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हरीश गुप्ता का ब्लॉग: कर्नाटक के लिए भाजपा ने बदली 75 साल में सेवानिवृत्ति की नीति! अगर हार गए तो क्या होगा...

By हरीश गुप्ता | Updated: May 11, 2023 09:30 IST

कर्नाटक में दिलचस्प बात देखने को मिली. भाजपा को जब यह महसूस हुआ कि दिग्गज लिंगायत नेता येदियुरप्पा की मदद के बिना पार्टी चुनावी लड़ाई नहीं लड़ पाएगी तो पार्टी ने 75 साल में रिटायरमेंट वाली नीति में बदलाव किया और येदियुरप्पा को सर्वशक्तिमान संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल किया.

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भाजपा नेतृत्व ने जब 75 साल से ज्यादा की उम्र के अपने सभी वरिष्ठ नेताओं को सेवानिवृत्त करने और पार्टी या सरकार में कोई भी कार्यकारी पद नहीं देने का निर्णय लिया था तो राजनीति में इसे एक नया मील का पत्थर माना गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नए भाजपा नेतृत्व ने पूरी दृढ़ता के साथ इस नीति को लागू किया था जिससे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को सबसे पहले इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था. 

कुछ वरिष्ठ नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ का सदस्य बना दिया गया था. बी.एस.येदियुरप्पा, आनंदीबेन पटेल समेत कुछ मुख्यमंत्रियों को भी बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया था. वरिष्ठ नेताओं ने नई भाजपा के साथ सामंजस्य स्थापित किया और राज्यपाल आदि बनने का विकल्प चुना. छत्तीसगढ़ में नंद कुमार साय जैसे कुछ नेताओं ने अच्छे मौके पाने के लिए भाजपा का साथ छोड़ दिया. 

पार्टी ने जनरल वी.के. सिंह, राधामोहन सिंह, रमा देवी समेत कई वर्तमान लोकसभा सांसदों को संकेत दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनका पत्ता कट सकता है. लेकिन जब यह महसूस हुआ कि दिग्गज लिंगायत नेता येदियुरप्पा की मदद के बिना पार्टी चुनावी लड़ाई नहीं लड़ पाएगी तो पार्टी ने अपनी नीति में बदलाव किया और येदियुरप्पा को सर्वशक्तिमान संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल किया. मानो इतना ही काफी नहीं था, उन्हें चुनाव अभियान समिति का प्रभारी बना दिया गया. उनका एक बेटा पहले से ही लोकसभा सांसद है और दूसरे बेटे को भी विधानसभा का टिकट दे दिया गया. 

येदियुरप्पा ने ये भी सुनिश्चित किया कि उनके अधिकाधिक समर्थकों को टिकट मिले और उनकी सेवानिवृत्ति नीति को भी दफन कर दिया जाए. कर्नाटक में भाजपा यदि हारी तो अन्य राज्यों में भानुमती का पिटारा खुल सकता है जहां नवंबर-दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

सचिन पायलट को सलाह दे रहे हैं प्रशांत किशोर?

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अनेक क्षेत्रीय दलों सहित अपने कई ग्राहकों की जीत सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रशांत किशोर भले ही अपने राजनीतिक करियर को परखने के लिए इन दिनों बिहार में अपनी ‘जन  सुराज यात्रा’ में व्यस्त हों, लेकिन उनकी चुनाव सर्वेक्षण कंपनी आई-पैक को सचिन पायलट के रूप में एक नया क्लाइंट मिल गया है. चर्चा है कि आई-पैक की टीम राजस्थान में जनता के मूड का पता लगाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण कर रही है. इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट की रणनीति तैयार करने के लिए ये सर्वेक्षण किए जा रहे हैं. 

