साईश रेडकर
मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज एक दूरदर्शी नेता थे. वे साहस, न्याय और स्वराज्य की भावना से परिपूर्ण थे. 1630 में जन्मे शिवाजी ने दमनकारी मुगल और आदिलशाही शासकों के खिलाफ उठकर हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की. यह एक ऐसा साम्राज्य था जहां लोग जाति या धर्म की परवाह किए बिना सम्मान और स्वतंत्रता के साथ जीवन-यापन कर सकते थे. शिवाजी महाराज को उनकी मां जीजाबाई रामायण और महाभारत की प्रेरक कथाएं सुनाती थीं और इसी के फलस्वरूप उन्होंने बहुत कम उम्र में ही स्वराज्य का सपना देखना शुरु कर दिया था.
दादोजी कोंडदेव के मार्गदर्शन में उन्होंने युद्धकला, शासन कला पर प्रभुत्व हासिल किया. विदेशी शासकों की सेवा करने वाले मिशनरियों के विपरीत उन्होंने लोगों का कल्याण करने वाले स्वतंत्र राज्य की कल्पना की. उनका शासन न्याय, समानता और दुर्बलों की सुरक्षा के तीन मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित था.
उन्होंने भारत के तट को विदेशी आक्रमणों से बचाने के लिए एक अनुशासित सैन्य बल तैयार किया और अपनी नौसैनिक शक्ति का नमूना पेश किया. उनके रायगढ़, प्रतापगढ़ और सिंधुदुर्ग किले सामर्थ्य और रणनीति के प्रतीक बने. शिवाजी महाराज एक धर्मनिरपेक्ष शासक थे जो सभी धर्मों का सम्मान करते थे.
उनकी सेना ने सभी पृष्ठभूमि के योद्धाओं का स्वागत किया और उनके प्रशासन ने महिलाओं की सुरक्षा के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि किसानों पर अत्याचार न किया जाए. अपने समय के अन्य शासकों की तरह उन्होंने हिंदुओं पर लागू होने वाले अत्याचारी जजिया कर को रद्द किया और यह सुनिश्चित किया कि युद्ध के दौरान उनके सैनिक महिलाओं या मंदिरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएं.
6 जून, 1674 को हिंदवी स्वराज की औपचारिक स्थापना करने के बाद रायगढ़ किले में मराठा साम्राज्य के छत्रपति के रूप में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया. उनका शासन सरकार, सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक पुनरुद्धार का स्वर्ण काल था. 1680 में उनकी मृत्यु के बाद भी उनके आदर्शों ने भावी पीढ़ियों को प्रेरणा दी. उनके उत्तराकारियों ने, विशेष तौर पर पेशवाओं ने मराठा साम्राज्य का विस्तार किया.
इस वजह से वे भारत में सबसे शक्तिशाली सैन्यबलों में से एक बन गए. उनका जीवन राष्ट्रवाद और दूरदर्शिता का आदर्श है. छत्रपति शिवाजी महाराज सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, वह एक राजनयिक, न्यायप्रिय शासक और स्वराज के पुरोधा थे. उनके शासनकाल की एकता और स्वराज्य की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है.
हिंदवी स्वराज्य केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह एक क्रांति थी जिसने भारत के लोगों में गर्व, गरिमा और स्वावलंबन की भावना को जगाया और बढ़ाया. उनकी विरासत लाखों लोगों को न्याय, स्वाभिमान और राष्ट्रीय गौरव के लिए खड़े होने के लिए प्रेरित करती है.