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गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: नकारात्मकता छोड़ लाएं सकारात्मक सोच

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: September 10, 2024 09:17 IST

वैसे तो आत्महत्या जैसी घटनाओं का विभिन्न संस्कृतियों में लंबा इतिहास है, फिर भी समकालीन समाज में जिस तेजी से ये लगातार बढ़ रही हैं वह पूरे विश्व के लिए चिंता का एक बड़ा कारण बन रहा है.

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ठळक मुद्देआत्महत्या की दिशा में आगे बढ़ना और उसे अंजाम देना एक बड़ा जटिल व्यवहार है. यह आर्थिक, पारिवारिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में आ रहे तीव्र परिवर्तन के दबावों से जुड़ा हुआ है. अब व्यक्तिगत स्वातंत्र्य को बढ़ावा देते हुए व्यक्ति की निजी इच्छाओं को अधिक महत्व दिया जा रहा है. 

वैसे तो आत्महत्या जैसी घटनाओं का विभिन्न संस्कृतियों में लंबा इतिहास है, फिर भी समकालीन समाज में जिस तेजी से ये लगातार बढ़ रही हैं वह पूरे विश्व के लिए चिंता का एक बड़ा कारण बन रहा है. आत्महत्या की दिशा में आगे बढ़ना और उसे अंजाम देना एक बड़ा जटिल व्यवहार है. यह आर्थिक, पारिवारिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में आ रहे तीव्र परिवर्तन के दबावों से जुड़ा हुआ है. 

भारत के संदर्भ में आधुनिकीकरण और संयुक्त परिवार का नष्ट होना कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो हमारी सोच को उलट-पलट रहे हैं और व्यक्तिगत स्तर पर व्यवहार को नियंत्रित संयोजित करने की प्रक्रिया को कमजोर कर रहे हैं. औद्योगीकरण तथा नगरीकरण आदि ने समाज में विद्यमान एकीकरण या जोड़ने की क्षमता को लगातार कम किया है. अब व्यक्तिगत स्वातंत्र्य को बढ़ावा देते हुए व्यक्ति की निजी इच्छाओं को अधिक महत्व दिया जा रहा है. 

समाज द्वारा नियमन और निगरानी अनावश्यक दखल मानी जा रही है. इन सबके बीच आदमी की बुद्धि, भावना और सामाजिकता-सबके बीच संतुलन बिगड़ता जा रहा है. लोगों के आपसी रिश्ते बेतरतीब हो रहे हैं. व्यक्तिगत स्तर पर नकारात्मक जीवन की घटनाएं आदमी में विषाद, निराशा और खुद के बारे में नकारात्मक सोच को बढ़ावा दे रही हैं. 

इन सबके बीच आदमी सारे कष्टों से मुक्ति के उपाय के रूप आत्महत्या के  विचार की ओर आकृष्ट होता है. वह खुद अपने आप से और अपनी दुनिया से पलायन करने को उद्यत होता है. बढ़ते भावनात्मक तनाव के बीच मृत्यु का आकर्षण तीव्र हो उठता है. भावनात्मक कठिनाइयों से लड़ते हुए आदमी का आत्म-नियंत्रण टूटने लगता है. 

एक अनुमान के अनुसार विश्व में होने वाले आत्महत्या के कुल मामलों के 78 प्रतिशत निम्न और मध्यम आय वाले देशों से आते हैं. मनुष्यों की मृत्यु के कारणों में पंद्रहवां आत्महत्या का है. आत्महत्या को सीमांत व्यक्तित्व विकृति का एक लक्षण माना गया है. कई मामलों में इसका संबंध मादक द्रव्य सेवन से भी जुड़ा पाया जाता है. इसे खान-पान, चिंता, अवसाद, द्विछोरी (बाई पोलर) विकृति तथा त्रासदी उपरांत विकृति (पीटीएसडी) से भी जुड़ा पाया गया है.

आत्महत्या को रोकना असंभव नहीं है. इसके लिए उचित समय पर इस दिशा में आगे जा रहे व्यक्ति से मिल रहे चेतावनी के संकेत को समझ कर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए. इस बारे में खुले और ईमानदार विमर्श की शुरुआत करनी होगी. तभी मानसिक स्वास्थ्य के इस गंभीर पहलू को समझा जा सकेगा. 

विभिन्न क्षेत्रों के बीच आपसी मेलजोल से हम एक संवेदनशील समाज बना सकेंगे जिसमें हर कोई अपने को उपयोगी, समर्थ और मूल्यवान समझ सके. समाज भी उसे ठीक तरह से समझ कर उसके साथ बर्ताव कर सकेगा. उपनिषद में काम करते हुए सौ साल जीने की कामना की गई है. जीवन अमूल्य है और उसके पालन-पोषण और संरक्षण के लिए सामाजिक स्तर पर तैयारी आवश्यक है.

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