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डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: लोकतंत्र हारा नहीं, लोकतंत्र फिर जीता है

By विजय दर्डा | Updated: June 3, 2024 07:03 IST

कल चुनाव परिणाम के बाद यह तय हो जाएगा कि अगले पांच साल के लिए सत्ता में कौन रहेगा। जीतने वाले को अग्रिम बधाई लेकिन जो जीत कर आएंगे और सत्ता से दूर रह  जाएंगे उन्हें भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। वे भी अपने इलाके के मतदाताओं की उम्मीद लेकर संसद में पहुंचेंगे। कहने का आशय यह है कि इस देश के प्रति जितनी जिम्मेदारी सरकार की होगी, उतनी ही विपक्ष की भी होगी। 

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बस एक दिन का और इंतजार! कल दोपहर बाद तक यह स्पष्ट हो चुका होगा कि भारतीय मतदाताओं ने किस पार्टी को सत्ता में बैठने का आदेश दिया है। मगर एक बात बहुत स्पष्ट है कि परिणाम आने से पहले ही हमारा लोकतंत्र फिर से विजयी हो चुका है। हमारे लोकतंत्र की खासियत यही है कि कोई भी उसे बंधक नहीं बना सकता. इस देश का मतदाता सतर्क और शक्तिशाली है।

निश्चित ही लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सक्रियता के करीब ढाई महीनों में ऐसी कई बातें हुईं, नेताओं के बोल-वचन इतने कड़वे रहे कि चुनाव आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा। देरी से ही सही लेकिन कई पार्टी प्रमुखों को आयोग ने चेतावनी भी दी। ऐसी-ऐसी बातें कही गईं कि मैं शब्दश: उन बातों को यहां लिख भी नहीं सकता। 

महाराष्ट्र में होली से संदर्भित एक पर्व होता है शिमगा जिसमें लोग जानबूझ कर एक-दूसरे को खूब गालियां देते हैं, भड़ास निकालते हैं। हालांकि फिर गले भी मिल लेते हैं। चुनावी रंग शिमगा जैसा ही लग रहा था। पता नहीं बाद में गले मिलेंगे या नहीं! ऐसे नेता भी जहर उगल रहे थे जिनसे वैसी भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। 

मैं राजनीतिक परिवार में पैदा हुआ, 18 साल तक संसदीय लोकतंत्र का प्रतिनिधि रहा हूं। मैंने 1962 के बाद से सारे चुनाव बहुत नजदीक से देखे हैं। यह कहने में संकोच नहीं है कि यह चुनाव भाषा के उपयोग के मामले में बिल्कुल निचले पायदान पर चला गया था। समझ में नहीं आता कि किसे दोष दें, सत्ता में बैठे नेताओं को या विपक्ष के बेचैन नेताओं को? मगर मुझे हमेशा ही अपने मतदाताओं पर भरोसा रहा है। आलाप और विलाप का असली हिसाब-किताब उनसे बेहतर और कोई नहीं कर सकता।

चुनाव प्रचार के दौरान चुनावी गर्मी को सूरज की गर्मी ने और तीखा बना दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे नेताओं का दिमाग गर्म हो गया है. उनका दिमाग उबल रहा है इसीलिए भयंकर शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वैसे नेताओं ने मेहनत बहुत की! सभा और रोड शो के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निजी तौर पर अव्वल रहे। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनके जैसा जोश और किसी में नहीं दिखता।

उन्होंने दो सौ से ज्यादा सभाएं कीं और रोड शो किए. इस दौरान उन्होंने 80 इंटरव्यू भी दिए. कमाल की ऊर्जा है उनमें. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल और प्रियंका गांधी ने सभाओं और रोड शो के मामले में शतक लगाए. आश्चर्य यह हो रहा था कि नेता खुद की बातें कम और अपने विरोधियों की बातें ज्यादा कर रहे थे. वे यह साबित करने पर तुले हुए थे कि सामने वाला बहुत बेकार है। 

इन सबके बीच मुझे जवाहरलाल नेहरू की पहले चुनाव में कही गई बातें याद आती रहीं कि ‘गलत तरीके से जीतने से बेहतर है कि सही तरीके से पराजित हो।’ इतना ही नहीं, 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी रिखबचंद शर्मा के प्रचार के लिए जवाहरलाल नेहरू नागपुर आए थे। उन्होंने सभा में शर्मा के बारे में तो कुछ नहीं कहा लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी लोकनायक बापूजी यानी माधव श्रीहरि अणे के संदर्भ में कहा कि वे बहुत ही भले व्यक्ति हैं। उस चुनाव में लोकनायक अणे विजयी हुए। मगर वह सब बीती बातें हैं।

हां जो मतदाता वोट देने के लिए बाहर नहीं निकलते उन्हें लेकर हमेशा ही मेरी आपत्ति रही है। लोकसभा चुनाव के कुल सात चरणों में से छह चरणों के आंकड़ों के मुताबिक 29 करोड़ लोगों ने मतदान नहीं किया। यह आंकड़ा अमेरिका के पंजीकृत करीब 24 करोड़ वोटर्स से भी लगभग 5 करोड़ ज्यादा है। ये तुलना मैं इसलिए कर रहा हूं ताकि आप यह समझ सकें कि हमारा लोकतंत्र कितना विशाल है।

अमेरिका और मैक्सिको की यात्रा के दौरान वहां लोगों ने बड़े आश्चर्य के साथ मुझसे पूछा कि इतने बड़े पैमाने पर शांति के साथ चुनाव कैसे हो जाते हैं? भारतीय लोकतंत्र की विशालता पूरी दुनिया के लिए आश्चर्यजनक है। विशालता की इस महानता को यदि बरकरार रखना है तो हर किसी को यह समझना होगा कि मतदान क्यों जरूरी है और जो मतदान नहीं करता है उसे उसके कुछ अधिकारों से वंचित भी करने में कोई हर्ज नहीं है।

मतदान को मैं पूजा, प्रार्थना और इबादत की दृष्टि से देखता हूं। लोकतंत्र है तो आजादी हमारी किस्मत में है। दुनिया के 50 से अधिक देशों में लोगों के पास आज भी मताधिकार नहीं है। वहां जिंदगी गुलामों की तरह है। इसीलिए मैं यह मानता हूं कि साफ-सुथरे तरीके और शांति के साथ चुनाव होना भारतीय लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा जाना चाहिए।

एक बात और कहना चाहता हूं कि कल चुनाव परिणाम के बाद यह तय हो जाएगा कि अगले पांच साल के लिए सत्ता में कौन रहेगा। जीतने वाले को अग्रिम बधाई लेकिन जो जीत कर आएंगे और सत्ता से दूर रह  जाएंगे उन्हें भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। वे भी अपने इलाके के मतदाताओं की उम्मीद लेकर संसद में पहुंचेंगे। कहने का आशय यह है कि इस देश के प्रति जितनी जिम्मेदारी सरकार की होगी, उतनी ही विपक्ष की भी होगी। 

फिलहाल यह वक्त सभी के लिए मिलकर लोकतंत्र की दिवाली मनाने का है। देश को विकास के रास्ते पर इतना आगे पहुंचाने का है कि हम दुनिया की तीसरी महाशक्ति भी बनें और आम आदमी का घर उसके पैसों से आबाद हो। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की जरूरत न पड़े। सशक्त और समर्थ भारत की कल्पना को हम सबको मिलकर आकार देना है...!

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