लाइव न्यूज़ :

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: सामाजिक विज्ञान और मानविकी के अध्ययन में देशज ज्ञान की जरूरत

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: September 22, 2022 13:14 IST

मनोविज्ञान के आधुनिक अनुशासन को एकरूपी ढंग से देखने की आदत बन चुकी है जबकि शुरू से ही इसके निर्माण में अच्छी खासी बहुलता है और कई तरह के मनोवैज्ञानिक ज्ञान का सृजन होता आ रहा है।

Open in App
ठळक मुद्देमनोविज्ञान के इतिहास के विश्लेषण में इसके द्वंद्व को लेकर काफी चर्चा अब चल रही है और एक सुगठित मनोविज्ञान और इसकी वैज्ञानिकता प्रश्नांकित हो रही है। इस विषय की निर्मिति में यूरो-अमेरिकी अकादमिक परिवेश मुख्य रहा और शेष दुनिया परिधि पर आ गई।आत्म-निर्भर होने और विश्व-मानवता की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक है कि देशज ज्ञान का आदर किया जाए।

भारत की सभ्यतामूलक जीवन-दृष्टि कई तरह से सर्व-समावेशी थी परंतु दो सदियों के औपनिवेशिक शासन के दौर में इसे व्यवस्थित रूप से हाशिये पर भेजने की मुहिम छेड़ी गई और उसकी जगह लोक-मानस और ज्ञान-विज्ञान का यूरोप से लाया गया नया ढांचा और विषयवस्तु दोनों को भारत में रोपा गया। शिक्षा की इस नई व्यवस्था में भारत के शास्त्रीय ज्ञान और लोक-परंपरा का खास महत्व न था। 

उसे किनारे रख कर उसके प्रति तटस्थ होकर प्राकृतिक विज्ञान और मानविकी के विषयों का अध्यापन और शिक्षण शुरू किया गया। मनोविज्ञान जैसे आधुनिक समाज विज्ञानों का जन्म जिस परिस्थिति में हुआ उसमें ज्ञान की प्राकृतिक विज्ञानों की प्रत्यक्षवादी (पॉजिटिविस्ट) परंपरा बड़ी प्रबल थी और भौतिक विज्ञान की प्रगति आश्चर्यकारी थी। 

उसके तीव्र प्रभाव में सोचने और अध्ययन करने के एक वस्तुवादी (ऑब्जेक्टिव) नजरिये को अपनाना श्रेयस्कर माना गया। यद्यपि मनोविज्ञान में सदैव अनेक धाराएं प्रवाहित होती रही हैं जिनका रिश्ता दार्शनिक चिंतन की विविधता से है फिर भी मुख्य धारा के रूप में जिसका प्रचलन हुआ और जो मनोविज्ञान की शिक्षा-दीक्षा का मानक बना उसमें अध्ययन की बाह्य विश्व की ओर उन्मुख दृष्टि ने निर्णायक रूप से मनोविज्ञान के स्वभाव को बहुत हद तक बदल दिया।

आधुनिक अध्ययन विषयों की व्यवस्था का तकाजा है कि हर अध्ययन-विषय का अपना खास किस्म का अनुशासन बनाया जाए ताकि विषय की परिधि सुनिश्चित हो, जो देश-काल की सीमाओं के बीच निर्मित होता है और उसकी गतिविधियों को नियमित करता है। भारत में सामाजिक विज्ञान की विदेशप्रियता को लेकर चिंता सत्तर के दशक में शुरू हुई। इसके घातक प्रभाव से मुंह मोड़ कर कुछ न करना मानवीय मेधा की हेठी होगी। 

मनोविज्ञान के आधुनिक अनुशासन को एकरूपी ढंग से देखने की आदत बन चुकी है जबकि शुरू से ही इसके निर्माण में अच्छी खासी बहुलता है और कई तरह के मनोवैज्ञानिक ज्ञान का सृजन होता आ रहा है। मनोविज्ञान के इतिहास के विश्लेषण में इसके द्वंद्व को लेकर काफी चर्चा अब चल रही है और एक सुगठित मनोविज्ञान और इसकी वैज्ञानिकता प्रश्नांकित हो रही है। 

इस विषय की निर्मिति में यूरो-अमेरिकी अकादमिक परिवेश मुख्य रहा और शेष दुनिया परिधि पर आ गई। इस तरह ‘अन्य’ हाशिए पर पहुंच गया। इस परिस्थिति में इसके स्वदेशीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई है जिसमें बाह्य देशों के ज्ञान का अपने देश में अनुकूलन और अपने देश के मौलिक ज्ञान का अध्ययन और सृजन दोनों प्रक्रियाएं हो रही हैं। आत्म-निर्भर होने और विश्व-मानवता की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक है कि देशज ज्ञान का आदर किया जाए।

टॅग्स :भारत
Open in App

संबंधित खबरें

क्रिकेटINDW vs SLW, 5th T20I: भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने श्रीलंका का किया सूपड़ा साफ, 5-0 से जीती श्रृंखला

भारतMann Ki Baat: पीएम मोदी ने साल 2025 के आखिरी 'मन की बात' कार्यक्रम को किया संबोधित, भारत के गौरवशाली पलों को याद किया, ऑपरेशन सिंदूर की सराहना की

कारोबारसिगरेट पीना अब होगा महंगा, जल्द बढ़ जाएंगे दाम; सोशल मीडिया पर यूजर्स ले रहे चुटकी

भारतNew Year Eve 2026: घर पर ऐसे मनाएं नए साल का जश्न, परिवार के साथ यादगार रहेगा पल

कारोबारकौन हैं जयश्री उल्लाल? भारतीय मूल की अरबपति हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025 में टॉप पर

भारत अधिक खबरें

भारतइंदौर स्वच्छ शहरः 8 की मौत और 1,000 से अधिक लोग बीमार?, नगर निगम की पाइपलाइन से दूषित पेयजल...

भारतहिंदू अधिक बच्चे पैदा नहीं करेंगे, तो "घर की देखभाल करने के लिए" लोग नहीं बचेंगे?, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा-संभव हो तो 3 बच्चे पैदा करें

भारतअयोध्या राम मंदिरः 2025 के अंतिम दिन श्रद्धालु राम लला के दर्शन के लिए उमडे़, श्री माता वैष्णो देवी, श्री बांके बिहारी और माता मनसा देवी में भारी भीड़, वीडियो

भारतलातूर नगर निगम चुनावः भाजपा और राकांपा की राह अलग?, सभी 70 सीट पर अकेले चुनाव लड़ेगी बीजेपी, एमलएमसी इलेक्शन में भी गठजोड़ नहीं

भारतनोएडा यातायात पुलिसः इन रास्ते पर जानें से बचिए, नए साल में प्रवेश बैन?, 31 दिसंबर और 1 जनवरी को घर से निकलने से पहले देखिए गाइडलाइन