अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली का सर्वर हैक होने के मामले में आखिरकार हैकर्स द्वारा क्रिप्टो में 200 करोड़ रुपए मांगे जाने से यह तो पता चल गया है कि यह हैकिंग फिरौती के लिए ही की गई है लेकिन इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि जिस डिजिटल युग में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। वह पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है।
इंटरनेट ने हमारी जिंदगी को आसान बनाने और दुनिया की सारी चीजों तक पहुंच बनाने में बहुत बड़ी मदद की है। आज शायद ही कोई ऐसी चीज हो, जिसके बारे में इंटरनेट पर जानकारी न मिल सके। डिजिटलीकरण ने कागजी कार्यवाही के बहुत भारी और उबाऊ बोझ से हमें बचाया है। आज कोई भी दस्तावेज देखने के लिए हमें कागजों को खंगालने की जरूरत नहीं पड़ती।
कम्प्यूटर पर एक क्लिक में हमें सारी जानकारी आसामी से उपलब्ध हो जाती है लेकिन दुनिया भर में होने वाली हैकिंग की घटनाओं ने दिखाया है कि इंटरनेट ने हमारी जिंदगी को जितना आसान बनाया है, खतरा भी उतना ही बढ़ा है। ताजा मामले में एम्स-दिल्ली के सर्वर में सेंधमारी से 3-4 करोड़ मरीजों का डाटा प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों, नौकरशाहों और न्यायाधीशों समेत कई अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों (वीआईपी) का डाटा भी शामिल है।
इस हैकिंग में चीन का हाथ होने की आशंका भी कुछ लोग जता रहे हैं लेकिन दिलचस्प यह है कि दुनिया में हैकिंग की जो बड़ी घटनाएं हुई हैं उनसे चीन भी अछूता नहीं रहा है। इसी साल जुलाई महीने में चीन के एक हैकर ने लगभग एक अरब चीनी नागरिकों का निजी डाटा चुराने का दावा किया था। जबकि चीन के हैकर्स ने भारत में वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक पर साइबर हमला करने की कोशिश की थी।
अक्तूबर 2020 में मुंबई में पावर ग्रिड फेल होने में भी अमेरिका की मैसाचुसेट्स स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकार्डेड फ्यूचर ने चीन समर्थित हैकर्स समूह का हाथ होने की बात कही थी। वैसे तो हैकिंग की अधिकांश घटनाओं में हैकरों का पता नहीं चल पाता है लेकिन कुछ ऐसे भी बड़े हैकर हैं जिनके बारे में दुनिया जानती है।
जोनाथन जेम्स नाम के हैकर ने तो 1999 में मात्र 15 साल की उम्र में ही अपने मनोरंजन के लिए नासा के नेटवर्क को हैक कर लिया था। जिसके कारण नासा को तीन सप्ताह तक अपना काम बंद रखना पड़ा था लेकिन इसके बाद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां इस तरह से उसके पीछे पड़ गईं कि 2008 में उसने आत्महत्या ही कर ली। उसके अलावा केविन मिटनिक, अल्बर्ट गोंजालेज, केविन पॉलसन, गैरी मैकिनॉन जैसे कई नाम हैं, जिन्होंने अपने कारनामों से दुनिया में हड़कंप मचा दिया था।
आज जरूरत यह है कि हैकिंग के खिलाफ पूरी दुनिया एकजुट हो और ऐसी व्यवस्था बने कि हैकर्स दुनिया के चाहे किसी भी कोने में अपराध करें, वे बचने न पाएं। यह इसलिए भी जरूरी है कि हैकर्स सुदूर देश में बैठकर अपने कारनामों को अंजाम देते हैं और बिना अंतरराष्ट्रीय सहयोग के उन्हें पकड़ पाना संभव नहीं हो पाता।
बेशक तकनीक के बहुत सारे फायदे हैं लेकिन उपयोग करने वाले के इरादे अगर गलत हों तो उनका उतना ही दुरुपयोग भी हो सकता है। इसलिए तकनीक में महारत हासिल करने वालों का सहयोग लेकर सरकारों को अपनी एथिकल हैकिंग टीमों को मजबूत करने पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि बुरे इरादों वाले हैकर्स का मुकाबला किया जा सके।