. यदि नहीं भर पाया तो जनवरी-फरवरी माह से संकट के बादल घिरना तय है. यह बात सर्वविदित होने के बावजूद समाधान नहीं खोजा जा रहा है.
सरकार या प्रशासन आसमान को देखकर ही अपनी राय बना रहे हैं, जबकि छोटे या नए जलस्रोतों के बारे में अधिक गंभीरता नहीं है. शहरी इलाकों में आवश्यकतानुसार पानी की टंकियां नहीं बन पा रही हैं. बरसात का पानी एकत्र नहीं किया जा रहा. कांक्रीटीकरण से जमीन में पानी नहीं जा रहा और भू-जलस्तर अत्यधिक नीचे जा रहा है.
मगर इस विषय पर गंभीरता नहीं है. राजनीति केवल छींटाकशी और स्वार्थ सिद्धि पर केंद्रित हो चली है. अगले तीन-चार महीने में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी और यदि मानसून ने साथ नहीं दिया तो सूखा एक बड़ा संकट होगा. किंतु क्या उससे राजनीति प्रभावित होगी? शायद नहीं, क्योंकि पानी आम आदमी की परेशानी है. उससे राजनीति को कोई परेशानी नहीं है.