अवधेश कुमार
यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राज्यों के सामने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने के रास्ते में प्रत्यक्ष कोई बाधा नहीं रही.
हालांकि न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण देने का आदेश नहीं दिया है, पर इसे खारिज भी नहीं किया है. उसने कहा है कि राज्य सरकारें चाहें तो वे पदोन्नति में आरक्षण दे सकती हैं.
वस्तुत: संविधान के अनुच्छेद 16-4 ए और 16-4 बी के तहत अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान है. किंतु इसके विरुद्ध किसी न किसी न्यायालय में मामला लगातार चलता रहा है.
इस समय उच्चतम न्यायालय के सामने 2006 में अपने ही द्वारा दिए गए फैसले पर पुनर्विचार का मामला था. समस्या इसलिए भी आ गई थी कि पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर दिल्ली, बंबई और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों ने अलग-अलग फैसला दिया था.
सबसे अंतिम फैसला अगस्त 2017 का दिल्ली उच्च न्यायालय का था. इसमें कार्मिक विभाग के 1997 के प्रोन्नति में आरक्षण को अनिश्चितकाल तक जारी रखने के ज्ञापन को रद्द कर दिया गया था.
प्रमोशन में आरक्षण पर एम नागराज फैसला
इसने 2006 में उच्चतम न्यायालय के फैसले को आधार बनाया था. 2006 के इस फैसले को एम नागराज फैसला कहा जाता है.
एम नागराज फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये आरक्षण तभी मिले जब सरकार संख्यात्मक आधार पर सिद्ध कर दे कि इस वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, उसका पिछड़ापन कायम है तथा इसे लागू करने पर सकल प्रशासनिक दक्षता प्रभावित नहीं होगी.
सर्वोच्च अदालत ने साथ ही आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा करने, क्रीमी लेयर लागू करने तथा इसे अनिश्चितकाल तक जारी न रखने की बात थी.
पदोन्नति में आरक्षण के समर्थकों, केंद्र व कई राज्य सरकारों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था जिसने एम नागराज फैसले पर पुनर्विचार करना स्वीकार किया था.
उच्चतम न्यायालय ने इस मांग को ठुकरा दिया कि 2006 के नागराज मामले संबंधी फैसले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए. न्यायालय ने उस फैसले को सही ठहराया है. बस, फैसले का वह भाग खत्म किया है जिसमें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए संख्यात्मक आंकड़ा देने की शर्त तय की गई थी.
अभी भी अपर्याप्त प्रतिनिधित्व, प्रशासनिक दक्षता एवं क्रीमी लेयर की शर्त है, पर यह सरकारों पर छोड़ा गया है, इसलिए प्रोन्नति में आरक्षण के लिए वे खुद को राजनीतिक रूप से स्वतंत्र मान रहे हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और टिप्पणीकार हैं।)