"गाड़ी की गति की दिशा में पहला डिब्बा महिलाओं के लिए आरक्षित है, पुरुष यात्रियों से अनुरोध है कि वो महिलाओं के लिए आरक्षित डिब्बे में ना चढे़ं" मेट्रो में रोज सफर करते हुए शम्मी नारंग की आवाज में ये लाइन अब मेरे कानों में गूंजने लगी है। इलाहाबाद से आई हूं तो मेरे लिए मेट्रो का सफर बहुत अनोखा अनुभव कराने वाला था, लेकिन समय के साथ मेट्रो में सफर करना मेरे लिए मुश्किल भरा होता जा रहा है। महिला कोच में सफर करने के बाद भी मुझे हर सुबह अलग-अलग परेशानियों से जूझना पड़ता है। आप भी अगर रोज मेट्रो में सफर कर रही हैं तो इन सारी समस्या का सामना करती होंगी।
ज्यादा जरूरतमंद को सीट देना कब सीखेंगी लड़कियां
कहते हैं दिल्ली दिलवालों की होती है लेकिन चार महीने यहां गुजारने के बाद मुझे दिल्ली सिर्फ दिखावे की लगी। ये एक ऐसा शहर है जो मुझे अंदर से खोखला लगा। मुझे लगता है यहां के लोग ऊपरी दिखावे में ज्यादा विश्वास रखते हैं। इसका उदाहरण आज सुबह ही मंडी हाउस मेट्रो से जब मैंने ब्लू-लाइन मेट्रो मली तो एक कड़वा अनुभव हुआ। भीड़ की वजह मुझे लेडीज कम्पार्टमेंट में सीट नहीं मिली। लेकिन मुझे ज्यादा दुख इस बात से हुआ कि मेरे साथ ही बुजुर्ग महिला को पूरा सफर खड़े रहकर करना पड़ा। सीनियर सिटिजन के लिए आरक्षित सीट पर बैठी दो लड़कियां कानों में इयरफोन लगाए इतनी मस्त थीं की उन्हें अपने सामने खड़ी वो बूढ़ी औरत दिखी ही नहीं जिसकी उम्र 60 साल से कम नहीं होगी।
थोड़ा सा दूर हटने के लिए कहने से पहले चार बार सोच लीजिए जनाब
मुझे ऐसा लगता है की नार्मल कोच में सफर करते हुए हम लड़कों को थोड़ा दूर हटने या आपनी पर्सनल स्पेस से दूर जाने के लिए कह सकते हैं लेकिन महिला कोच में अगर आपने किसी भी महिला को दूर हटने को कहा तो एक साथ दस-बारह आंखे और तरह-तरह के एक्सप्रेशन आपको झेलने पड़ जाते हैं। कमाल की बात तो ये है कि दूर हटने के लिए कहने का कोई फायदा भी नहीं होता। सामने वाला या तो ईयरफोन की आड़ में आपको इग्नोर कर देगा या आपको ऐसे देखेगा कि आप आपनी ही जगह में खड़े होकर सफर तय कर लेंगे।
"बहरी" लड़कियां
दिल्ली मेट्रो में लोग बहरे होकर भी चलते हैं। अगर कभी मेट्रो के महिला कोच में सफर किया है तो जानते होंगे की हर दूसरी लड़की या महिला के कान में ईयरफोन ठूसा हुआ है। वो ना किसी से बात करना चाहती है ना सामने वाली की जरूरत को सुनना चाहती हैं। किसी ने कुछ कहा भी तो दो बार उस बात को दोहराकर सुनती हैं तब कुछ जवाब में एक्शन लेती हैं।
गेट पर ही लटकी रहती हैं महिलाएं
पूरे कोच में भले ही सीट खाली न हो लेकिन अंदर की जगह जरूर खाली होती है बावजूद उसके खड़ी हुई ज्यादातर महिलाएं गेट पर ही टिकी रहती हैं। लम्बा सफर तय करना हो तो भी गेट पर ही लटकर खड़ी रहती हैं जिससे आने-जाने वालों को समस्या होती है। ऐसे में अक्सर चढ़ने वाले और उतरने वालों के बीच धक्का-मुक्की भी होती है लेकिन इसका कोई असर लोगों पर नहीं पड़ता।