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ब्लॉग: प्रेम, करुणा और मानवता के संदेशवाहक गुरु नानक देव जी

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Updated: November 27, 2023 11:53 IST

विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए गुरु नानक जी मनुष्य की आंतरिक शक्ति को जागृत करने का आह्वान करते हैं। वह निर्भय, निरंकार और निर्वैर परमात्मा में अखंड विश्वास करते थे और उसी विश्वास को प्रत्येक व्यक्ति के चित्त में जागृत करते थे।

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ठळक मुद्दे नानक देव जी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ थाउन दिनों भारत का हिंदू समाज अनेक प्रकार की जाति और संप्रदायों में विभक्त थाअपने जीवन काल के 70 वर्षों में गुरुजी ने एक तिहाई उम्र यात्राओं में ही बिताई थी

नई दिल्ली:   जब-जब मानवता पर संकट की घड़ी आती है जुल्म तथा अज्ञानता हद से ज्यादा बढ़ जाते हैं, धर्म और नेकी पर प्रहार होने लगते हैं, तब संसार की हालत सुधारने के लिए सृष्टि का मालिक अपने किसी विशेष प्रिय को पृथ्वी पर भेजता है। गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ था। उन दिनों भारत का हिंदू समाज अनेक प्रकार की जाति और संप्रदायों में विभक्त था। धार्मिक साधना के क्षेत्र में नामदेव, कबीर जैसे भक्त जातिगत तथा सांप्रदायिक भेदभाव मिटाने का प्रयास कर चुके थे लेकिन भेदभाव की मनोवृत्ति बड़ी कठोर हो चुकी थी।

ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए गुरु नानक जी मनुष्य की आंतरिक शक्ति को जागृत करने का आह्वान करते हैं। वह निर्भय, निरंकार और निर्वैर परमात्मा में अखंड विश्वास करते थे और उसी विश्वास को प्रत्येक व्यक्ति के चित्त में जागृत करते थे। अपने जीवन काल के 70 वर्षों में गुरुजी ने एक तिहाई उम्र यात्राओं में ही बिताई थी। उनका उद्देश्य साधु संग और भगवद्‌भक्ति का प्रचार था। पहली यात्रा के समय उनके साथ उनके शिष्य मरदाना थे जिनके रबाब की धुन पर गुरुजी की रचनाएं श्रोताओं को मुग्ध कर देती थीं।

दूसरी यात्रा में वे दक्षिण की ओर गए। इस बार उनके साथ दो जाट शिष्य सैदो और धेबी थे. तीसरी यात्रा में वे उत्तर की ओर कैलाश और मानसरोवर की ओर गए। साथ में सीहा और नासू नामक शिष्य थे। इस यात्रा में वे तिब्बत और दक्षिणी चीन भी गए थे। चौथी यात्रा पश्चिम की ओर हुई और वह हाजी के रूप में मक्का गए। इस यात्रा के दौरान वे बगदाद भी गए और अनेक मुस्लिम संतों और पंडितों से सत्संग किया। उनकी प्रेममय वाणी से सर्वत्र जादू सा असर दिखा।

उन्होंने जहां मनुष्य के दुख-कष्टों का अनुभव किया, उन्हें दूर करने का प्रयास किया, वहीं उनके अंधविश्वास और गलत मान्यताओं को दूर करने का प्रयास भी किया। वह अपने पवित्र आचरण द्वारा विरोधियों को सत्य का साक्षात्कार करा देते थे। गुरुजी ने छोटी जातियों को भरपूर सम्मान दिया. भेदभाव तो उनमें लेशमात्र भी नहीं था। हिंदू तथा मुसलमान दोनों को समान रूप से स्नेह करते थे। उन्होंने कहा था एक ही ज्योति से संसार उत्पन्न किया गया है. सभी समान हैं।

अपने जीवन में गुरुजी ने अनेक वाणियों का सृजन किया. गुरुग्रंथ साहिब में गुरुजी की वाणियां संग्रहीत हैं। गुरुजी के उपदेशों, शिक्षाओं का सार उनकी वाणी को जपुजी साहिब में दर्शाया गया है। ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह न किसी से डरता है, न किसी से बैर करता है, उसे पाने के लिए लंबे-चौड़े ज्ञान की जरूरत नहीं है, केवल सच्चाई की आवश्यकता है।

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