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ब्लॉग: वयस्क मताधिकार दिए जाने में बाबासाहब की थी बड़ी भूमिका

By अरविंद कुमार | Updated: April 15, 2024 10:29 IST

बाबासाहब बराबरी की बात करते थे तो उसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय तीनों निहित था। उनको पता था कि लोकतांत्रिक हिस्सेदारी के बिना वंचित तबकों की कहीं कोई सुनवाई भी नहीं होगी।

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ठळक मुद्देबाबा बराबरी की बात करते तो उसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय तीनों निहित थीलोकतांत्रिक हिस्सेदारी के बिना वंचित तबकों की कहीं कोई सुनवाई भी नहीं होगी- बाबा साहेबसंविधान सभा में बाबासाहब या पंडित नेहरू जैसी सोच हरेक सदस्य की नहीं थी

भारतरत्न बाबासाहब भीमराव आंबेडकर का जीवन इतनी विविधताओं भरा रहा है कि जब भी उन पर चर्चा होती है तो विभिन्न पक्ष उसमें चर्चा में आते ही हैं। लेकिन ऐसे दौर में जबकि 18वीं लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं, तो इस बात पर चर्चा और प्रासंगिक होगी कि देश में स्वतंत्र चुनाव आयोग और वयस्क मताधिकार देने में भी उनका कितना अहम योगदान था। उनके विचारों से पंडित जवाहरलाल नेहरू पूरी तरह सहमत थे और उनकी मुहिम में पूरा साथ दिया।

बाबा साहब बराबरी की बात करते थे तो उसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय तीनों निहित था। उनको पता था कि लोकतांत्रिक हिस्सेदारी के बिना वंचित तबकों की कहीं कोई सुनवाई भी नहीं होगी। यही कारण है कि उन्होंने भारत के हर बालिग नागरिक को वोट का अधिकार देने की जबर्दस्त पैरवी की। इसके पहले दुनिया में वोट के अधिकार के साथ शर्तें जुड़ी थीं।

कहीं जमींदार वोट दे सकते थे तो कहीं करदाता और कहीं शिक्षित लोग। फ्रांस, अमेरिका और इंग्लैंड तक में महिलाएं मताधिकार से वंचित थीं। लेकिन भारत में यह अधिकार मिला और इसने कमजोर तबकों को सशक्त किया और सरकारों को विवश किया कि उनके हक में नीतियां बनें। 

संविधान के अनुच्छेद 324 (1) के तहत 25 जनवरी 1950 को भारत निर्वाचन आयोग बना, पर चुनाव से संबंधित 6 अनुच्छेद दो माह पहले ही लागू कर दिए गए थे और मतदाता सूची बनाने का काम तो इससे भी पहले आरंभ हो गया था। स्वतंत्र चुनाव आयोग व चुनाव प्रक्रिया की अवधारणा समानता व स्वतंत्रता के अधिकार के साथ हर व्यक्ति के वोट के अधिकार के साथ भारतीय लोकतंत्र की विश्व में अलग प्रतिष्ठा कायम हुई।

1951-52 में पहले आम चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 25000 मील की अपनी चुनावी यात्रा में करोड़ों लोगों को संबोधित किया तो करीब हर भाषण में वयस्क मताधिकार के महत्व और मताधिकार के कर्तव्य के बारे में लोगों को जागरूक करना वे नहीं भूले थे।

संविधान सभा में बाबासाहब या पंडित नेहरू जैसी सोच हरेक सदस्य की नहीं थी। इस पहल की आलोचना भी हुई और आशंका व्यक्त की गई कि महज 16 फीसदी शिक्षित लोगों के देश में यह कैसे संभव होगा। संविधान सभा में वयस्क मताधिकार पर चर्चा के दौरान बहुत से सदस्यों ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की अवधारणा का विरोध किया। पर डॉ।

आंबेडकर ने कहा था कि ‘हर आदमी इतना बुद्धिमान है कि वह ठीक-ठीक समझ सकता है कि वह क्या चाहता है।’ कुछ लोगों ने वयस्क मताधिकार दिए जाने को  इतिहास का सबसे बड़ा जुआ तक कहा। लेकिन मतदाताओं ने इन आशंकाओं को नकारा और भारत को विश्व इतिहास का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना कर दिखा दिया।

टॅग्स :Baba SahebIndia
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