विक्रम उपाध्याय
बिहार में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन ने कमाल कर दिया। 200 से अधिक सीटें जीत कर यह साबित कर दिया कि जनता से जुड़ी सरकार का सत्ता में बार बार आना केवल संयोग नहीं है, बल्कि लोगों के दिल में उतरकर उनके भले के लिए काम करने का यह एक सफल प्रयोग भी है। बिहार के चुनाव परिणाम एनडीए के पक्ष होने के बाद भी किसी को कोई आश्चर्य नहीं है। अब तो बीजेपी के प्रति आलोचनात्मक भाव रखने वाले चुनावी पंडित भी यह कहने लगे हैं कि उन्होंने भी बीजेपी और एनडीए की जीत इबारत चुनाव प्रचार के दौरान ही पढ़ ली थी।
बिहार के चुनाव परिणाम ने देश में एक नई बहस भी छेड़ दी है। अब इस मुद्दे पर बहस हो रही है कि क्या प्रधान मोदी के सामने किसी का भी चुनाव जीतना अब नामुमकिन है? ज्यादातर लोगों की राय यह बन रही है कि बीजेपी और पीएम मोदी को हराना नामुमकिन नहीं भी है तो यह मुश्किल जरूर है। फिर इसके अलग अलग कारणों के विश्लेषण भी किए जाते हैं।
इसमे अधिकतर लोगों का मानना है कि बीजेपी अब एक चुनावी मशीन बन गई है, जो पूरे समय ऑन रहती है। भाजपा के नेता केवल उस समय मैदान में नहीं होते, जब चुनाव सिर पर होते हैं, बल्कि इस दक्षिणपंथी पार्टी के वीर पूरे समय चुनाव के क्रिया कलापों से जुड़े रहते हैं। भले ही चुनाव सामने नहीं है।
किस चुनाव में किस नेता की भूमिका क्या रहनी चाहिए, भाजपा में यह बहुत पहले तय कर दी जाती है और फिर सब उसी के नेतृत्व में काम शुरू कर देते हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार ही बता रहे थे, कि बिहार में जब नीतीश कुमार 2022 में बीजेपी को छोड़ कर एक बार फिर आरजेडी के साथ हो लिए थे,
तभी केंद्रीय नेतृत्व ने राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को बिहार जा कर चुनाव की तैयारी में तभी से जुट जाने का निर्देश दे दिया था। विनोद तावड़े तब से लेकर चुनाव के अंतिम दिन तक बिहार में ही डटे रहे। अब इसमे किसी को शक ही नहीं है कि भाजपा के लिए चुनाव तैयारी कोई पार्ट टाइम गेम नहीं है, बल्कि यह जनता से जुड़े रहने और मुद्दों के आसपास पार्टी को तैयार रखने का सतत अभियान है।
बीजेपी कि जिस चुनावी रणनीति का लोग आज लोहा मान रहे हैं, उसे विकसित करने और उसकी धार बनाए रखने का यदि किसी को श्रेय जाता है तो उनमें सबसे प्रमुख गृह मंत्री अमित शाह हैं, जिन्होंने गुजरात में अपने कार्य काल के दौरान इसे एक तंत्र के रूप में विकसित किया और 2014 के बाद से इसे लगातार देशव्यापी अभियान का इसे हिस्सा बनाया।
बिहार में भी एनडीए की इस चुनावी जीत के सूत्रधार अमित शाह हो ही बताया जा रहा है, जिन्होंने विपक्ष के किसी भी पैतरे को चलने नहीं दिया और राहुल- तेजस्वी की जोड़ी को करारी शिकस्त दे दी। 2010 के बाद भाजपा फिर से 90 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट के साथ 89 सीटें जितने में कामयाब रही और इस बार बिहार विधान विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी भी बन गई।
85 सीटों के साथ जेडीयू दूसरे स्थान पर रही, लेकिन एनडीए गठबंधन ने बिहार के 202 विधान सभा सीटें जीत कर तहलका मचा दिया। जनता ने एनडीए पर अपना पूरा विश्वास उड़ेल दिया और उस पर नतमस्तक होकर अमित शाह ने बिहार की जनता का दिल से आभार व्यक्त किया। इस बार बिहार में अमित शाह ने पार्टी को एकजुट और अनुशासित रखने में भी अपना भरपूर योगदान किया।
चुनाव नजदीक आते आते बागियों की संख्या नाम मात्र की रह गई। अपने पटना प्रवास के दौरान, अमित शाह ने व्यक्तिगत रूप से नेताओं से मिलकर आंतरिक असंतोष को खत्म करने की सफल कोशिश की। बताया जाता है कि एक समय बीजेपी के 100 से अधिक बागी पार्टी के ख़िलाफ़ खड़े हो गए थे।
लेकिन एक बार अमित शाह दे साथ सीधी, और आमने-सामने की बैठक की तो सभी ने विरोध को छोड़ पार्टी की रणनीति और राजनीतिक उद्देश्यों के साथ काम करना शुरू कर दिया। जहां-जहां बीजेपी पहले अपने लोगों के कारण फसती नजर आई थी वहाँ वहाँ अमित शाह कमल खिलाने में कामयाब हो गए।
छपरा सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां बीजेपी की बागी उम्मीदवार राखी गुप्ता के होने के बावजूद पार्टी की नई उम्मीदवार छोटी कुमारी जीत गयीं। सिनेमा के स्टार आरजेडी उम्मीदवार खेसारी लाल यादव हार गए। बीजेपी नेतृत्व को बिहार की नब्ज पर का अंदाज था। खास कर अमित शाह ने अपनी तीन महीने की धुआंधार दौरे से यह अंदाज लगा लिया था कि जनता क्या चाहती है।
जब केंद्र और राज्य सरकार ने बिहार की जनता की अपेक्षाओं को पूर्ण करने का काम पूरा किया और जनता जिस तरह से गदगद हो उठी, फिर एनडीए के किसी नेता के मन में चुनाव परिणाम को लेकर शंका नहीं रह गई। अमित शाह पहले नेता थे जिन्होंने एक चुनावी रैली में ही यह ऐलान कर दिया था कि इस बार एनडीए 160 से ज़्यादा सीटें जीतेगा और बिहार में सरकार बनाएगा।
अंतिम चरण के मतदान से कुछ ही दिन पहले एक रैली में, शाह ने फिर घोषणा की कि 14 नवंबर राजद और कांग्रेस परिवारों के राजनीतिक सफाए का दिन होगा। यह लोगों के लिए एक नई दिवाली होगी और ठीक ऐसा ही हुआ। बिहार में चुनाव परिणाम के आने के बाद एक एनडीए के नेता ने कहा, हमारी हार हो ही नहीं सकती थी, क्योंकि जिस तरह अर्जुन के रथ पर हनुमान जी विराजमान थे,
वैसे ही एनडीए के चुनावी पताके पर अमित शाह विराजमान रहते हैं। यह किसी संयोग की बात नहीं और ना कोई यांत्रिक फॉर्मूले का यह चमत्कार है, यदि अमित शाह ने चुनावी सफलता का कोई रिकार्ड बनाया है, तो इसके पीछे उनका अनथक परिश्रम है। बीजेपी चुनावी मशीनरी का मार्गदर्शन बहुत ही चुनौती और जिम्मेदारीपूर्ण काम है।
पार्टी में रणनीति और उस पर क्रियान्वयन के लिए पूरी तरह से समर्पित कार्यकर्ताओं के निर्माण की एक बड़ी प्रक्रिया है। अमित शाह न सिर्फ इस प्रक्रिया के निर्माण और संचालन की जिम्मेदारी उठाते हैं, बल्कि कार्यकर्त्ताओं और निचले स्तर पर काम कर रहे भाजपा नेताओं और गठबंधन सहयोगियों में विश्वास का भाव भी पैदा करते हैं। वह खुद को भी पूरी तरह झोंक डालते हैं।
अमित शाह ने स्वयं बिहार में 35 रैलियों को संबोधित किया और एक बड़े रोड शो का नेतृत्व किया। वह केवल भाषणों और रैलयों तक खुद को सीमित नहीं करते , बल्कि बूथ स्तर तक अपनी उपस्थिति बनाए रखंते हैं। इससे पार्टी के साथ कार्यकर्ताओं का एक मज़बूत जुड़ाव होता है और फिर बूथ कार्यकर्ता भी अधिकतम वोट हासिल करने के लिए भरपूर मेहनत करता है। बीजेपी ऐसे ही एवर विनिंग पार्टी नहीं बन गई है।