इस सर्वेक्षण का कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है और इसका मकसद सचिन पायलट के लिए जीत की रणनीति बनाना है. पीसीसी के पूर्व प्रमुख और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट 2020 में अशोक गहलोत के खिलाफ तख्तापलट के असफल प्रयास के बाद अपने पैर जमाने के लिए बेताब हैं. पार्टी हाईकमान ने इस युवा गुर्जर नेता के हितों की रक्षा का वादा किया है. लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थितयों को देखते हुए हाईकमान के लिए गहलोत को हटाना मुश्किल हो सकता है. इसलिए पायलट अब अपनी राह चलना और जीत की रणनीति बनाना चाहते हैं. 

पायलट के करीबी सूत्रों की मानें तो वे राजस्थान में वही भूमिका निभाना चाहते हैं जो जनता दल (एस) ने कर्नाटक में निभाई है, जहां उसके समर्थन के बिना कोई भी सरकार नहीं बन सकती. 200 सदस्यों वाले सदन में, पायलट का उद्देश्य अपनी राजनीतिक पार्टी के लिए 30 सीट तक हासिल करना है. हालांकि अंतिम फैसला होना अभी बाकी है.

भारत की नई अपराध राजधानी का उदय

वे दिन गए जब मुंबई देश के माफिया सरगनाओं की राजधानी हुआ करती थी. वाणिज्यिक राजधानी ने दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन जैसे डॉन को देखा है जिनका महानगर पर आधिपत्य था और पुलिस तथा राजनेता उनकी तरफ से आंखें मूंद रखते थे. कुछ समय के लिए नोएडा और एनसीआर के अन्य हिस्से माफिया डॉन का गढ़ बन गए थे. 2007 में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका दबदबा खत्म हुआ था. 

कुछ समय के लिए हरियाणा के गुरुग्राम और उसके नजदीकी क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर जबरन वसूली और गैंगवार की घटनाएं देखने में आई थीं. लेकिन अब राजधानीवासी यह देखकर हैरान हैं कि दिल्ली अपराधियों का नया गढ़ बनती जा रही है जहां वे खुलेआम अपने कारनामों को अंजाम दे रहे हैं. एक अन्य चौंकाने वाला पहलू यह है कि ये गिरोह पुलिस की नाक के नीचे केंद्रीय तिहाड़ जेल में बेखौफ होकर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं. 

हाल ही में तिहाड़ जेल में दर्जनों पुलिसकर्मियों और जेल के कर्मचारियों के सामने एक गैंगस्टर की हत्या ने राजधानी में कानून व्यवस्था संभालने के जिम्मेदार लोगों की पोल खोल कर रख दी है. यह भी सामने आया है कि दिल्ली पुलिस की एंटी-गैंगस्टर सेल हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है, जिसका कारण सिर्फ वही जानती है. इन प्रतिद्वंद्वी गिरोहों का इस्तेमाल उन शक्तियों द्वारा किया जाता था जो अपना हिसाब चुकाती थीं. 

जिस तरह से ठग सुकेश चंद्रशेखर ने एक प्रमुख व्यवसायी के परिवार से 200 करोड़ रुपए उगाहे और जेल स्टाफ तथा पुलिस को 50 करोड़ रुपए बांटते हुए ऐशो आराम की जिंदगी जी, उसने राजधानी को शर्मसार कर दिया है. नजफगढ़, बवाना, नरेला और दक्षिण दिल्ली के कुछ हिस्सों सहित दिल्ली के कई इलाकों में कोई संपत्ति खरीदी या बेची नहीं जा सकती है.

सोशल मीडिया की लड़ाई  

कई वर्षों में पहली बार कांग्रेस कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सोशल मीडिया की लड़ाई में टक्कर देने में सफल हुई है. आमतौर पर अमित मालवीय के नेतृत्व में भाजपा का सोशल मीडिया सेल कांग्रेस के सोशल मीडिया से मीलों आगे रहा करता है. भाजपा का सेल एजेंडा तय करता था और कांग्रेस हमेशा रक्षात्मक मुद्रा में रहा करती थी. 2014 में मोदी युग के आगमन के बाद डिजिटल स्पेस में प्राय: भाजपा का ही वर्चस्व रहा है. पहली बार उसे कर्नाटक में ही टक्कर मिली है जहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया के लिए गौरव वल्लभ और सुप्रिया श्रीनेत की एक टीम चुनी.

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