राजश्री यादव
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 तारीख यानी कि 8 मार्च को मनाया जाता है. लेकिन, क्या केवल महिला दिवस का मनाया जाना ही महिलाओं की सुरक्षा है? जी नहीं, महिलाओं की सुरक्षा हर दिन की जानी चाहिए. बस इसीलिए शासन और प्रशासन ने खास तौर पर शादीशुदा महिलाओं के लिए नियम और कानून बनाए हुए हैं. यहां जानिए शादीशुदा महिलाओं को दिए गए अधिकारों के बारे में. शादी एक गहरा रिश्ता होता है, जो केवल दो लोगों को ही नहीं बल्कि, दो परिवारों को भी आपस में बांधता है. ऐसे कई मामले ऐसे सामने आते हैं, जिनमें महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं देखने को मिलती है.
अगर आप भी उन्हीं में से एक हैं तो आपको भी सरकार के महिलाओं को दिए गए अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए. ऐसे में इंडियन लीगल राइट्स और उन अधिकारों को जानने के बाद आप और ज्यादा सशक्त हो पाएंगे. इसलिए इन अधिकारों का आपको जरूर पता होना चाहिए.
तलाक का अधिकार : आपको पता होना चाहिए कि हिंदू मैरिज एक्ट सेक्शन 13, 1995 के अंतर्गत एक महिला अपने पति से खुद की सहमति से तलाक ले सकती है. इस तलाक के लिए उसे अपने पति की सहमति भी जरूरी नहीं है. अगर उसका पति बेवफा हो, अत्याचारी हो, निर्दयी हो और शारीरिक और मानसिक अत्याचार करता हो तो महिला उसके खिलाफ न केवल केस दर्ज कर सकती है,
बल्कि उससे मैंटेनेंस चार्ज भी मांग सकती है. इंडियन पैनल कोड सेक्शन 125 के तहत एक पत्नी अपने पति और बच्चे के लिए फाइनेंशियल मेंटेनेंस की मांग कर सकती हो, खासतौर पर तब जब उसका पति ज्यादा कमाता हो.
स्त्रीधन का अधिकार : हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession act) 1956 में सेक्शन 14 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में सेक्शन 27 के तहत अपने पति से मालिकाना हक मांग सकती है, जिसे स्त्री धन भी कहते हैं. इस कानून के तहत स्त्री अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (The protection of Women Against Domestic Violence Act) में सेक्शन 19 A, के अंतर्गत शिकायत दर्ज करा सकती है. इसके अलावा बच्चे की कस्टडी का अधिकार भी महिला को कानून के तहत दिया गया है, जिसमें वो अपने पति से बच्चे की कस्टडी को मांग सकती है. खासतौर पर तब, जब वो बच्चा 5 साल से कम उम्र का हो.
गर्भपात और संपत्ति का अधिकार : महिला को कानून में अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराने का अधिकार भी दिया गया है. इसके लिए उसे अपने पति से इजाजत और सहमति की भी जरूरत नहीं है.मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 यानी चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम,1971 के अंतर्गत एक महिला अपनी प्रेगनेंसी को किसी भी वक्त खत्म कर सकती है,
इसके लिए प्रेगनेंसी का 24 सप्ताह से कम का होना जरूरी है. The Hindu Succession Act, 1956 में 2005 में हुए संशोधन, के बाद एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है. इसके साथ ही महिला अपने पूर्व पति की संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है.
इसके अलावा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (The Hindu Succession Act) 1956 में 2005 में हुए संशोधन, के बाद एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का अधिकार रखती है. इसके साथ ही महिला अपने पूर्व पति की संपत्ति पर अपना अधिकार जता सकती है.