Deputy Chief Minister: समर्थकों के बीच ‘दादा’ संबोधन से लोकप्रिय अजित पवार के नाम सबसे ज्यादा छह बार उप मुख्यमंत्री बनने का राष्ट्रीय रिकॉर्ड हो गया है. आश्चर्यजनक यह कि अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने शपथ भी ‘उप मुख्यमंत्री’ के रूप में ली, जबकि इस पद का प्रावधान ही संविधान में नहीं है. दुनिया भर में आदर्श शासन प्रणाली माने जानेवाले लोकतंत्र को भी हमारी राजनीति ने सत्ता का खिलौना बना दिया है. भारत के संविधान में उप मुख्यमंत्री पद न होने पर भी राज्य-दर-राज्य उप मुख्यमंत्रियों की फौज बढ़ती जा रही है.
जाहिर है, यह संवैधानिक नहीं, बल्कि राजनीतिक जरूरत का परिणाम है. देश के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में इस समय कुल मिला कर 26 उप मुख्यमंत्री हैं. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मेघालय, नगालैंड और ओडिशा में दो-दो उप मुख्यमंत्री हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और अरुणाचल में एक-एक उप मुख्यमंत्री है.
तमिलनाडु में तो मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने बेटे उदयनिधि को ही उप मुख्यमंत्री बना दिया. ऐसा करनेवाले वह पहले राजनेता नहीं. प्रकाश सिंह बादल ने भी पंजाब का मुख्यमंत्री रहते हुए अपने बेटे सुखबीर सिंह बादल को उप मुख्यमंत्री बना दिया था. इस खुशफहमी में मत रहिए कि किसी प्रदेश के बड़े आकार के मद्देनजर जनता को बेहतर शासन देने के मकसद से उप मुख्यमंत्री का पद सत्ताधीशों ने गढ़ लिया है, क्योंकि 294 विधानसभा सीटोंवाले पश्चिम बंगाल में एक भी उप मुख्यमंत्री नहीं हैं, जबकि 90 विधानसभा सीटोंवाले छत्तीसगढ़ में दो उप मुख्यमंत्री हैं.
आधे-अधूरे राज्य दिल्ली में भी कभी मनीष सिसोदिया उप मुख्यमंत्री होते थे, जिन्हें शराब घोटाले में गिरफ्तारी के चलते इस्तीफा देना पड़ा. अलग तेलंगाना राज्य बनने से आकार छोटा हो जाने पर आंध्र प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने तो पांच उप मुख्यमंत्री बना रखे थे. जनादेश नहीं मिला, वरना हरियाणा में कांग्रेस की भी मंशा चार उप मुख्यमंत्री बनाने की थी.
दरअसल आजादी के समय ही बिहार में अनुग्रह नारायण सिंह, देश में बननेवाले पहले उप मुख्यमंत्री थे. पर कभी राजनीतिक वरिष्ठता और गठबंधन राजनीति के दबावों से बनी जो ‘व्यवस्था’ अपवादस्वरूप नजर आती थी, वह अब सत्ता के बंदरबांट का फॉर्मूला बन गया है.
एक ही दल को स्पष्ट बहुमत मिलने पर भी उप मुख्यमंत्री बना कर क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधते हुए चुनावी बिसात बिछायी जा रही है. मुख्यमंत्री एक वर्ग का बना कर अन्य प्रमुख वर्गों से उप मुख्यमंत्री बना देने को चुनावी जीत का नया फॉर्मूला मान लिया गया है.