देश में 18वीं लोकसभा के चुनाव अंतिम चरण में हैं और संचार के अत्याधुनिक साधनों के इस्तेमाल के साथ राजनीतिक दल खूब आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। भाषणों की गरिमा को लेकर चुनाव आयोग में शिकायतों के ढेर लग गए हैं। इसके बीच पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू खास तौर पर याद आते हैं, जिनकी आज 60वीं पुण्यतिथि है क्योंकि जिस संसद का चुनाव हो रहा है। उसे वैश्विक हैसियत देने में नेहरू का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। उनके ही नेतृत्व में जिन संसदीय संस्थाओं की नींव रखी गई थी वे आज वटवृक्ष जैसा आकार ले चुकी हैं।
1951-52 में नेहरूजी के ही नेतृत्व में 68 चरणों में पहली लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हुए थे। इन चुनावों के तत्काल बाद राज्यसभा का चुनाव, फिर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का भी चुनाव। सारा काम छह-सात महीने में हुआ था। हमारा पहला चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा संसदीय चुनाव रहा। इसमें मौसम को ध्यान में रख कर हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं को वोट डालने का मौका सबसे पहले मिला।
प्रचार अभियान भी पहले हिमाचल में ही आरंभ हुआ और नेहरूजी का पहला चुनावी दौरा हिमाचल प्रदेश में 15-16 नवंबर 1951 को हुआ था। यहां सभाओं में नेहरूजी ने कांग्रेस को वोट देने की जगह देश के तमाम अहम मुद्दों की बात की। उन्होंने कहा था कि “ऐसे प्रत्याशियों को वोट दें जो सामाजिक न्याय को बढ़ाए, मनुष्य के व्यक्तित्व के गौरव और स्वतंत्रता को आगे ले जाए. धर्म और शिक्षा की स्वतंत्रता को आगे ले जाए।’’
एक जगह तो नेहरूजी ने यहां तक कहा था कि ‘गलत तरीके से जीतने से अच्छा है सही तरीके से पराजित हो।’’ दक्षिण भारत की सभाओं में नेहरूजी का पूरा फोकस देश की एकता और अखंडता पर था। उन्होंने कहा था कि देश केवल सेना से शक्तिशाली नहीं बनेगा बल्कि लोगों में एकता से बनेगा।
सेनाएं बाह्य आक्रमणों का मुकाबला कर सकती । हम सबको मिलकर यहां मजबूत रहना । अपने भाषणों में उन्होंने मताधिकार के महत्व और कर्तव्य के बारे में लोगों को जागरूक किया। देश के हालात और चुनौतियों के बारे में बताया। देश के भूगोल और विशिष्टताओं के बारे में नागरिकों को बताया। उनके भाषणों में ऐसा कोई भी बिंदु नहीं था जिसके लिए उनकी विपक्ष ने आलोचना की हो।
1951-52, 1957 और 1962 के चुनाव पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में हुए। भारत में लोकतंत्र की जड़ों को इन सालों में खाद-पानी और मजबूती मिली। उसका असर आज भी कायम है। आरंभिक चुनावों में नेहरूजी जहां दौरों पर जाते थे जनसंघ को छोड़ कर प्रायः सभी दलों के नेता और कार्यकर्ता उनके स्वागत में आते। स्वागत द्वार तक बनाते थे. मैदानों में लाखों की भीड़ उमड़ती थी। पहाड़ों में भी भारी सभाएं उन्होंने कीं।
पहले आम चुनावों में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश भर में 40278 किमी का सफर किया था। इसमें से 140.84 किमी नावों से, 2594 किमी रेलगाड़ी से और 8474 किमी सड़क मार्ग से चले थे। बाकी यात्रा हवाई मार्ग से हुई थी। इस अभियान में भारत की उस दौर की आबादी के दसवें हिस्से को नेहरूजी ने संबोधित किया था। पहले आम चुनाव में तीन चौथाई मतदाता निरक्षर थे लेकिन नेहरू में लोगों का विश्वास था जिसके कारण इतनी विशाल संख्या में लोगों ने प्रथम चुनावों में हिस्सा लिया था और उनको समर्थन भी दिया था। उन्होंने जो वातावरण बनाया उससे 14 राष्ट्रीय दलों ने चुनाव में हिस्सा लिया। हर हिस्से में एक नई उमंग पैदा हुई।
वोट का महत्व क्या है, क्यों वोट डालना चाहिए इन बातों से लेकर प्रतिनिधि का क्या महत्व है, इन पर राजनीतिक दलों के नेताओं ने जनता को जागरूक किया। उनको बताया कि अब आप राजा हो। जिसे आप चुन रहे हो वही पांच साल सत्ता में रहेगा या विपक्ष में रहेगा।
बहुत सी दिक्कतें उस दौरान थीं क्योंकि 36 करोड़ आबादी वाले भारत में 17 करोड़ वोटरों को समझाना कठिन काम था। 497 लोकसभा और 3278 विधानसभा सीटों के चुनाव हो रहे थे। कोई गफलत न हो, इसके लिए मतपत्रों की छपाई सिक्युरिटी प्रेस नासिक से हुई, जहां नोटें छपा करती थीं। लोहे के 2.12 करोड़ से ज्यादा बैलेट बॉक्स तैयार हुए। वोट कैसे देना है, इसे लेकर नेहरूजी ने रेडियो से लेकर अखबारों और पोस्टमैनों तक की सेवाएं लीं।
नेहरू के शासनकाल में हुए तीनों चुनावों के बाद भूमि सुधार, सहकारी खेती, बंजर और ऊसर भूमि सुधार, कृषि श्रमिकों को भूमि आवंटन, नदी घाटी परियोजनाओं की गति तेज हुई। संसद में इन पर राष्ट्रीय बहसें हुईं। भाखड़ा नांगल, हीराकुंड, नागार्जुन सागर और तमाम विशाल परियोजनाएं उस दौरान साकार हुईं।
रासायनिक खादों और कीटनाशकों के कारखाने खुले। पहले सुई तक नहीं बनती थी, बाद में जहाज तक बनने लगे। आईआईटी, आईआईएम, इसरो, एम्स जैसी संस्थाएं बनीं। संविधान में सबको समानता का अधिकार । नेहरू के कालखंड में जमींदारी गई और किसान जमीन के मालिक बने। इन सारी उपलब्धियों के बीच नेहरू की प्रासंगिकता बरकरार है।