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ब्लॉग: नियमों के पालन में मानवीय दृष्टिकोण रखना जरूरी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 2, 2024 14:15 IST

प्राथमिक स्तर पर ही उसे सुलझा लिया जाना चाहिए था। निश्चित रूप से निर्धारित तंत्र का पालन करना शासन के सभी अंगों का कर्तव्य है

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पैसे की तंगी के चलते आईआईटी में प्रवेश से वंचित रह गए छात्र को राहत देकर सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय दृष्टिकोण की मिसाल पेश की है। सर्वोच्च अदालत ने अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) धनबाद में उसके दाखिले का आदेश दिया। दरअसल यूपी के मुजफ्फरनगर के रहने वाले दलित युवक अतुल कुमार को आईआईटी धनबाद में सीट मिली थी, लेकिन वह गरीबी के चलते एडमिशन फीस नहीं भर पाया था। फीस जमा करने की समय सीमा चूकने के कारण आईआईटी धनबाद में उसे प्रवेश नहीं मिला था। अब न्यायालय ने संस्थान से उसे बीटेक पाठ्यक्रम में प्रवेश देने को कहा है।

18 वर्षीय अतुल कुमार के माता-पिता 24 जून तक फीस के रूप में 17,500 रुपए जमा करने में विफल रहे थे, जो आवश्यक शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि थी। इसके बाद अतुल के माता-पिता ने आईआईटी की सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण और मद्रास हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था। लेकिन राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने उनकी मदद करने में असमर्थता जताई।

चूंकि कुमार ने झारखंड के एक केंद्र से जेईई की परीक्षा दी थी, इसलिए उन्होंने झारखंड राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण का भी रुख किया, जिसने उन्हें मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया,  क्योंकि परीक्षा का आयोजन आईआईटी-मद्रास ने किया था।

हाईकोर्ट ने अतुल को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने को कहा था। जाहिर सी बात है कि जिस आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने का लोगों का सपना होता है और जिसके लिए वे अपने बच्चों की पढ़ाई-कोचिंग में लाखों रुपए खर्च करने को तैयार रहते हैं, वह सीट भला कोई केवल साढ़े सत्रह हजार रुपए बचाने के लिए क्यों छोड़ेगा? निश्चित रूप से गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले दिहाड़ी मजदूर का बेटा सचमुच ही इतने पैसे भी समय पर नहीं जुटा पाया होगा कि फीस भर सके।

ऐसे में मामला सर्वोच्च अदालत तक पहुंचने की नौबत ही नहीं आनी चाहिए थी, प्राथमिक स्तर पर ही उसे सुलझा लिया जाना चाहिए था। निश्चित रूप से निर्धारित तंत्र का पालन करना शासन के सभी अंगों का कर्तव्य है लेकिन उसे इतना भी मशीनी ढंग से नहीं किया जाना चाहिए कि कहीं मानवता का गला घुटने लगे। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में जो मिसाल पेश की है, उससे सबको सीख लेने की जरूरत है।

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