यह आपके नजरिये पर निर्भर करता है कि गिलास को आधा भरा देखते हैं या आधा खाली। अठारहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम को इसी नजरिये से देखा जा सकता है। चार जून की मतगणना का यह नतीजा तो साफ है कि 400 पार का नारा देनेवाला राजग 300 तक पहुंचते-पहुंचते हांफ गया, पर केंद्रीय सत्ता की ‘हैट्रिक’ अपने आप में कम बड़ी उपलब्धि होगी क्या? पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के बाद वह करिश्मा कर पानेवाले नरेंद्र मोदी देश में दूसरे प्रधानमंत्री होंगे।
तीन दशक के अंतराल के बाद, 2014 में किसी एक दल के रूप में भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिलाने का श्रेय भी मोदी को गया. मोदी काल में ही भाजपा विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनी और देश के ज्यादातर राज्यों में सत्तारूढ़ भी हुई। भाजपा की उस छलांग और फिर इस चुनाव में अपने लिए 370 के लक्ष्य को ध्यान में रखें तो चुनाव परिणाम निश्चय ही निराशाजनक लगते हैं। 370 का नारा देनेवाली भाजपा अगर बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में ही हांफ गई तो जाहिर है कि आत्मविश्लेषण की जरूरत होगी।
बेशक वह आत्मविश्लेषण होगा भी, लेकिन क्या भाजपा को ऐसे उलटफेर की तनिक भी आशंका नहीं थी? जाहिर है, कोई भी राजनीतिक दल ऐसी स्वीकारोक्ति का साहस नहीं दिखाता, पर प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपाई रणनीतिकारों की कवायद पर नजर डालें तो समझना मुश्किल नहीं कि उन्हें इसकी आशंका थी- और उन्होंने संभावित नुकसान की भरपाई की हरसंभव कोशिश भी की।
पिछले साल विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ बनने के पहले से ही भाजपाई रणनीतिकार सक्रिय हो गए थे। महाराष्ट्र में जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ, उसका उद्देश्य सिर्फ वहां की सत्ता तक सीमित नहीं था। भाजपा को अहसास था कि शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस का गठबंधन महाराष्ट्र में मुश्किलें पेश कर सकता है। इसीलिए शिवसेना और राकांपा में क्रमश: एकनाथ शिंदे और अजित पवार के जरिये विभाजन करवाया गया।
उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करने का तात्कालिक लक्ष्य तो भाजपा को हासिल हो गया, लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम के झटके से वह नहीं बच पाई। जिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर मानसिक स्वास्थ्य पर संदेह समेत तमाम तरह के हमले भाजपा करती रही, उन्हें भी एक बार फिर अपने पाले में इसीलिए लाया गया कि ‘इंडिया’ रफ्तार पकड़ने लगा था।
अपना चुनावी गणित बेहतर करने के लिए ही भाजपा उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल को राजग के पाले में लाई, जो पिछले एक दशक से सपा से गठबंधन में राजनीति कर रहा था। लेकिन विश्वसनीय स्थानीय नेतृत्व तथा क्षेत्रीय जनमानस को समझे-स्वीकारे बिना चुनावी रण नहीं जीता जा सकता- चुनाव परिणामों का यह संदेश सभी दलों के लिए एक जरूरी सबक है।