कृष्णप्रताप सिंह
स्वराज के अधिकार के सबसे पहले और सबसे प्रखर उद्घोषक, स्वतंत्रता के अप्रतिम सेनानी, जो गरम राष्ट्रवादी तेवर अपनाकर ‘लोकमान्य’ कहलाए. आधुनिक शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी के सदस्य. साथ ही, शिक्षक, वकील, लेखक, संपादक और समाजसुधारक. इतिहास, संस्कृत, धर्म, गणित और खगोलशास्त्र के विद्धान. ‘भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाने वाली’ ब्रिटिश साम्राज्यवादी शिक्षा नीति के घोरविरोधी. देवनागरी लिपि को सारी भारतीय भाषाओं के लिए स्वीकार्य बनाने के पक्षधर.
महाराष्ट्र में गणेश व शिवाजी उत्सवों की नींव की ईंट. लोकचेतना के परिष्कार के लिए इन उत्सवों को सभी जातियों व धर्मों के बीच संवाद का साझा मंच बनाने की पहलों के अगुआ. भारतीय अंतःकरण में प्रबल आमूल परिवर्तन के लिए कुछ भी उठा नहीं रखने वाले नायक. इतना ही नहीं, महात्मा गांधी का युग शुरू होने तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता. उसके ‘गरम दल’ की लाल-बाल-पाल के नाम से चर्चित तिकड़ी (जिसके अन्य दो सदस्य लाला लाजपत राय ओर विपिनचंद्र पाल थे) के सदस्य.
समझ गये होंगे आप, भारतीय क्रांति और स्वतंत्रता संग्राम के जनक कहलाने वाले बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई, 1856-01 अगस्त, 1920) यों ही ‘लोकमान्य’ नहीं बन गए थे. स्वतंत्रता की विकट साधना की आंच में तपा उनका व्यक्तित्व इतना बहुआयामी था कि किसी एक परिचय में सिमटता ही नहीं है. उनका माता-पिता का दिया नाम केशव गंगाधर तिलक था, लेकिन स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उनके विलक्षण तेवर ने उन पर इतनी जनश्रद्धा बरसाई कि वे केशव गंगाधर के बजाय ‘लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक’ कहलाने लगे.
वे देश के ऐसे पहले नेता थे, जिन्होंने स्वराज को हमारा यानी भारतीयों का जन्मसिद्ध अधिकार बताया और इसके लिए जो नारा दिया, उसमें कहा कि इस अधिकार को हम लेकर ही रहेंगे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विभिन्न भाषाओं में उनका यह नारा इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे आज भी भुलाया नहीं जा सका है.