ब्लॉग: तनावमुक्त परीक्षा प्रणाली विकसित करने की ईमानदार कोशिश
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 24, 2023 10:29 AM2023-08-24T10:29:32+5:302023-08-24T10:33:59+5:30
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम की जो रूपरेखा तैयार की है, वह परीक्षा को लेकर विद्यार्थियों के तनाव को बहुत कुछ कम कर देगी।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम की जो रूपरेखा तैयार की है, वह परीक्षा को लेकर विद्यार्थियों के तनाव को बहुत कुछ कम कर देगी। उनकी स्वाभाविक प्रतिभा को विकसित करने में मददगार साबित होगी और परीक्षा में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करने में सहायक बनेगी।
नए पाठ्यक्रम की रूपरेखा के मुताबिक 10वीं तथा 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं साल में दो बार आयोजित करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा कला, वाणिज्य और विज्ञान जैसे संकायों में से किसी एक संकाय को चुनने की बाध्यता खत्म हो जाएगी। शिक्षा मंत्रालय का उद्देश्य है कि समय के साथ मांग के अनुरूप परीक्षा आयोजित करने का ढांचा तैयार हो सके।
इससे विद्यार्थी परीक्षा की तैयारी करने में सहज होंगे और उन्हें यह डर नहीं सताएगा कि उन्हें एकसाथ सारे विषयों की परीक्षा उत्तीर्ण करनी है। भारत में प्रचलित शिक्षा प्रणाली में दो सबसे बड़ी खामियां विशेषज्ञ अक्सर गिनाते रहते हैं। पहली, परीक्षा पद्धति और दूसरी किताबों का भारी-भरकम बोझ। किताबों का बोझ कम करने की दिशा में समय-समय पर अनेक कदम उठाए गए हैं।
इससे प्राथमिक शाला के बच्चों को काफी राहत मिली है। हालांकि इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत महसूस की जा रही है। उच्चतर माध्यमिक स्तर पर परीक्षा का तनाव बहुत ज्यादा होता है। 10वीं तथा 12वीं की परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा अंक हासिल करने के लिए विद्यार्थियों पर परिजनों और शिक्षकों का बहुत ज्यादा दबाव होता है क्योंकि अच्छे नंबरों के आधार पर ही श्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश मिलता है।
ज्यादा से ज्यादा अंक लाने की अनचाही प्रतिस्पर्धा भी हमारे समाज में पनप रही है। इसका एक अलग दबाव विद्यार्थियों पर पड़ता है। इसी कारण बच्चों को बोर्ड परीक्षा तथा आईआईएम, मेडिकल तथा आईआईटी जैसे शिक्षा संस्थानों में प्रवेश दिलवाने के लिए तैयार करने का प्रयास रहता है। उनसे अन्य सारी गतिविधियां बंद करवाकर दिन-रात पढ़ने के लिए विवश कर दिया जाता है।
बच्चे भी अपने करियर को संवारने तथा माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए किताबों में गुम हो जाते हैं। परीक्षा का तनाव उनके आचरण में स्पष्ट झलकने लगता है। इससे कई बार हताशा भी पैदा हो जाती है और बच्चे आत्मघाती कदम उठाने लगते हैं। कला, वाणिज्य और विज्ञान संकाय का अपना-अपना महत्व है।
इन सभी संकायों की शिक्षा में बच्चों की प्रतिभा तराशने की क्षमता है लेकिन विज्ञान संकाय को लेकर एक छद्म आभा तैयार हो गई है। यह धारणा बना दी गई है कि बच्चों का भविष्य सिर्फ विज्ञान संकाय ही संवार सकता है। विज्ञान संकाय में प्रवेश के लिए 10वीं बोर्ड में अच्छे नंबर लाने का तनाव भी बच्चों पर हावी रहता है। नए प्रस्तावित पाठ्यक्रम में इस जटिलता को खत्म करने का प्रयास किया गया है।
विद्यार्थी संकाय के बदले अपनी पसंद के विषयों के साथ बोर्ड परीक्षा दे सकेंगे। वे कला, विज्ञान तथा वाणिज्य के अपनी पसंद के विषय लेकर परीक्षा में बैठ सकेंगे। विशिष्ट संकाय को चुनने की बाध्यता इससे खत्म हो जाएगी। प्रस्तावित पाठ्यक्रम में दो बार बोर्ड परीक्षा का प्रावधान है। विद्यार्थी अपनी तैयारी के मुताबिक परीक्षा दे सकेंगे। वे जितने विषय में खुद को तैयार कर पाते हैं, उतने विषयों की परीक्षा पहली बोर्ड परीक्षा में दे सकेंगे।
शेष विषयों के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिल जाएगा और उसमें वह अपनी गुणवत्ता को दूसरी बोर्ड परीक्षा में परख सकेंगे। इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय समिति की सिफारिशों के मुताबिक नई शिक्षा नीति, नए पाठ्यक्रम तथा नई परीक्षा पद्धति को तैयार करने का प्रयास सरकार कर रही है। इसरो के पूर्व अध्यक्ष कस्तूरीरंगन खुद विज्ञान के प्रतिभाशाली विद्यार्थी रहे हैं और परीक्षा की जटिलताओं से अच्छी तरह से वाकिफ रहे हैं।
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया है कि परीक्षा का तनाव विद्यार्थियों से उनकी स्वाभाविक प्रतिभा को छीनकर उन्हें रटकर पढ़नेवाला विद्यार्थी न बना दे। कस्तूरीरंगन के मुख्य सुझाव में पूरा जोर परीक्षा का तनाव खत्म करने और विद्यार्थियों को अपनी पसंद के विषयों में शिक्षा उपलब्ध करवाने पर रहा है। आमतौर पर विभिन्न मसलों पर बनी समितियों तथा आयोगों की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली जाती है मगर कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों को पूरी गंभीरता के साथ लागू करने का प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है।