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डॉ. सुनील देवधर का ब्लॉग: अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत समन्वय हैं स्वामी विवेकानंद

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 12, 2020 06:42 IST

धर्म कहता है ईश्वर है और भक्ति से, योग से, ज्ञान से, निष्काम कर्म से उसे पाया जा सकता है तो विवेकानंद सिर्फ इस कथन को पोथियों और पुराणों में पढ़कर नहीं रह गए बल्कि उन्होंने भक्ति की, योग किया, ज्ञानाभ्यास किया, निष्काम कर्माभ्यास किया और ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करने के बाद, तब उन्होंने सिंहनाद किया ‘रिलीजन इज रियलाइजेशन’ अर्थात् धर्म विश्वास मात्र नहीं, धर्म है साक्षात्कार.

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भारत के तेज का पुंजीभूत रूप हैं स्वामी विवेकानंद. भारतवर्ष ने अध्यात्म के क्षेत्र में उच्चतम शिखरों को छुआ है और शिखर स्वामी विवेकानंद की युवावस्था में ही उनके चरणों के नीचे आ चुके थे. फिर भी स्वामीजी उन आचार्यो और पंडितों की तरह न थे जिन्हें पश्चिम की व आधुनिकता की हर बात धर्म के विपरीत लगती है. वे सच्चे अर्थो में भारतीय और अभारतीय, पूर्व और पश्चिम इन भेदों के पार चले गए थे.

स्वामीजी भारतीय परंपरा के दोषों से भी भलीभांति परिचित थे और इन दोषों से वे धर्म को अलग करना चाहते थे. विवेकानंद कहते हैं कोई भी शास्त्र, कोई भी वैज्ञानिक सत्य से, तथ्य से बड़ा नहीं है. स्वामी विवेकानंद भारत के संभवत: पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने पश्चिम के और विज्ञान के इस तरीके की खुलकर प्रशंसा की. उन्होंने स्वयं प्रयोग करके सच और झूठ का निर्णय करने की विज्ञान की विधि को धर्म के क्षेत्र में भी लागू किया. 

धर्म कहता है ईश्वर है और भक्ति से, योग से, ज्ञान से, निष्काम कर्म से उसे पाया जा सकता है तो विवेकानंद सिर्फ इस कथन को पोथियों और पुराणों में पढ़कर नहीं रह गए बल्कि उन्होंने भक्ति की, योग किया, ज्ञानाभ्यास किया, निष्काम कर्माभ्यास किया और ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करने के बाद, तब उन्होंने सिंहनाद किया ‘रिलीजन इज रियलाइजेशन’ अर्थात् धर्म विश्वास मात्र नहीं, धर्म है साक्षात्कार.

जन्म से नरेंद्र दत्त और बाद में स्वामी विवेकानंद के नाम से जगद्विख्यात भारतीय नवजागरण के इस अवधूत का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के संभ्रांत परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के घर में हुआ. 31 मई 1893 भारत के लिए एक अविस्मरणीय दिन है जब स्वामी विवेकानंद मुंबई से जहाज में अमेरिका के लिए रवाना हुए. वहां स्वामीजी के व्याख्यान की सार्वजनिकता, मौलिक तत्परता और उदारता ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया.

आधुनिक भारत का वर्तमान विवेकानंद से प्रेरित स्पंदित और अनुप्राणित है, डॉ. विजय भटकर कहते हैं- अमेरिका ने भारत को जब सुपर कम्प्यूटर देने से इंकार किया तब हमने भारत में ही इसे विकसित करने की चुनौती स्वीकार की. लेकिन चुनौती बड़ी थी, सफलता मिलेगी या नहीं, ये आशंका थी. उस समय विवेकानंद के साहित्य ने मुझे संबल दिया और मेरे आत्मविश्वास को जगाया.  

वेद और गीता का ज्ञान शाश्वत है. विज्ञान तेजी से प्रगति कर रहा है, और विज्ञान की परिणति अध्यात्म में होगी. एक दिन ऐसा आएगा कि जब विज्ञान ही ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध करेगा. विवेकानंद का धर्मप्राण जीवन, धर्म में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का नया विधान हमारे सामने रखता है.

टॅग्स :स्वामी विवेकानंदलोकमत हिंदी समाचारइंडिया
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