पिछले सप्ताह दो शानदार इंसान और बड़े कद वाली शख्सियतें हमारे बीच से विदा हो गईं। संविधान विशेषज्ञ और कानून की दुनिया के महर्षि माने जाने वाले पद्मविभूषण फली एस. नरीमन और रेडियो की मखमली आवाज वाले पद्मश्री अमीन सयानी। दोनों का कैरियर बिल्कुल जुदा रास्ते पर था लेकिन उनकी पहचान में एक कॉमन चीज थी...आवाज!
इसी आवाज ने दोनों को ऐसी बुलंदी पर पहुंचाया जहां पहुंचना आसान नहीं है। आखिर क्या था उनके भीतर जिसने उन्हें इतना बड़ा बना दिया? यदि उन दोनों की जिंदगी पर नजर डालें तो बहुत सी ऐसी बातें सीखी जा सकती हैं जो किसी व्यक्ति को अच्छा इंसान और बेहतरीन प्रोफेशनल बनाने के लिए जरूरी है।
सौभाग्य से मुझे दोनों ही महान हस्तियों के सान्निध्य का मौका मिला। पद्मविभूषण फली नरीमन सांसद भी थे और उनसे मेरी बहुत निकटता थी। उन्होंने मेरी किताब ‘रिंगसाइड’ की प्रस्तावना भी लिखी थी और किताब के विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता भी की थी। जब भी उनके ऑफिस गया तो ढेर सारी किताबों से उन्हें घिरा पाया। मुझे हमेशा यह महसूस हुआ कि वे विश्लेषण की इतनी बारीकियों में घुसते हैं जो किसी बड़े से बड़े विशेषज्ञ के बूते में नहीं होता है।
ऋषि तुल्य जीवन वाले फली नरीमन वाकई कानून के पितामह थे। भारतीय संविधान, नागरिकों के मौलिक अधिकारों, राज्य सरकार की शक्तियों को लेकर उन्होंने ऐसी व्याख्याएं कीं जिसे विधि क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है। पद्मविभूषण फली नरीमन आम आदमी की आवाज बुलंद करने वाले निडर इंसान भी थे। 1972 में वे भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त हुए।
1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित किया तो फली नरीमन ने कहा कि यह असंवैधानिक और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने आपातकाल के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की पेशकश की थी जिसे सरकार ने ठुकरा दिया था।
आपातकाल की आलोचना करते हुए उन्होंने एक अंग्रेजी दैनिक में लेख लिखा। आकाशवाणी पर एक प्रसारण के दौरान भी उन्होंने आपातकाल की आलोचना कर दी। इंदिरा गांधी के सामने इस तरह का बर्ताव करना उस समय बहुत बड़ी बात थी। तब उनकी निडरता को लेकर एक कहावत चल पड़ी थी...फली नरीमन यानी जो डरे नहीं, जो झुके नहीं! लेकिन अंतत: फली नरीमन को सॉलिसिटर जनरल के पद से इस्तीफा देना पड़ा।
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने से भी उन्हें रोक दिया गया। इसके बावजूद वे कभी झुके नहीं। सच की आवाज को हमेशा बुलंद करते रहे। वे हमेशा ही आवाज की बुलंदी के बड़े पैरोकार और लोकतंत्र के रक्षक के रूप में याद किए जाएंगे। उनके सुपुत्र रोहिंटन नरीमन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और भारत के सॉलिसिटर जनरल रहे हैं। मुझे फली नरीमन की जीवनी ‘बिफोर मेमोरी फेड्स...एन ऑटोबायोग्राफी’ की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं।
पारसी परिवार में जन्में फली नरीमन ने लिखा था- ‘मैं एक धर्मनिरपेक्ष भारत में रहा हूं और फला-फूला हूं। यदि ईश्वर ने चाहा तो उचित समय पर मैं एक धर्मनिरपेक्ष भारत में मरना भी चाहूंगा’। क्या धर्मांधता उन्हें चिंतित कर रही थी? इस सवाल का जवाब देने के लिए अब वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन सवाल तो मौजूद है ही!
अब बात करते हैं आवाज की दुनिया के शहंशाह रहे पद्मश्री अमीन सयानी की। उनसे मिलना और उनकी आवाज सुनना दोनों ही दिल को सुकून से भर देता था। मैं लोकमत समाचार के री-लांचिंग समारोह के लिए उन्हें नागपुर भी लेकर आया था।
उनके सबसे मशहूर कार्यक्रम बिनाका गीतमाला की शुरुआत से जुड़ा एक प्रसंग कम ही लोगों को पता है। बात 1952 की है. बी.वी.केसकर भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। उनका मानना था कि उस दौर के नए फिल्मी गीत अश्लील होते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर हिंदी फिल्मी गानों के बजाए जाने पर रोक लगा दी।
फिल्मी गानों के मुरीद बहुत थे इसलिए श्रीलंका से प्रसारित होने वाले रेडियो सीलोन ने इस मौके को भुनाने का निर्णय लिया और बिनाका गीतमाला नाम का कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए आवाज के एक जादूगर की तलाश शुरू हो गई। तलाश खत्म हुई एक नौजवान अमीन सयानी पर. रेडियो सीलोन से आवाज गूंजी ...‘बहनों और भाइयों, आपकी खिदमत में अमीन सयानी का आदाब!’ ...और दुनिया दीवानी हो गई!
1957 में हालांकि फिल्मी गीतों के लिए ऑल इंडिया रेडियो से अलग विविध भारती का निर्माण हुआ लेकिन तब तक अमीन सयानी की बिनाका गीतमाला काफी आगे निकल चुकी थी। निश्चित रूप से अमीन सयानी की आवाज बेमिसाल थी लेकिन क्या केवल उनकी आवाज ने ही उन्हें इतने बड़े कद का बना दिया? मेरा नजरिया यह है कि उनमें एक नयापन था, एक शोखी थी जिसे उन्होंने अपनी मखमली आवाज में पिरो दिया। गीतों का चयन और प्रस्तुति के लिए शब्दों का चयन वे बहुत बारीकी से करते थे। आप किसी भी क्षेत्र में हों, बड़ा कद पाने के लिए ये बारीकियां बहुत जरूरी होती हैं।
फली नरीमन और अमीन सयानी जैसा बनना तभी संभव है जब आप लकीर से अलग हटकर चलें। नई सोच, नए प्रयासों को अपना संगी साथी बनाएं। कुछ ऐसा करें जो आपसे पहले किसी ने नहीं किया हो। जिस रास्ते पर चलें, अडिग रहें, समर्पित रहें, तभी आप औरों से अलग बन पाएंगे। ...दोनों को प्रणाम।