ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के वित्तीय खर्चों को विकसित देश वहन करें

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: December 3, 2024 06:38 IST2024-12-03T06:38:17+5:302024-12-03T06:38:20+5:30

इसी मुद्दे पर पिछले दिनों सम्पन्न जलवायु परिवर्तन के वैश्विक सम्मेलन (कॉप) में असहमति रही.

Developed countries should bear the financial costs of climate change | ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के वित्तीय खर्चों को विकसित देश वहन करें

ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के वित्तीय खर्चों को विकसित देश वहन करें

दिल्ली में जब हवा जहरीली हुई तो ग्रेप-4 के कानूनों के मुताबिक यहां निर्माण कार्य बंद कर दिए गए. इस कदम से लगभग दस लाख लोगों के सामने पेट भरने का संकट खड़ा हो गया. ये लोग हर दिन निर्माण कार्यों में मजदूरी करते हैं और उनका भरण-पोषण होता है. अब दिल्ली सरकार ऐसे लोगों की आर्थिक मदद करना चाहती है. पिछले महीने बंगाल और हाल ही में तमिलनाडु में आए चक्रवात के बाद लाखों रुपए की फसल नष्ट हो गई और किसानों को राहत देना अनिवार्य है.

भारत में वैसे ही भौगोलिक विविधता है, इसीलिए यहां मौसम का अचानक चरम होना अब अचरज की बात नहीं रह गई है. इसके चलते खेती और विभिन्न रोजगार में लगे लोगों को आर्थिक नुकसान तो हो ही रहा है, विभिन्न तरीके की बीमारियों से उनकी जेब में छेद हो रहा है. भारत इस समय विकासशीलता और विकसितता के संक्रमण काल में है और इस संक्रमण की कुछ स्वाभाविक अनियमितताएं भी उपजती हैं.

विकास की गति तेज करना और कार्बन उत्सर्जन कम करना लगभग विपरीत क्रिया है. यह एक उदाहरण है कि किस तरह दुनिया को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिए गरीब देशों को अधिक वित्तीय मदद की जरूरत है. इसी मुद्दे पर पिछले दिनों सम्पन्न जलवायु परिवर्तन के वैश्विक सम्मेलन (कॉप) में असहमति रही.

दुनिया के लगभग 200 देशों के लोग एक पखवाड़े तक अजरबैजान के बाकू में 29वें वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप 29) में जलवायु संकट के विभिन्न मुद्दों पर विमर्श करते रहे. इस बात पर सहमति भी हुई कि 2035 तक सबसे गरीब देशों को प्रति वर्ष 300 बिलियन डॉलर का भुगतान किया जाए.

हालांकि यह राशि विकासशील देशों द्वारा मांगी गई राशि के एक चौथाई से भी कम है. यही नहीं, यह पैसा बिना किसी शर्त के अनुदान राशि के रूप में नहीं होगा. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) -ग्लोबल वार्मिंग को काम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के तंत्र के अंतर्गत प्रस्तावित ‘जलवायु वित्त’ के स्वरूप पर कोई आम सहमति बन नहीं पाई.

विकसित देश चाहते हैं कि यह संग्रह सार्वजनिक और निजी वित्त पोषण स्रोतों के मिले-जुले स्वरूप में हो, जिसमें ऋण और ‘ऋण अदला-बदली’ शामिल रहे. ये वे देश हैं जो कि धरती के तापमान को बढ़ाने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार हैं.  

यदि कोई विकासशील देश पैसा उधार लेता है तो उसे अमेरिका और यूरोप की तुलना में सात गुना अधिक चुकाना होता है. चूंकि ऐसे देशों में राजनीतिक अस्थिरता या कम क्रेडिट रेटिंग होती है, इसीलिए कर्ज देने वालों की निगाह में गरीब देश निवेश के लिए जोखिम भरे स्थान माने जाते हैं. यह तंत्र दुनिया के देशों में असमानता बढ़ा रहा है.

Web Title: Developed countries should bear the financial costs of climate change

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