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जलवायु परिवर्तन की मार को हम कब तक अनदेखा कर पाएंगे ?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 18, 2025 06:54 IST

उन्होंने न केवल अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी बल्कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त पोषण को भी रद्द कर दिया है.

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जलवायु परिवर्तन की पहले जो सिर्फ आहट ही सुनाई दे रही थी, अब उसका असर खुलकर दिखना शुरू हो गया है. देश में गर्मी, बारिश और बर्फबारी तीनों का असर एक साथ दिख रहा है. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा में जहां भारी गर्मी पड़ रही है और कई हिस्सों में अभी से लू चलने लगी है, वहीं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड में बारिश-बर्फबारी हुई है.

पंजाब-हरियाणा में बारिश और ओलावृष्टि हुई है तथा राजस्थान समेत 14 राज्यों में बारिश का अनुमान है. भारत में जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर शोध संस्थान आईपीई ग्लोबल के विश्लेषण के अनुसार देश में चरम मौसम की मार अब क्षेत्रीय आधार पर अपना असर दिखा रही है.

जिन इलाकों में कभी बाढ़ आती थी, वे अब सूखे की चपेट में आ रहे हैं और सूखाग्रस्त इलाकों में बाढ़ का संकट मंडराने लगा है. देश में उन जिलों की संख्या बढ़कर 149 हो गई है जो बाढ़ प्रभावित रहते थे, मगर अब सूखाग्रस्त हो रहे हैं. वहीं गुजरात सहित देश के अन्य राज्यों में सूखा प्रभावित रहने वाले 110 जिले अब बाढ़ का सामना करने लगे हैं. जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ भारत में ही नहीं दिख रहा, बल्कि पूरी दुनिया इससे दो-चार हो रही है.

आंकड़े दर्शाते हैं कि 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरेनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है. इसके अलावा पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की वृद्धि दर्ज की गई है.  

इसके बावजूद इस संकट से निपटने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तो अपने दूसरे कार्यकाल के पहले कुछ हफ्तों में ही ऐसे कई आदेशों पर हस्ताक्षर किए और घोषणाएं की हैं, जो जलवायु कार्रवाई के वैश्विक प्रयासों के लिए आपदा साबित हो सकती हैं. उन्होंने न केवल अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी बल्कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त पोषण को भी रद्द कर दिया है.

दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जारी युद्धों से होने वाला प्रदूषण भी जलवायु  परिवर्तन की विभीषिका को तेज कर रहा है. जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है, बल्कि इससे हम मनुष्यों के अस्तित्व को लेकर ही खतरा पैदा हो गया है.

वैश्विक गर्मी बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और हजारों वर्षों से मौजूद बर्फ की मोटी चादरों के पिघलने से वहां दबे ऐसे वायरसों के फिर से सक्रिय होने की आशंका पैदा हो गई है, जो कोविड-19 की ही तरह समूची मानव जाति पर कहर ढाने की क्षमता रखते हैं. अगर अभी भी हम नहीं चेते तो बाद में शायद हमारे हाथ में करने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा!

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