अभिलाष खांडेकर
इन दिनों दिल्ली में वार्षिक विश्व पुस्तक मेला चल रहा है, साथ ही विभिन्न सुप्रसिद्ध तथा अल्पप्रसिद्ध लिट फेस्ट (साहित्यिक उत्सव) या तो इस महीने समाप्त हो चुके हैं या जल्द ही शुरू होने वाले हैं. जयपुर लिट फेस्ट (जेएलएफ) की शुरुआत 2006 में हुई थी और भोपाल लिट फेस्ट (बीएलएफ) जो ‘जेएलएफ’ से काफी छोटा है दोनो इस साल एक ही तारीख को हुए और 2 फरवरी को समाप्त हुए. कोलकाता लिटरेरी फेस्टिवल जनवरी के मध्य में संपन्न हुआ. इसके अलावा डिब्रूगढ़ फेस्ट जैसे कुछ अन्य फेस्टिवल भी भारत में जनवरी-फरवरी के महीनों में लगभग इसी समय संपन्न हुए.
दूसरे शब्दों में कहें तो यह किताबों का एक ऐसा मौसम रहा है जिसने लेखकों को वसंत के फूलों की तरह खिलने में मदद की है जो चारों ओर मोहक खुशबू फैलाते हैं. इस मौसम में देश भर में लेखक मंडली ज्ञान की खुशबू फैलाती है जिससे युवाओं को नया उत्साह मिलता है.
ये साहित्यिक उत्सव निस्संदेह भारत में पठन संस्कृति को अधिक से अधिक बढ़ावा देने का प्रयास करते दिखते हैं. व्यापक सोशल मीडिया, इंटरनेट पर असीमित जानकारी का प्रवाह और खाना पकाने से लेकर सिनेमा और राजनीति से लेकर सेक्स तक के वास्तविक (और नकली) वीडियो की वजह से मनुष्य का ध्यान बंटता जा रहा है, ऐसे समय में छपी हुई किताबें वास्तव में बहुत जरूरी बदलाव की एक नई किरण लेकर आती हैं.
आम तौर पर कहें तो पठन संस्कृति में कई कारकों की वजह से गिरावट आई है, जैसा कि इस क्षेत्र के कुछ विशेषज्ञों का मानना है. यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि अलग-अलग भाषाओं की अलग-अलग चुनौतियां हैं. अगर हिंदी किताबें बहुत अच्छी तरह से नहीं बिक रही हैं, तो मराठी या अंग्रेजी भाषा के साथ ऐसा नहीं है.
एक आम पाठक के व्यस्त दैनिक जीवन और अन्य सामाजिक-तकनीकी मुद्दों के विभिन्न दबावों के बीच, असंख्य छोटे और बड़े साहित्योत्सव लेखकों और कवियों, प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं के लिए एक उम्मीद जगाने की कोशिश कर रहे हैं, जो एक साथ मिलकर सभी प्रकार की विधाओं - स्थापित और उभरती हुई - का समर्थन करते हैं. भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल ने पुस्तक विक्रेताओं के लिये ‘ज्ञान-प्रसारक पुरस्कार’ रखा है, जो हर वर्ष दिया जाता है.
बुकरू बाल साहित्य महोत्सव सबसे पुराना माना जाता है, जो 2008 में शुरू हुआ था, लेकिन कई लोगों का मानना है कि पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने, पुराने और स्थापित लेखकों को सम्मानित करने और उत्सव के माहौल में नए लेखकों को समाज के सामने लाने का आधुनिक विचार, अधिक उच्चस्तरीय और सर्वसमावेशी जयपुर लिट फेस्ट से शुरू हुआ, जिसका उद्घाटन 2006 में हुआ था.
पिछले दो दशकों मे यह महोत्सव काफी बड़ा हो चुका है. साहित्य उत्सव (खास तौर पर अंग्रेजी किताबों और लेखकों हेतु) की शुरुआत संभवत: यूरोप में 1948-49 (चेल्टेनहैम) के सबसे पुराने साहित्यिक उत्सव से हुई थी. किंतु यहां बताना जरूरी है कि भारत में हिंदी साहित्य सम्मेलन या मराठी साहित्य सम्मेलनों की बहुत पुरानी परंपरा और प्रतिष्ठा रही है. मेरा मानना है कि वे आधुनिक साहित्य उत्सवों के अग्रदूत थे और उन्होंने कई दशकों तक साहित्य को बढ़ावा देने में अच्छा काम किया.
संभवतः तमिल और कन्नड़ भाषाओं में भी पुस्तकों और लेखकों के लिए अपने स्वयं के उत्सव होते रहे थे.जानकारी के लिए बता दूं कि मराठी साहित्य सम्मेलन 100 से अधिक वर्षों से अस्तित्व में है और वे प्रभावी रूप से वाचन परंपरा को बढ़ावा दे रहे हैं. जैसा कि मैंने महाराष्ट्र के साहित्यिक मित्रों से समझा है, मराठी प्रकाशन उद्योग अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है.
पहले, विशुद्ध रूप से पेशेवर लेखक होते थे जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने लिए थोड़ा अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए लिखते थे. अगर किताबें अच्छी बिकती थीं, तो वे अपनी आजीविका के लिए कुछ न कुछ कमा लेते थे. लेकिन लेखन उनका जुनून और पेशा था.
आज, लेखक सुनील सेठी के शब्दों में कहें तो ‘सार्वजनिक क्षेत्र में नए लोग उभर रहे हैं... अभिनेता-संस्मरणकार, सरकारी अधिकारी-उपन्यासकार, राजनीतिज्ञ -कवि और कॉरपोरेट जगत के बड़े लोग लेखक बन रहे हैं.’
किसी भी सभ्य समाज में पुस्तकों, कलाओं और संगीत का महत्व सदैव बहुत अधिक रहा है और आज भी है.पाठक किताबें इसलिए खरीदते हैं क्योंकि वे कहानी पसंद करते हैं, लेखक के विचारों से जुड़ना चाहते हैं या उन्हें विरासत में मिली दुनिया के बारे में बेहतर जानकारी चाहिए होती है. इसलिए लेखकों को समाज में सम्मानजनक स्थान और कद मिलना चाहिए.
‘लिट फेस्ट’ पाठकों को लेखकों तक पहुंचने में मदद करते हैं और इस अर्थ में, वे समाज को जोड़ते हैं और एक पाठक और उसके पसंदीदा लेखक के बीच की बड़ी खाई को पाटते हैं. ‘लिट फेस्ट’ अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिभाशाली लोगों और विशेषज्ञों को एक छत के नीचे लाते हैं और समाज का भला करते हैं. ऐसे साहित्य महोत्सव अमर रहें, ऐसी अपेक्षा मैं करता हूं.