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कपिल सिब्बल का ब्लॉग: लोकतांत्रिक संस्थानों की तोड़ी जा रही है कमर

By कपील सिब्बल | Updated: April 2, 2021 11:32 IST

देश में लोकतांत्रिक संरचनाओं को लगातार कमजोर करने की कोशिश हो रही है. साथ ही केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचित प्रतिनिधियों को 'अपंग' बनाने की कोशिश की जा रही है.

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मोदी लहर को कोई विपक्ष बर्दाश्त नहीं है. भारत के इतिहास ने शायद ही लोकतांत्रिक संरचनाओं के ऐसे विघटन और असहमति की आवाजों को दबाए जाते हुए पहले कभी देखा है, जैसा इस सरकार के कार्यकाल में देखने को मिल रहा है.

इससे भी बुरा यह है कि केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचित प्रतिनिधियों को ऐसे तरीकों से अपंग बना दिया गया है जो कानूनी रूप से संदिग्ध और नैतिक रूप से दिवालिया है.

अगर पिछले दिनों संविधान की धारा 370 को लगभग समाप्त कर जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बदले जाने (2019) की बात करें तो बड़ी चिंता की बात यह है कि डेढ़ साल के बाद भी उसका राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया गया है. 

जम्मू-कश्मीर को वापस राज्य का दर्जा कब?

इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्री का आश्वासन सशर्त था: जब जम्मू कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी. राज्य का दर्जा इसलिए नहीं बहाल किया गया है कि सामान्य स्थिति अभी बहाल नहीं हुई है.

गृह मंत्री ने 13 फरवरी 2021 को, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2021 पर लोकसभा में एक चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा उपयुक्त समय पर दिया जाएगा. 

‘उपयुक्त’ शब्द बताता है कि जब गृह मंत्री चाहेंगे तब ऐसा किया जाएगा. निकट भविष्य में ऐसा नहीं हो सकता है, जब तक कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में उन माध्यमों से फिर से सत्ता हासिल न कर ले जो पूरी तरह से विधिसम्मत नहीं हैं. उस समय तक, लोगों की आकांक्षाओं को विधानसभा में उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता है.

अंतर्निहित लोकतांत्रिक सिद्धांत यह है कि केंद्र शासित प्रदेशों में लाखों लोगों का भाग्य उनके चुने हुए प्रतिनिधियों पर छोड़ दिया जाना चाहिए, न कि उपराज्यपाल या केंद्र के इशारे पर काम करने वाले प्रशासक के हाथों में. गोवा, जो कभी केंद्रशासित प्रदेश था, को 1987 में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया. 

केंद्र के नए दिल्ली मॉडल पर भी सवाल

1993 तक दिल्ली बिना विधायिका के केंद्रशासित प्रदेश बना रहा. उस लोकतांत्रिक सिद्धांत को उलट दिया जा रहा है और यह सरकार अब जम्मू-कश्मीर में नवनिर्मित दिल्ली मॉडल को लागू करना चाहती है.

अब हम जानते हैं कि दिल्ली मॉडल क्या होगा. राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2021 को विधायी मंजूरी मिल गई है. दिल्ली सरकार और उसकी विधानसभा, दोनों की शक्तियों को उनके वैधानिक कामकाज के संदर्भ में पंगु बना दिया गया है. 

एक विधिवत निर्वाचित सरकार का स्थान एक अनिर्वाचित उपराज्यपाल को दे दिया गया है. वह अब सरकार है और विधिवत चुनी हुई सरकार उसकी सहायक है.

अब यह कानून कहता है कि दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में निर्दिष्ट ‘सरकार’ का अर्थ उपराज्यपाल होगा. कई मामलों में, कानून कहता है कि मंत्री या यहां तक कि मंत्रिमंडल के निर्णय पर कोई कार्यकारी कार्रवाई करने से पहले उपराज्यपाल की राय ली जानी चाहिए. 

एक लोकतांत्रिक राजनीति में, यह अकल्पनीय है कि केंद्र का एक नुमाइंदा तय करेगा कि विधिवत चुनी हुई सरकार के फैसलों को क्रियान्वित किया जाए या नहीं. वास्तव में, संशोधित कानून दिल्ली के एनसीटी (नेशनल कैपिटल टैरिटरी) के दैनंदिन के प्रशासन के मामलों पर विचार करने के लिए विधानसभा या उसकी समितियों को प्रतिबंधित करता है और प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में किसी भी जांच का संचालन करने से उन्हें रोकता है.  

पुडुचेरी में टूटी लोकतांत्रिक परंपरा

हमने पुडुचेरी (2016) के मामले में एक समान पैटर्न देखा, जहां उपराज्यपाल प्रशासनिक आदेशों को पलट रहे थे, सरकार को दरकिनार कर रहे थे और सीधे व्हाट्सएप पर नौकरशाहों के साथ संवाद कर रहे थे. 

तत्कालीन उपराज्यपाल ने 4 जुलाई 2017 की रात को तीन पराजित भाजपा उम्मीदवारों को शपथ दिलाने के लिए हर स्थापित मानदंड और परंपरा का उल्लंघन किया, जो अपनी जमानत राशि खो देने के बावजूद केंद्र द्वारा विधायकों के रूप में नामित किए गए थे. ये नामांकन सरकार को अस्थिर करने और गिराने में मदद के उद्देश्य से किए गए थे.

उपराज्यपाल ने सार्वजनिक चावल आपूर्ति योजना के तहत चावल आवंटन बढ़ाने के सरकार के फैसले में भी हस्तक्षेप किया. एक निर्वाचित सरकार की वैध गतिविधियों को विफल करने के इरादे से कई अन्य जन-केंद्रित निर्णयों को लागू करने की अनुमति नहीं थी. यद्यपि 16 फरवरी 2021 को, उपराज्यपाल को बदल दिया गया, लेकिन भाजपा ने कांग्रेस-द्रमुक सरकार को गिराने के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लिया था. 

संदेश स्पष्ट है : लोकतांत्रिक संस्थानों की रीढ़ तोड़ो और विपक्ष शासित सभी राज्यों की सरकारों को गिराने के लिए सभी वैध या अवैध साधनों का उपयोग करो.  

केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचित प्रतिनिधियों को जिस तरह से हाशिये पर डाला गया है, उससे स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ने किस तरह से दिल्ली और पुडुचेरी दोनों जगह हस्तक्षेप किया है. जम्मू-कश्मीर में, लोगों का प्रतिनिधित्व करने और उनकी आवाजों को सुने जाने की बहुत कम उम्मीद है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित करने का काम बड़ी सफाई से किया गया था. 

राज्य का दर्जा वापस पाना एक सपना लगता है जिसके लंबे समय तक पूरा होने की उम्मीद नहीं है. भाजपा शासित राज्यों में ‘लव जिहाद’ को लक्षित करने वाले कानूनों और असम में तथाकथित ‘भूमि जिहाद’ की तरह, यह शेष भारत में ‘अलोकतांत्रिक जिहाद’ है जो चिंताजनक है.

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