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एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉग: नई शिक्षा नीति के कुशल क्रियान्वयन की जरूरत

By एम वेंकैया नायडू | Updated: August 6, 2020 05:58 IST

नई शिक्षा नीति 2020 बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए पोषण के महत्व को भी पहचानती है और इसलिए बच्चों के लिए पौष्टिक मिड-डे मील के अलावा, ऊर्जा से भरे नाश्ते के लिए इसमें प्रावधान किया गया है.

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नई शिक्षा नीति 2020 को व्यापक विचार-विमर्श के बाद सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है, जो निश्चित रूप से भारत में शिक्षा के इतिहास में एक मील का पत्थर है. यह नीति व्यापक, समग्र, दूरदर्शितापूर्ण है और निश्चित रूप से भविष्य में राष्ट्र के विकास को सुगम बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. 2016 में टीएसआर सुब्रमण्यम समिति और के. कस्तूरीरंगन समिति की इस शानदार कार्य को अंजाम देने के लिए मैं सराहना करता हूं.

नीति में सराहनीय ढंग से समग्र, शिक्षार्थी केंद्रित लचीली प्रणाली पर जोर दिया गया है जिसका उद्देश्य भारत को एक जीवंत ज्ञान समाज में बदलना है. इसमें न्यायसंगत ढंग से भारत की जड़ों और गौरव के बीच संतुलन साधा गया है. दुनिया भर के सबसे अच्छे विचारों और प्रथाओं को स्वीकार करते हुए संतुलन स्थापित किया गया है. इसकी दृष्टि वास्तव में वैश्विक भी है और भारतीय भी.

कई मायनों में, नई शिक्षा नीति छात्नों को आजादी देती है. वे बहुत अधिक सशक्त होंगे

21वीं सदी के भारत की जरूरतों के मद्देनजर उच्च शिक्षा की पुर्नसरचना और प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक व्यापक पहुंच आज के समय की आवश्यकता थी. यह संतोषजनक बात है कि इसका एक उदात्त लक्ष्य स्कूली शिक्षा के बाहर के दो करोड़ बच्चों को स्कूल प्रणाली में लाना और ड्रॉपआउट्स को कम करना है. बोझिल पाठ्यक्र म में कमी के साथ व्यावसायिक शिक्षा और पर्यावरण शिक्षा ऐसे महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन पर नई शिक्षा नीति में बहुत अच्छी तरह से ध्यान केंद्रित किया गया है. कई मायनों में, नई शिक्षा नीति छात्रों को आजादी देती है. वे बहुत अधिक सशक्त होंगे और उनके पास उन विषयों को चुनने का अवसर होगा जो वे सीखना चाहते हैं.

नई शिक्षा नीति-2020 में अनुसंधान, बहु-विषयक दृष्टिकोण और प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ-साथ शिक्षकों की क्षमता के पेशेवर उन्नयन पर विशेष ध्यान दिए जाने से इसमें शिक्षा परिदृश्य को बदलने की क्षमता है. नैतिकता और मानवीय व संवैधानिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित किए जाने से प्रबुद्ध  नागरिकों का निर्माण होगा, जिससे हमारी लोकतांत्रिक जड़ों को मजबूती मिलेगी.  नई शिक्षा नीति ने भारत के डिजिटल विभाजन को उजागर किया है और इसे समयबद्ध तरीके से पाटने की इच्छा व्यक्त की गई है.

मातृभाषा में सीखने से बच्चे की रचनात्मकता और कल्पनाशील सोच में वृद्धि होती है

नई शिक्षा नीति 2020 बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए पोषण के महत्व को भी पहचानती है और इसलिए बच्चों के लिए पौष्टिक मिड-डे मील के अलावा, ऊर्जा से भरे नाश्ते के लिए इसमें प्रावधान किया गया है. कम से कम पांचवीं कक्षा (और संभव हो तो आठवीं कक्षा) तक शिक्षा क्षेत्नीय भाषा में देने का प्रावधान भी महत्वपूर्ण है. 2016 में यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के 40 प्रतिशत बच्चों को शिक्षा मातृभाषा में नहीं मिल पाती है.

साक्षरता के साथ ही अन्य कौशल हासिल करने के लिए भी मातृभाषा बच्चे के समग्र विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मातृभाषा, जिसे एक बच्चा उस पल से सुनता है जब वह पैदा होता है, व्यक्तिगत पहचान प्रदान करती है, संस्कृति के साथ जोड़ती है और ज्ञान संबंधी विकास के लिए महत्वपूर्ण है. इससे उसकी सोच बनती है और समस्या को सुलझाने का कौशल विकसित होता है. मातृभाषा में सीखने से बच्चे की रचनात्मकता और कल्पनाशील सोच में वृद्धि होती है. यह बच्चे की भावनात्मक और मानसिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अन्य भाषाओं को तेजी से सीखने सहायक बनती है.

महान विद्वान अपनी मातृभाषा में लिखना और बोलना पसंद करते हैं

यह स्पष्ट है कि मातृभाषा आधारित शिक्षा एक मजबूत आधार प्रदान करती है. बहुभाषी कौशल हासिल करने के लिए मातृभाषा स्प्रिंग बोर्ड का काम करती है. कई अध्ययनों से संकेत मिलता है कि जिन बच्चों को शुरुआती स्कूली शिक्षा उनकी मातृभाषा में प्रदान की गई थी, वे उन लोगों की तुलना में बेहतर थे जिनकी शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा में नहीं था.  मातृभाषा में विभिन्न विषयों को सीखना भी आत्मविश्वास पैदा करता है और बच्चों में आत्मसम्मान को बढ़ावा देता है. यह बच्चे को गलतियों के डर के बिना खुद को अभिव्यक्त करने में सक्षम बनाता है. मातृभाषा में मानवीय भावनाओं को बेहतर ढंग से व्यक्त किया जा सकता है. यह भी माना जाता है कि जब शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होती है तो बच्चे गणित और विज्ञान को बेहतर ढंग से समझ और सीख पाते हैं

हमें याद रखना चाहिए कि गांधीजी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भी महसूस किया था कि शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा सबसे उपयुक्त है.भारत  एक बड़ा और विविधता से भरा देश है जहां भाषाओं, बोलियों और मातृभाषा की प्रचुरता है. दुनिया के कई विकसित देश अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षित करते हैं. जब विश्व नेता मुझसे बात करते हैं तो वे अपनी मातृभाषा में बोलना पसंद करते हैं, भले ही वे अंग्रेजी में कुशल हों. महान विद्वान अपनी मातृभाषा में लिखना और बोलना पसंद करते हैं. मातृभाषा में बोलने में एक गौरव की भावना जुड़ी होती है और हमें अपने बच्चों में गर्व की यह भावना पैदा करनी चाहिए.

इस शिक्षा नीति की लंबे समय से आवश्यकता थी. अब इसकी भावना के साथ न्याय करते हुए, इसके कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. राज्यों और केंद्र सरकार को मिलकर कक्षाओं में बदलाव लाने के लिए मिलकर काम करना होगा. मुझे विश्वास है कि यदि इसे अच्छी तरह से लागू किया जाता है तो यह नीति भारत को एक संपन्न ज्ञान केंद्र बनाने का मार्ग है. नई शिक्षा नीति का लक्ष्य शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को वर्तमान जीडीपी के 4.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत तक करना है, लेकिन इसे लागू करने के लिए हमारे पास एक समय सीमा होनी चाहिए. मुझे उम्मीद है कि सभी राज्य इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन में अपना पूरा सहयोग देंगे.

टॅग्स :नई शिक्षा नीतिएम. वेकैंया नायडू
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