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ब्लॉग: गुजरात चुनाव से भाजपा के लिए नए सितारे का उदय और शिवराज सिंह चौहान को अब क्यों होना चाहिए चिंतित?

By हरीश गुप्ता | Published: December 15, 2022 11:02 AM

सी.आर. पाटिल को जब पहली बार जुलाई 2020 में गुजरात भाजपा प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था, तो कई लोग इस बात को लेकर हैरान थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति को क्यों चुना. नतीजा सामने है.

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कांग्रेस पार्टी के ‘निर्वाचित अध्यक्ष’ मल्लिकार्जुन खड़गे को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. हालांकि खड़गे को गांधी परिवार ने चुना था लेकिन वह धीरे-धीरे अपनी सत्ता स्थापित कर रहे हैं. उनके अधिकार का पहला संकेत तब आया जब महासचिव अजय माकन ने राजस्थान मामलों के प्रभारी के पद से इस्तीफा देने की पेशकश की. बिना देरी के खड़गे ने उन्हें जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया. माकन ने कहा था कि वह अपना समय राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को देंगे. लेकिन खड़गे ने इस मुद्दे पर एक शब्द नहीं कहा. 

माकन प्रतीक्षा कर रहे हैं और एक भूमिका की तलाश में हैं. खड़गे ने अपनी कोर टीम में अपनी पसंद के चार सलाहकार भी चुने. खबरों की मानें तो उन्होंने 47 सदस्यीय मजबूत संचालन समिति की पहली बैठक के दौरान एआईसीसी के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश को भी झिड़की दी. बैठक की अध्यक्षता खड़गे कर रहे थे. जब उन्होंने देखा कि रमेश लगातार कुछ बोल रहे हैं और विचार-विमर्श में बाधा डाल रहे हैं तो खड़गे ने उन्हें झिड़कते हुए स्पष्ट संकेत दिया कि प्रोटोकॉल बनाए रखना है. 

सोनिया गांधी ने रमेश की ओर निराशा से देखा. संयोग से खड़गे और जयराम रमेश कर्नाटक से हैं, लेकिन उनके बीच कोई तालमेल नहीं रहा है.

एक नए सितारे सी.आर. पाटिल का उदय

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने क्षितिज पर एक नए सितारे को उभरता हुआ देखा है. राज्य में भाजपा की जीत के बारे में व्यापक रूप से यह माना जा रहा था कि मोदी-शाह की टीम 182 के सदन में 130 सीटों का आंकड़ा पार कर लेगी. लेकिन नतीजों ने हैरान कर दिया क्योंकि भाजपा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए 156 के आंकड़े को छू लिया है. 

गुजरात के बाहर ज्यादा लोग उस व्यक्ति के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं जिसने भाजपा की ऐतिहासिक जीत की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जब सी.आर. पाटिल को पहली बार जुलाई 2020 में गुजरात भाजपा प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था, तो कई लोगों की भौंहें तनी थीं कि प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति को क्यों चुना. लेकिन मोदी के करीबी जानते थे कि पाटिल एक साइलेंट वारियर हैं. वे 2014 और 2019 में लोकसभा चुनावों में मोदी के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी थे. 

जब पाटिल को गुजरात की जिम्मेदारी दी गई थी तो वह सभी 182 सीटें जीतने का लक्ष्य रखना चाहते थे. उनका तर्क था कि अगर भाजपा राज्य की सभी 26 लोकसभा सीटें जीत सकती है, तो पार्टी सभी 182 सीटें क्यों नहीं जीत सकती. लेकिन विचार-विमर्श के बाद इस आकर्षक नारे को छोड़ दिया गया और भाजपा माधव सिंह सोलंकी द्वारा जीते गए 149 सीटों के आंकड़े को पार करने की बात करती रही. 

इससे पता चलता है कि मोदी ने पाटिल को उम्मीदवारों का चयन करने और एक नई रणनीति बनाने की खुली छूट दी थी. सितंबर 2021 में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी सहित पूरे मंत्रिमंडल को बदलने का प्रस्ताव पाटिल का था. पाटिल ने बूथ और यहां तक कि हर गांव में जमीनी स्तर पर नई रणनीति पेश की. पाटिल के मॉडल को 2023 में अन्य चुनावी राज्यों में भी दोहराया जाएगा. 

मोदी ने यह भी सुनिश्चित किया कि गुजरात की बड़ी जीत के बाद पाटिल मीडिया को संबोधित करेंगे और घोषणा करेंगे कि भूपेंद्र पटेल राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे. यह संकेत है कि पाटिल भाजपा में उभर रहे नए नायक हैं. भाजपा में कई लोगों का कहना है कि उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, लेकिन दूसरों का मानना है कि उन्हें संगठन में बड़ी भूमिका दी जा सकती है क्योंकि मोदी आगामी आम चुनाव में 400 लोकसभा सीटों के आंकड़े को पार करना चाह रहे हैं.

चौहान को क्यों चिंतित होना चाहिए

गुजरात में बड़ी जीत के बावजूद हिमाचल प्रदेश और दिल्ली एमसीडी चुनावों में मिली हार ने भाजपा नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है. दो राज्यों में हार के तुरंत बाद भाजपा समझ गई है कि 2023 में चुनाव होने वाले नौ राज्यों में जनादेश पाने के लिए केवल प्रचार काम नहीं करेगा. दिल्ली या हिमाचल प्रदेश में लोकप्रिय जनादेश को पलटने के लिए भाजपा दलबदल की चर्चाओं को भी बढ़ावा देना नहीं चाहती. 

हिमाचल में भाजपा की हार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए शुभ संकेत नहीं है. भाजपा मुख्यालय से आ रही रिपोर्ट्स बताती हैं कि अगर पार्टी ने कुछ मंत्रियों समेत जयराम ठाकुर को हटा दिया होता तो नतीजा कुछ और हो सकता था. इस तरह का प्रयोग गुजरात में सफल रहा है. भाजपा नेतृत्व चौहान को हटाने और उनके खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी से पार पाने के लिए एक नया चेहरा लाने पर विचार कर सकता है.

खुश हैं वसुंधरा !

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया के पास हिमाचल विधानसभा चुनाव के नतीजों से खुश होने की वजहें हैं. यह पहली बार है जब भाजपा नेतृत्व को किसी राज्य में बड़े विद्रोह का सामना करना पड़ा और इसने पार्टी की हार सुनिश्चित की. भाजपा नेतृत्व राजस्थान में पार्टी के चुनाव जीतने की स्थिति में जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत को मुख्यमंत्री के रूप में लाने का इच्छुक है, न कि सिंधिया को. लेकिन हिमाचल की हार ने रेगिस्तानी राज्य में विद्रोह के मुद्दे पर नेतृत्व को चिंतित कर दिया है. 

हिमाचल में तो प्रधानमंत्री ने खुद एक बागी को व्यक्तिगत रूप से फोन किया था. लेकिन उसने प्रधानमंत्री की बात मानने से मना कर दिया और बातचीत को लीक भी कर दिया.

 

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