महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा मंडल ने सोमवार को 12वीं की परीक्षा के नतीजे घोषित कर दिए. परीक्षाफल उत्साहवर्धक है और वे विद्यार्थियों की मेहनत, प्रतिभा तथा पढ़ाई के प्रति लगन को दर्शाते हैं. 10वीं हो या 12वीं, बोर्ड परीक्षा आसान नहीं होती. लेकिन 91 प्रतिशत से ज्यादा विद्यार्थियों ने सफलता अर्जित कर यह साबित कर दिया है कि पढ़ने के प्रति उनमें जुनून है और वे कड़ी मेहनत कर चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हैं.
परीक्षा में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं और जो छात्र-छात्रएं सफलता पाने से वंचित रह गए, उन्हें निराश होने को जरूरत नहीं है. उम्र और समय दोनों उनके साथ है. हो सकता है उनकी मेहनत में कहीं कोई कसर रह गई हो. वे आत्मचिंतन करें और देखें कि उनसे कहां कमी रह गई. उन्हें हताश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए. थोड़ी मेहनत और करें, सफलता निश्चित रूप से उनके कदम चूमेगी. कई बार जिंदगी में मिली ठाेकर उज्ज्वल भविष्य का मार्ग भी दिखा देती है.
परीक्षाफल पर नजर डालने से पता चलता है कि राज्य के जो क्षेत्र अत्यंत पिछड़े समझे जाते हैं, जहां शिक्षा का मजबूत बुनियादी ढांचा नहीं है, वहां के विद्यार्थी भी सफलता की दौड़ में पीछे नहीं रहे. ये विद्यार्थी छोटे शहरों, कस्बों तथा गांवों के नहीं हैं. महानगरों की तरह सुविधाएं एवं साधन उनके पास नहीं हैं, वे महंगी फीस देकर कोचिंग क्लास में प्रवेश नहीं ले सकते, लेकिन इन तमाम असुविधाओं तथा कष्टों ने उन्हें विचलित नहीं किया और वे सफलता के मामले में बड़े-बड़े शहरों के अपने समकक्षों से पीछे नहीं रहे.
12 वीं की परीक्षा छात्र-छात्रओं के जीवन की दिशा तया करने वाला निर्णायक मोड़ होता है. इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद वह तय करता है कि उसे भविष्य में क्या बनना है. पहले करियर बनाने के अवसर बहुत सीमित होते थे. बच्चों के सामने 12वीं के बाद बी.कॉम., बी.एससी. या बी.ए. के अलावा, इंजीनियर या डॉक्टर बनने के ही अवसर होते थे. आज हालात एकदम विपरीत हैं.
बच्चों के सामने संभावनाओं तथा अवसरों का अनंत आकाश हैं. वे जितना चाहे उड़ सकते हैं, चाहे जिस मंजिल को अपना लक्ष्य बनाकर उसे पाने की कोशिश कर सकते हैं. तकनीकी क्रांति ने विद्यालियों के लिए सुनहरा भविष्य बनाने के असीमित अवसर पैदा कर दिए हैं. विद्यार्थी 12 वीं परीक्षा में सफल होने के बाद जहां चाह, वहां राह वाली कहावत को चरितार्थ कर सकते हैं.
इसके अलावा नई पीढ़ी में जिंदगी में ऊंचा लक्ष्य तय करने और उसे हासिल करने का हौसला देखने को मिलता है. वे सिर्फ साधारण स्नातक बनना नहीं चाहते, वे किसी न किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता दिलाने वाले पाठ्यक्रमों को अपना करियर का निर्धारण करने के लिए चुनते हैं और उसे पाने के लिए घोर परिश्रम करते हैं. यही कारण है कि 10वीं तथा 12वीं स्टेट बोर्ड हो या सीबीएसई बोर्ड, विद्यार्थियों के सफल होने के प्रतिशत में जबर्दस्त इजाफा हुआ है. किसी जमाने में 10वीं, 12वीं परीक्षा में सफल होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 50 प्रतिशत से भी कम होती थी.
यह वह दौर था, जब करियर बनाने के अवसर सीमित होते थे. युवा पीढ़ी स्नातक होकर सरकारी नौकरी पाकर ही संतुष्ट हो जाया करती थी. माता-पिता भी बच्चे के स्नातक होने और किसी सरकारी विभाग में क्लर्क या छोटा-मोटा अफसर बनने पर अपने जीवन को धन्य समझ लेते थे.
आज हालात एकदम विपरीत हैं. माता-पिता बचपन से अपनी संतानो के लिए ऊंचे लक्ष्य निर्धारित कर देते हैं और उसे हासिल करने के लिए न केवल बच्चों को लगातार प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि उसका करियर बनाने के लिए खुद भी बहुत कुछ त्याग करते हैं.
बच्चे अपने लिए माता-पिता द्वारा की जाने वाली मेहनत तथा संघर्ष को महसूस करते हैं एवं उनके सपनों को साकार करने के लिए अथक परिश्रम करते हैं. इसी का नतीजा है कि 12वीं की परीक्षा में इस बार कोंकण जैसे पिछड़े क्षेत्रों के 96.74 प्र.श. बच्चों ने सफलता के झंडे गाड़े तथा मुंबई जैसे सुविधासंपन्न विभाग को पीछे छोड़ दिया. मुंबई विभाग का नतीजा 92.93 प्रतिशत रहा. मराठवाड़ा और विदर्भ भी राज्य के पिछड़े इलाकों में गिने जाते हैं. इसके बावजूद विदर्भ में नागपुर विभाग के 91.92 तथा अमरावती के 91.49 प्र.श. बच्चे अपने लक्ष्य को साधने में सफल रहे.
छत्रपति संभाजीनगर के 92.24 प्र.श. बच्चों को सफलता मिली. बच्चों के इरादे या लक्ष्य जैसे-जैसे ऊंचे होते जा रहे हैं, उनमें सफलता के लिए प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती जा रही है. इसके साथ यह भी सच है कि प्रतिस्पर्धा छात्र-छात्राओं में मानसिक तनाव के बीज भी बो रही है.
विद्यार्थियों को तनावमुक्त होकर अपने लक्ष्य को हासिल करने की तैयारी करना होगा क्योकि एक असफलता से सफलता के रास्ते बंद नही हो जाते. माता-पिता को बच्चों से अपेक्षा तो करनी चाहिए लेकिन उन पर सफलता के लिए अनुचित दबाव डालने से उन्हें बचना होगा. अपने बच्चों की क्षमता तथा प्रतिभा में विश्वास कर अभिभावक बच्चों का हौसला बढ़ाएं, तनाव नहीं.