लाइव न्यूज़ :

भेदभाव को बढ़ावा न दे शिक्षा, फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग

By फिरदौस मिर्जा | Updated: July 22, 2021 17:46 IST

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 से लागू है, लेकिन साथ ही हम देख रहे हैं कि स्कूल अलग-अलग बोर्डो, जैसे आईसीएसई, सीबीएसई, स्टेट बोर्ड आदि से संबद्ध हैं.

Open in App
ठळक मुद्देजीवन के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले बच्चों को एक ही स्तर पर शिक्षा पाने से रोक रहा है.अनिवार्य रूप से भारत में शिक्षा प्रणाली में एक वर्ग पदानुक्रम का निर्माण हो रहा है. उच्च अध्ययन के लिए प्रतिस्पर्धा करने का समान अधिकार था.

हम भारतीय सैकड़ों वर्षों से जाति व्यवस्था द्वारा बनाई गई असमानता की बुराई से पीड़ित हैं. कई महान संतों, समाज सुधारकों और नेताओं ने इस संकट के खिलाफ साहसपूर्वक एक लंबी लड़ाई लड़ी है, लेकिन जातिगत पहचान से जुड़े महत्व को कम करने में विफल रहे.

हालांकि उनके प्रयास ने विभिन्न जातियों के बीच की खाई को कुछ हद तक पाटने में मदद की. एक तरफ जहां हम अभी भी जाति की बुराई से जूझ रहे हैं, वहीं एक और खतरे का सामना भी कर रहे हैं, वह है वर्गों में विभाजित होने का. इस विभाजन का स्नेत न केवल सामाजिक या आर्थिक स्थिति की असमानता है बल्कि शैक्षिक मानकों में असमानता भी है.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 से लागू है, लेकिन साथ ही हम देख रहे हैं कि स्कूल अलग-अलग बोर्डो, जैसे आईसीएसई, सीबीएसई, स्टेट बोर्ड आदि से संबद्ध हैं. विभिन्न बोर्डो से संबद्ध स्कूलों में शुल्क संरचना के साथ-साथ उपलब्ध सुविधाओं में भी भिन्नता है. एक तरफ, यह तथ्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले बच्चों को एक ही स्तर पर शिक्षा पाने से रोक रहा है.

तो दूसरी तरफ, ये स्कूल अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले बच्चों के बीच संपर्क को सीमित करके बच्चों के बीच उस वर्ग भेद को मजबूत कर रहे हैं, जो समाज में मौजूद हैं और इससे अनिवार्य रूप से भारत में शिक्षा प्रणाली में एक वर्ग पदानुक्रम का निर्माण हो रहा है. इन विभिन्न विद्यालयों के छात्रों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी भिन्न होती है, और इस तरह शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण, समस्या को और बढ़ाता है.

पहले सभी बच्चे एक ही बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में जाते थे, ज्यादातर सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों में, और प्रवेश प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं था तथा सभी को उच्च माध्यमिक विद्यालय (12 वीं कक्षा) तक पहुंचने तक निष्पक्ष और समान अवसर प्राप्त थे. इस अर्थ में उन सभी के जीवन में एक समान शुरुआत थी और इस प्रकार उच्च अध्ययन के लिए प्रतिस्पर्धा करने का समान अधिकार था.

अब, विभिन्न बोर्डो के शैक्षिक मानक अलग-अलग हैं, आईसीएसई की 8 वीं कक्षा में जो पढ़ाया जाता है वह सीबीएसई की 10 वीं कक्षा में पढ़ाया जाता है, इसी तरह  सीबीएसई का 8 वीं का पाठ्यक्रम राज्य बोर्ड के 10 वीं के पाठ्यक्रम के समान है, साथ ही विभिन्न राज्यों के राज्य बोर्डो के भी पाठ्यक्रम और मूल्यांकन की गुणवत्ता में अंतर है. जब सभी बच्चे कक्षा 12 में पहुंच जाते हैं और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों या उच्च अध्ययन में प्रवेश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो उनके पास समान मौके नहीं होते हैं और कुछ बोर्डो के छात्र अपने स्कूल पाठ्यक्रम में अंतर के कारण उचित अवसर प्राप्त करने में विफल होते हैं.

