लाइव न्यूज़ :

ब्लॉग: कपड़ों के आधार पर भेदभाव की गुलाम मानसिकता के अवशेष

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 20, 2024 10:45 IST

बेंगलुरु में धोती और कुर्ता पहने किसान को शापिंग मॉल सह सिनेमाघर में जाने से रोके जाने की घटना दिखाती है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी हमारे देश के कुछ वर्गों में औपनिवेशिक मानसिकता किस कदर हावी है.

Open in App

बेंगलुरु में धोती और कुर्ता पहने किसान को शापिंग मॉल सह सिनेमाघर में जाने से रोके जाने की घटना दिखाती है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी हमारे देश के कुछ वर्गों में औपनिवेशिक मानसिकता किस कदर हावी है. हालांकि मामले की गूंज कर्नाटक विधानसभा में भी सुनाई दी, जहां सदस्यों ने शाॉपिंग मॉल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की और इसके बाद सरकार ने मॉल को सात दिन के लिए बंद करने का आदेश भी दे दिया है. 

नागरिकों के विरोध प्रदर्शन के बाद संबंधित मॉल के प्रतिनिधियों ने उक्त किसान से माफी मांग कर उसका सत्कार भी किया, लेकिन सवाल यह है कि अगर मामला आगे नहीं बढ़ता तो क्या किसान का अपमान करने वालों को अपनी गलती का अहसास होता? हैरानी की बात यह भी है कि यह घटना एक ऐसे राज्य में हुई है जहां के मुख्यमंत्री खुद धोती पहनते हैं. इसी साल फरवरी में भी बेंगलुरु में ही एक किसान को मेट्रो में यह कहते हुए घुसने से रोक दिया गया था कि उसके कपड़े गंदे हैं, जिसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले का खुद संज्ञान लेते हुए कर्नाटक सरकार को कार्रवाई के लिए नोटिस जारी किया था. 

इसके पहले वर्ष 2021 में भी दिल्ली में एक रेस्टॉरेंट में एक महिला को साड़ी पहनकर आने के कारण प्रवेश नहीं देनी की बात कही गई थी, जिसका राष्ट्रीय महिला आयोग ने संज्ञान लिया था. संविधान की धारा 15 (2) के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को होटल, रेस्टोरेंट, सिनेमाहॉल, ढाबा में लिंग, जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और पहनावे के आधार पर रोका नहीं जा सकता है और अगर ऐसा कोई करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है. 

यही कारण है कि जहां इस तरह के मामले प्रकाश में आ जाते हैं, वहां संबंधित आरोपी माफी मांग कर या अन्य तरह से मामला रफादफा करने की कोशिश करते हैं, अन्यथा क्या पता इस तरह के कितने ही मामले होते होंगे जिनके खिलाफ आवाज नहीं उठाए जाने के कारण लोगों को उसके बारे में पता नहीं चल पाता हो! बेशक इस तरह के मामलों में दोषियों पर कार्रवाई तो होनी ही चाहिए, लेकिन सवाल मानसिकता को बदलने का भी है. आजादी के पहले अंग्रेज भारतीयों के पारंपरिक पहनावों को हेय दृष्टि से देखते थे. दुर्भाग्य से कुछ कथित अभिजात वर्ग के लोग अभी भी अंग्रेजों की उसी औपनिवेशिक मानसिकता के शिकार हैं. निश्चित रूप से इस तरह के मामलों से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए ताकि कपड़ों के आधार पर कोई भेदभाव करने की जुर्रत न कर सके. 

टॅग्स :बेंगलुरुकर्नाटकKarnataka Assembly
Open in App

संबंधित खबरें

क्राइम अलर्टKarnataka: बेलगावी में स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म, 2 आरोपी गिरफ्तार

भारतKarnataka Politics: एक बार फिर ब्रेकफास्ट टेबल पर सिद्धारमैया-शिवकुमार, डिप्टी सीएम के घर पहुंचे CM सिद्धारमैया

क्रिकेटटीम इंडिया से बाहर, 10 चौका, 8 छक्का, 50 गेंद और नाबाद 113 रन?, त्रिपुरा बॉलर पर टूटे इशान किशन

क्रिकेटकर्नाटक राज्य क्रिकेट संघः क्या फिर से बाजी मार पाएंगे पूर्व तेज गेंदबाज वेंकटेश प्रसाद?, केएससीए चुनाव में केएन शांत कुमार दे रहे टक्कर

भारतनाश्ते में इडली और वड़ा के साथ ही सत्ता की खींचतान कम?, आखिर कैसे 60 दिन बाद सीएम सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री शिवकुमार फिर से एकजुट?, जानें कहानी

भारत अधिक खबरें

भारतशशि थरूर को व्लादिमीर पुतिन के लिए राष्ट्रपति के भोज में न्योता, राहुल गांधी और खड़गे को नहीं

भारतIndiGo Crisis: सरकार ने हाई-लेवल जांच के आदेश दिए, DGCA के FDTL ऑर्डर तुरंत प्रभाव से रोके गए

भारतबिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र हुआ अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित, पक्ष और विपक्ष के बीच देखने को मिली हल्की नोकझोंक

भारतBihar: तेजप्रताप यादव ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

भारतबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हुआ लंदन के वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज, संस्थान ने दी बधाई