देश के 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन और लगभग 25 लाख पूर्व सैनिकों को पेंशन में फायदे की घोषणा, जो सरकार ने हाल ही में की है, उसका कौन स्वागत नहीं करेगा? ऐसी घोषणा अब से पहले किसी सरकार ने की हो, मुझे याद नहीं पड़ता। पिछली सरकारों ने संकट-कालों में तरह-तरह की रियायतों की घोषणाएं जरूर की हैं लेकिन 80 करोड़ लोगों को साल भर तक 35 किलो अनाज मुफ्त मिलेगा, यह बहुत बड़ी सौगात है।
कोराना-काल के दो वर्षों में भी सरकार ने असमर्थ लोगों को एकदम कम दाम पर अनाज देकर काफी मदद पहुंचाई थी लेकिन अब भी उन्हें वह अनाज मुफ्त मिला करेगा। आप यह पूछ सकते हैं कि इतना अनाज सरकार मुफ्त में बांट देगी लेकिन वह इसे करेगी कैसे? इस समय सरकारी भंडार में लगभग 4 करोड़ टन अनाज भरा पड़ा है। उसे अपने लोगों का पेट भरने के लिए विदेशों के आगे झोली फैलाने की जरूरत नहीं है। आजकल भारत अनाज का बड़ा निर्यातक है। उसने कुछ पड़ोसी देशों को 50-50 हजार टन गेहूं भी भेंट किया है। इस बार सरकार मुफ्त अनाज वितरण पर 2 लाख करोड़ रु। खर्च करेगी लेकिन इस सरकारी उदारता पर मेरी त्वरित प्रतिक्रिया यह है कि जरूरतमंद लोगों को बिल्कुल मुफ्त अनाज देने की बजाय पहले की तरह उसकी कीमत 5-7 रु। प्रति किलो जरूर रखी जाए वरना इस उदार रियायत पर वह कहावत लागू होगी कि ‘माले-मुफ्त, दिले-बेरहम’!
मुफ्त अनाज की तरह भारत की चिकित्सा और शिक्षा भी मुफ्त होनी चाहिए लेकिन उस पर भी नाम-मात्र का शुल्क जरूर रखा जाना चाहिए। यदि देश के असमर्थ लोगों को अनाज, शिक्षा और चिकित्सा लगभग मुफ्त मिलने लगे तो अगले दस साल में भारत को महासंपन्न और महाशक्तिशाली बनने से कोई रोक नहीं सकता।