Hindi Language Row: जब किसी राजनेता के पास जनसमर्थन जुटाने का कोई जनकल्याणकारी मुद्दा नहीं रह जाता तो वह क्षेत्रीय मुद्दों को हवा देकर अपने पक्ष में माहौल बनाने के प्रयास में लग जाता है. आजकल ऐसा ही कुछ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बयानों से परिलक्षित हो रहा है. स्टालिन ने कहा है, ‘तमिलनाडु एक और भाषायी युद्ध के लिए तैयार है, क्योंकि यहां भाषायी युद्ध के बीज बोए जा रहे हैं और हम निश्चित रूप से इसके लिए तैयार हैं.’ इसके बाद स्टालिन ने फिर हुंकार भरी कि ‘हिंदी और संस्कृत के कारण 25 उत्तर भारतीय भाषाएं नष्ट हो गईं, अतएव हिंदी एक मुखौटा है और संस्कृत छिपा हुआ चेहरा है.’ दरअसल स्टालिन केंद्र सरकार पर तमिलनाडु में त्रिभाषा नीति के अंतर्गत हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं.
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके त्रिभाषा नीति का विरोध कर रही है जबकि हकीकत यह है कि स्वयं स्टालिन भाषा और सिंधु लिपि के मुद्दों को निहित राजनीतिक स्वार्थ के चलते गरमा रहे हैं. कुछ समय पहले उन्होंने सिंधु लिपि की गूढ़ भाषा संरचना को ज्ञात कर लेने के अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए एक मिलियन अमेरिकी डाॅलर (87 करोड़ रुपए) पुरस्कार स्वरूप देने की घोषणा की है.
उनकी इस मंशा के पीछे द्रविड़ वैचारिक संस्कृति को उत्तर भारतीय फलक पर प्राचीनता के रूप में स्थापित करना है. उनकी इच्छा है कि यदि सिंधु लिपि की प्राचीनता संस्कृत के पूर्व की स्थापित हो जाए तो सिंधु लिपि के साथ-साथ तमिल भाषा की प्राचीनता भी स्थापित हो जाएगी. इस अवधारणा को भी बल मिलेगा कि उत्तर भारतीय आर्य ही दक्षिण के द्रविड़ हैं.
लेकिन भाषाओं के विलोपीकरण के संदर्भ में उन्हें सोचने की जरूरत है कि हिंदी एवं संस्कृत नहीं बल्कि अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व के चलते भारतीय भाषाएं लुप्त हो रही हैं. अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते भारत समेत दुनिया की अनेक मातृभाषाएं अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं. भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक है क्योंकि यहां की 196 भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं.
भारत के बाद अमेरिका की स्थिति चिंताजनक है, जहां की 192 भाषाएं दम तोड़ रही हैं. दुनिया में कुल 6900 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से 2500 भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं. अंतरराष्ट्रीय मातृभाषाओं की विश्व इकाई द्वारा दी गई जानकारी में बताया गया है कि बेलगाम अंग्रेजी इसी तरह से पैर पसारती रही तो एक दशक के भीतर करीब ढाई हजार भाषाएं पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी.
भारत और अमेरिका के बाद इंडोनेशिया की 147 भाषाओं को जानने वाले खत्म हो जाएंगे. दुनिया भर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है. भाषाओं को संरक्षण देने की दृष्टि से ही 21 फरवरी को हर साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की गई थी, लेकिन भाषाओं को बचाने के कोई सार्थक उपाय सामने नहीं आ पाए.
जबकि अंग्रेजी सुरसा के मुख की तरह फैलती ही जा रही है. कोई भी भाषा जब मातृभाषा नहीं रह जाती तो उसके प्रयोग की अनिवार्यता में कमी और उससे मिलने वाले रोजगार मूलक कार्यों में भी कमी आने लगती है. भाषा और बोलियों की विलुप्ति के लिए अंग्रेजी पर दोषारोपण की बजाय स्टालिन हिंदी और संस्कृत पर भाषाओं को नष्ट करने का दोष मढ़ रहे हैं.