दूसरी समस्या शहरी और ग्रामीण विभाजन है. आईसीएसई और सीबीएसई से संबद्ध स्कूल ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में माता-पिता की आर्थिक क्षमता को देखते हुए स्थित हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र, आदिवासी बस्तियों और शहरी मलिन बस्तियों को राज्य बोर्डो से संबद्ध सरकारी स्कूलों के लिए छोड़ दिया गया है. शैक्षिक मानकों में यह अंतर शहरी और ग्रामीण आबादी के लिए वर्ग विभाजन के रूप में कार्य करता है.

यह जीवन भर बना रहता है. पिछले दो शैक्षणिक वर्षो से, स्कूल वचरुअल शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. शहरों और गांवों में इंटरनेट की गुणवत्ता और उपलब्धता अलग-अलग है और जनजातीय क्षेत्रों में इंटरनेट सुविधाएं पूरी तरह से नदारद हैं. इस डिजिटल विभाजन ने वंचित बच्चों को शिक्षा विहीन कर दिया है, उनमें से अधिकतर अपने द्वारा सीखे गए कौशल को भूल गए होंगे.

अब, बच्चों के बीच एक और वर्ग भेद होगा- जो डिजिटल रूप से समृद्ध हैं और जो डिजिटल रूप से गरीब हैं. यह शिक्षा के अधिकार के खिलाफ है, जो सभी छात्रों के लिए समानता सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण की अपेक्षा करता है. हम जातिगत असमानता के अमानवीय परिणामों से अवगत हैं; इसलिए, हमें वर्ग पदानुक्रम के निर्माण के बारे में सावधान रहना चाहिए.

जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में अपेक्षित है, प्रत्येक बच्चे को प्रतिष्ठा और अवसर की समानता मिलनी चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति के साथ सम्मान और बंधुत्व भाव से पेश आना चाहिए और इसके लिए असमानता पैदा करने वाले कारणों को दूर करना आवश्यक है. इसके प्रमुख कारणों में से एक विभिन्न शैक्षिक बोर्डो का अस्तित्व है और विभिन्न स्कूलों में विशेषाधिकार प्राप्त लोगों और वंचितों के लिए अलग-अलग सुविधाएं हैं. एक ही समाधान है कि सभी बोर्डो को एक में मिला दिया जाए.

सभी स्कूलों के लिए समान बुनियादी ढांचे और पाठ्यक्रम के लिए मानक निर्धारित किए जाएं, साथ ही स्कूलों में प्रवेश के समय बच्चे के घर और स्कूल के बीच की दूरी का ध्यान रखा जाए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के अनुसार कोई शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए.

मुफ्त शिक्षा देना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है, वह इस कर्तव्य को पूंजीपतियों को नहीं सौंप सकती है और उन्हें इससे लाभ कमाने की अनुमति नहीं दे सकती है. सरकार फंड आदि के बहाने अपने कर्तव्य से नहीं बच सकती. प्रत्येक बच्चे को समान अवसर और समान शिक्षा मिलना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को ‘वर्ग भेद’ के अभिशाप का सामना न करना पड़े.

टॅग्स :शिक्षा मंत्रालयसीबीएसईchildबच्चों की शिक्षा
Open in App

संबंधित खबरें

क्राइम अलर्टमां नहीं हैवान! बेटे समेत 4 बच्चों को बेरहमी से मारा, साइको लेडी किलर ने बताई करतूत; गिरफ्तार

भारतSupreme Court: बांग्लादेश से गर्भवती महिला और उसके बच्चे को भारत आने की अनुमति, कोर्ट ने मानवीय आधार पर लिया फैसला

भारततंत्र की सुस्ती बनाम बच्चों की सुरक्षा  

स्वास्थ्यबच्चों के दुख-गुस्से को नजरअंदाज न करें, सोशल मीडिया प्रतिबंध पर पारिवारिक तनाव कैसे घटाएं

भारतCBSE 10 and 12 Board Exam 2026 date: सीबीएसई ने कक्षा 10वीं, 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के कार्यक्रम की घोषणा की

भारत अधिक खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई