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ब्लॉग: बांग्लादेश में हिंसा की आंच द्विपक्षीय रिश्तों पर न आए

By शोभना जैन | Published: October 25, 2021 1:05 PM

बांग्लादेश के सांप्रदायिक सौहार्द पर गहरा आघात लगाने वाले इन दंगों के भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों पर भी छाया डालने का अंदेशा रहा. हालांकि दोनों देशों की सरकारों ने इन घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने पर पूरी तरह से संवेदनशीलता और सतर्कता बरती है.

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ठळक मुद्देबांग्लादेश में हुई हिंसा में अब तक छह से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.500 से अधिक दंगाइयों की गिरफ्तारियां अब तक प्रशासन कर चुका है.इतने बड़े स्तर पर हमला होना इसके पूर्व नियोजित होने की तरफ इशारा करता है.

बांग्लादेश में गत 13 अक्टूबर के बाद से कई दिन तक हिंदू अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों पर जो हमले हुए, इस वर्ग के घरों की संपत्ति की लूटपाट और हिंसा हुई, वह बांग्लादेश के साथ-साथ भारत के लिए भी चिंता का विषय बनी हुई है. 

दोनों देशों के बीच पड़ोसियों से कहीं ज्यादा गहरे दिलों के रिश्ते हैं, ऐसे में एक बार फिर वहां कट्टरपंथियों द्वारा अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जाना दोनों देशों के रिश्तों में तल्खी लाने की साजिश लगती है. 

बांग्लादेश के चटगांव जिले के कुमिल्ला से शुरू हुए ये उपद्रव देश के अनेक भागों में फैल गए. इन हमलों में अब तक छह से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, अनेक घायल हुए और 500 से अधिक दंगाइयों की गिरफ्तारियां अब तक प्रशासन कर चुका है. इसी कड़ी में इन दंगों के मुख्य अभियुक्त की भी गिरफ्तारी हो चुकी है.

बांग्लादेश के सांप्रदायिक सौहार्द पर गहरा आघात लगाने वाले इन दंगों के भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों पर भी छाया डालने का अंदेशा रहा. हालांकि दोनों देशों की सरकारों ने इन घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने पर पूरी तरह से संवेदनशीलता और सतर्कता बरती है. 

दुर्गा पूजा के मौके पर हिंदू मंदिरों पर हुए हमले के दो दिन बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने और हिंदुओं को सुरक्षा प्रदान करने का भरोसा दिलाया.

बांग्लादेश के साथ प्रगाढ़ संबंधों पर जोर देती मोदी सरकार ने सधी हुई सतर्क प्रतिक्रिया में वहां प्रशासन द्वारा स्थिति जल्द नियंत्रण में लाने के लिए उसके द्वारा उठाए गए कदमों पर भरोसा जताया और संभवत: सतर्कता और एहतियात के चलते ही भारत में अतिवादी तत्व मुस्लिमों के खिलाफ कोई प्रतिक्रियात्मक अतिवादी कदम नहीं उठा पाए. 

यहां यह बात अहम है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्नी शेख हसीना ने एक तरफ जहां दक्षिणोश्वरी मंदिर में एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हिंदू अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाते हुए उपद्रवियों से सख्ती से निबटने के निर्देश दिए, वहीं यह भी कहा कि बांग्लादेश के बड़े पड़ोसी के नाते भारत को स्थिति के प्रति संवेदशील होना चाहिए. वहां ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जिसका असर यहां पड़े.

शेख हसीना की सरकार लगातार हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर बोलती रही है और पहले भी घटी ऐसी घटनाओं पर सख्ती से काबू पाती रही है लेकिन बुधवार को उन्होंने जिस तरह से हिंदुओं की सुरक्षा को भारत के नेताओं से जोड़ा, वह एक अपवाद था. निश्चित तौर पर ऐसे मुद्दों से सख्ती से निबटने के साथ संवेदनशीलता से निबटना जरूरी है ताकि घरेलू मसलों की आंच द्विपक्षीय रिश्तों पर न पड़े.

बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं. लेकिन इतने बड़े स्तर पर हमला होना इसके पूर्व नियोजित होने की तरफ इशारा करता है जैसा कि एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक का मानना है कि बांग्लादेश में जो हुआ वो शेख हसीना के खिलाफ पूर्व नियोजित बड़ी साजिश का हिस्सा है और भारत शेख हसीना के खिलाफ चल रही इस बड़ी साजिश से अच्छी तरह वाकिफ है. इस साजिश का मकसद सांप्रदायिक कार्ड के जरिए शेख हसीना को कमजोर करना है. 

अब अगर ऐसे में भारत इन घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए बयान जारी करता है तो वो हसीना सरकार की निंदा होगी लेकिन इससे भारत का कोई मकसद सफल नहीं होगा. इसलिए स्वाभाविक है कि भारत अभी बांग्लादेश के साथ खड़ा है, लेकिन साथ ही शेख हसीना को यह संदेश जरूर दे रहा है कि वो हालात पर जल्दी से जल्दी और प्रभावी ढंग से काबू पा लें और इस बारे में हसीना ने जो कदम उठाए हैं, उन पर भारत ने संतोष जाहिर किया है. 

भारत का यह मानना ठीक भी है कि अगर कोई इस स्थिति से निबट सकता है तो वो शेख हसीना ही हैं. भले ही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उस की विचारधारा वाले संगठन बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं और इस बारे में सोशल मीडिया पर भी काफी कुछ लिख रहे हैं लेकिन सरकार के स्तर पर इस बारे में नपी-तुली प्रतिक्रिया ही देखने को मिल रही है.

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