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ब्लॉग: महत्वपूर्ण सुधारों की धीमी हुई रफ्तार

By हरीश गुप्ता | Published: November 09, 2023 11:39 AM

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे चाहे जो भी हों, पिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई सुधार प्रक्रिया थम गई है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 में अब तक के सबसे बड़े सुधार के रूप में पारित किया गया था, लेकिन नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है।

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ठळक मुद्देपिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई सुधार प्रक्रिया थम गई हैराष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) भी पिछले चार वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ हैभाजपा सरकार कोई भी बड़ा चुनावी सुधार लाने में असमर्थ रही है

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे चाहे जो भी हों, पिछले कुछ वर्षों के दौरान भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई सुधार प्रक्रिया थम गई है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 में अब तक के सबसे बड़े सुधार के रूप में पारित किया गया था, लेकिन नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है।

अधिनियम के तहत भारतीय नागरिकता उन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को दी जानी है जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं और जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है। अधिनियम में मुसलमानों का उल्लेख नहीं है। इस ऐतिहासिक अधिनियम से संबंधित नियम बनाने के लिए गृह मंत्रालय ने आठवीं बार एक्सटेंशन मांगा है।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) भी पिछले चार वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। इस प्रक्रिया में जनगणना 2021 का पहला चरण कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण स्थगित कर दिया गया था। कोविड खत्म हो गया है लेकिन देश में जनगणना होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।

जनगणना में देरी से परिसीमन की प्रक्रिया भी पिछड़ जाएगी, लेकिन मोदी सरकार 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद जनगणना कराने के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा सरकार कोई भी बड़ा चुनावी सुधार लाने में असमर्थ रही है। हालांकि वह चुनावों में कालेधन को खत्म करने के लिए चुनावी बांड को एक प्रमुख हथियार के रूप में प्रदर्शित कर रही है।

यह अलग बात है कि मौजूदा विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा की गई भारी नगदी और सामान की बरामदगी इन दावों को झुठलाती है। अभी तक प्रधानमंत्री मोदी राज्यों और राजनीतिक दलों से कह रहे थे कि वे मुफ्त की संस्कृति को बढ़ावा न दें क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। अब भाजपा विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए रेवड़ियों का वादा करने में सबसे आगे है और प्रतिद्वंद्वियों को काफी पीछे छोड़ दिया है।

श्रम कानून ठंडे बस्ते में

मोदी सरकार ने औद्योगिक विकास में तेजी लाने और एक नई कार्य संस्कृति लाने के लिए एक नए युग की शुरुआत करते हुए श्रम क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा सुधार किया। श्रम मंत्रालय द्वारा लेबर कोड 2019-20 में बनाए गए थे। लगभग चार साल होने को हैं लेकिन श्रम संहिताएं अधिसूचित नहीं की गईं।

इन संहिताओं के अभाव में विदेशी निवेशकों ने औद्योगिक उत्पादन में उदासीनता बरती है। 29 केंद्रीय श्रम कानूनों के जटिल जाल को तर्कसंगत करने के उद्देश्य से चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन को अनिश्चितकाल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। आरएसएस से जुड़े बीएमएस सहित सभी ट्रेड यूनियनों ने इन संहिताओं को श्रमिक विरोधी बताया है।

यह संहिता वेतन, औद्योगिक संबंध, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति व सामाजिक सुरक्षा से संबंधित है। चूंकि श्रम मुख्य रूप से राज्य का विषय है इसलिए कुछ राज्यों ने विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई लाने के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अपने कानून में सुधार करना शुरू कर दिया है। प्रमुख संशोधनों में से एक यह है कि 100 या अधिक कर्मचारियों वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों को एक भी स्थायी या अस्थायी कर्मचारी को नौकरी से निकालने या व्यावसायिक इकाइयों को बंद करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी।

हालांकि नई औद्योगिक संबंध संहिता इस सीमा को बढ़ाकर 300 कर देती है और राज्यों को 300 से भी अधिक सीमा निर्धारित करने की अनुमति देती है। सुधारों से निश्चित अवधि के अनुबंधों पर लोगों को रोजगार देने पर लगा मौजूदा प्रतिबंध भी हट जाएगा। असम, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने अपने राज्य में श्रमिकों के लिए अधिकतम दैनिक कार्यदिवस को बढ़ाकर 12 घंटे करने के लिए अधिसूचनाएं जारी कीं।

लेकिन इसके बाद राजस्थान और यूपी ने अपना नोटिफिकेशन वापस ले लिया लेकिन कर्नाटक ने एप्पल के लिए फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन जैसी आईफोन से संबंधित इकाइयों को असेंबल करने के लिए कारखानों में 12 घंटे की शिफ्ट और महिलाओं के लिए रात में काम करने की अनुमति देने वाले श्रम कानून लाए। अब यूपी और तमिलनाडु में भी ऐसे ही बदलाव होने की संभावना है।लेकिन केंद्र मूकदर्शक बना हुआ है।

डाटा सुरक्षा नियमों की कवायद धीमी

लंबी लड़ाई के बाद मोदी सरकार डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट पारित कराने में सफल रही लेकिन सबसे विवादास्पद अधिनियम के नियमों को मंजूरी देना उतना ही कठिन कार्य है और शायद यह संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भी पारित न हो पाए। इससे अधिनियमित कानून के कार्यान्वयन में और देरी होने की संभावना है।

हालांकि नियम तैयार हैं, लेकिन सरकार इसे पारित कराने की जल्दी में नहीं दिख रही है। सरकार इन नियमों पर जनता की राय लेने पर विचार कर रही है क्योंकि अधिकांश कंपनियां अधिनियम के कुछ प्रावधानों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और उदार दृष्टिकोण चाहती हैं।

पता चला है कि कुछ प्रमुख उद्योगपति डीपीडीपी नियमों को अंतिम रूप देने के बाद उन्हें लागू करने के लिए दो साल की अवधि चाहते हैं। डीपीडीपी मोबाइल फोन, ईमेल अकाउंट या इंटरनेट के किसी अन्य रूप का उपयोग करने वाले लगभग हर भारतीय को प्रभावित करता है। नियम अधिसूचित होने के बाद भी एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड की स्थापना की जाएगी।

डिजिटल गोपनीयता के लिए भारत के पहले समर्पित कानून के रूप में, डीपीडीपी अधिनियम डिजिटल रूप में व्यक्तिगत जानकारी के संग्रह और प्रसंस्करण का व्यापक सिद्धांत प्रदान करता है। अधिनियम इस अर्थ में कठोर है कि इसमें डाटा उल्लंघन के प्रत्येक मामले के लिए 250 करोड़ रुपए तक के मौद्रिक दंड और बार-बार उल्लंघन के मामले में संस्थाओं को ब्लॉक करने का प्रावधान है। आधार, बैंक खातों और अन्य विवरणों के डाटा लीक के मामलों में चिंताजनक वृद्धि से सरकार चिंतित है। हैकर्स ने फेसबुक खाताधारकों में भी सेंध लगा उन्हें असुरक्षित बना दिया है।

टॅग्स :मोदी सरकारCentral Governmentएनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजिका)NRCCCA
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