BJP Vs Congress News: जिन चंद राज्यों में कांग्रेस सत्ता की दावेदार नजर आती है, उनमें से एक हरियाणा में भी वह अपनी फजीहत खुद कराने का कोई मौका नहीं चूक रही. सत्ता की दौड़ में एक बार फिर भाजपा से पिछड़ जाने के बाद कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने में उसे लगभग पूरा साल लग गया, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही इस पद के स्वाभाविक दावेदार थे. कांग्रेस ने और भी कमाल नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से किया है. हुड्डा को फिर से विधायक दल नेता बनाते हुए कांग्रेस ने राव नरेंद्र सिंह को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है.
हरियाणा में पिछले साल पांच अक्तूबर को विधानसभा चुनाव हुए थे. चंद महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में 10 में से पांच सीटें जीत लेने से लग रहा था कि कांग्रेस 10 साल बाद हरियाणा की सत्ता में वापसी कर सकती है, लेकिन एक प्रतिशत से भी कम वोटों के अंतर से वह भाजपा से मात खा गई. भाजपा 90 में से 48 सीटें जीत गई, जबकि कांग्रेस 37 पर अटक गई.
बाकी निर्दलीयों के हिस्से आईं, जो अब स्वाभाविक ही सरकार समर्थक हैं. तीसरी बार सत्ता-सिंहासन दूर छिटक जाने में कांग्रेस का अंतर्कलह मुख्य कारण रहा. चुनाव के दौरान भी कांग्रेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थकों और विरोधियों में बंटी रही. एक हुड्डा समर्थक की टिप्पणी से खफा हो कर बड़ी दलित नेत्री सैलजा तो कई दिन तक चुनाव प्रचार से भी दूर रहीं,
जिससे भाजपा को कांग्रेस में दलित अपमान को मुद्दा बनाने का मौका मिल गया. कुछ योगदान ‘इंडिया’ गठबंधन में सहयोगी आप का भी रहा, जो सीट बंटवारे पर बात न बनने के कारण अलग चुनाव लड़ी. इस बार भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कांग्रेस विधायक दल नेता और फलस्वरूप नेता प्रतिपक्ष बनना तय लग रहा था.
विधायक दल में उन्हीं के समर्थकों का बहुमत था. इसलिए भी कि विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा को टिकट वितरण समेत हर मामले में ‘फ्री हैंड’ दे रखा था. चुनाव नतीजों के सप्ताह भर बाद जब पर्यपेक्षकों ने बैठक बुला कर एक-एक कर विधायक की राय जानी तो ढाई दर्जन विधायक हुड्डा के समर्थन में थे,
लेकिन अंतर्कलह के चलते सत्ता फिर छिटक जाने से खफा आलाकमान ने विधायक दल नेता का चयन टाल दिया. चुनावी हार के चलते प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा, जिनकी हुड्डा की पसंद के रूप में ही ताजपोशी हुई थी.
माना गया कि अब आलाकमान किसी एक नेता को ‘फ्री हैंड’ देने के बजाय सभी गुटों में संतुलन के साथ आगे बढ़ेगा, पर नए प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता के नामों से साफ है कि खासकर जाट समुदाय पर मजबूत पकड़ के चलते वह हुड्डा को नजरअंदाज नहीं कर सकता.
कांग्रेस के साथ जाट समुदाय के समर्थन और उस पर हुड्डा की पकड़ के मद्देनजर जो फैसला तभी लिया जा सकता था, उसमें साल भर लगा कर आलाकमान ने क्यों पार्टी के साथ-साथ अपनी भी फजीहत कराई? इस बीच हुए विधानसभा सत्रों में कांग्रेस की स्थिति हास्यास्पद ही नजर आई.