Maharashtra-Chhattisgarh border:महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर बसा पेनगुंडा गांव कहने को भारत के साथ ही आजाद हो गया था लेकिन वहां गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर कभी झंडा नहीं फहराया गया. शुरुआती दौर में शायद इसलिए नहीं कि प्रसंग नहीं बन पाया होगा और बाद के दौर में झंडा इसलिए नहीं फहराया जा सका कि नक्सलियों का भय सिर चढ़ कर बोल रहा था. नक्सली भारतीय शासन में विश्वास नहीं करते और अपने कब्जे वाले इलाके में ग्रामीणों से भी ऐसी ही उम्मीद करते हैं. लेकिन 2025 का गणतंत्र दिवस नक्सलियों के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था.
वहां 200 ग्रामीणों की उपस्थिति में न केवल झंडा फहराया गया बल्कि विभिन्न खेलों के आयोजन भी हुए और नक्सलियों के खिलाफ जान की बाजी लगा कर लड़ने वाले जवानों को पदोन्नति भी दी गई. नक्सलियों का खौफ हवा में उड़ गया. लेकिन यह सब इतना सहज नहीं था. इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को श्रेय दिया जाना चाहिए.
अपने पहले कार्यकाल में भी उन्होंने गढ़चिरोली पर खास ध्यान केंद्रित किया था और लगातार ऐसी व्यवस्था जमाने में लगे थे जिससे नक्सलियों की नकेल कसी जा सके. बगैर किसी शोर-शराबे के आदिवासी इलाकों में विकास के कार्यों को गति दी गई और नक्सली काम न रोक पाएं इसके लिए सक्षम अधिकारियों की वहां तैनाती की गई.
नक्सलियों के खिलाफ केंद्र सरकार और खास तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सख्त रुख से भी फडणवीस को मदद मिली. पेनगुंडा गांव निडरता का प्रतीक बन कर उभरा. पिछले महीने यानी दिसंबर 2024 में इस गांव में पुलिस सहायता केंद्र की स्थापना की गई. उसके बाद नए साल के पहले दिन मुख्यमंत्री फडणवीस वहां पहुंचे और नागरिकों को विश्वास दिलाया कि उनके विकास के लिए हर साधन मुहैया कराएंगे. स्वाभाविक सी बात है कि ग्रामीणों ने फडणवीस पर भरोसा किया है. इसी भरोसे के कारण उनमें हिम्मत भी आई है और नक्सलियों की चेतावनी को उन्होंने दरकिनार किया.
वैसे भी एक कहावत है कि सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती है? आपसी बातचीत में लोग कहते भी हैं कि ‘जो चल रहा है, उसे चलने दो’ की प्रशासकीय नीति के कारण ही समस्याएं धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती चली जाती हैं. नक्सलवाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से पैदा होकर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के रास्ते आंध्रप्रदेश-तेलांगना तक इसने लाल कॉरिडोर तैयार कर लिया. नक्सलवाद के साथ माओवाद मिला और देश के खिलाफ बगावत की साजिश रची जाने लगी.
नक्सलवादियों का गरीबों से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन उन्होंने ऐसा छद्म वातावरण तैयार किया कि आदिवासी इलाकों में रहने वाले युवा उनके बहकावे में आने लगे. जब तक सरकार विकास के कार्यों को जंगल में बसी बस्तियों तक ले जाने की सोचती तब तक नक्सली इतने खतरनाक हो चुके थे कि वहां काम करना मुश्किल हो गया था.
संतोष की बात है कि अब केंद्र और राज्य सरकारें पुख्ता तरीके से ध्यान दे रही हैं और नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं. उनका भय खत्म हो रहा है. यही कारण है कि न केवल पेनगुंडा बल्कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर, नारायणपुर और कांकेर जिले के 26 गांवों में भी इस बार गणतंत्र दिवस पर हमारी आन-बान और शान का प्रतीक तिरंगा गर्व से लहराया.