नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मेरा पहला परिचय 1972 में हुआ, जब मैं एक समाचार एजेंसी में संवाददाता था। वे प्रखर वक्ता होने के साथ बेहद सरल स्नेहिल व्यवहार वाले वरिष्ठ नेता थे। तब वह 1 फिरोज शाह रोड की कोठी में रहते थे। संयोग और सौभाग्य से मैं सड़क के दूसरे छोर 5 विंडसर प्लेस ( जहां अब महिला प्रेस क्लब है ) पर अपने उज्जैन के राज्यसभा सांसद सवाई सिंह सिसोदिया के बंगले के एक हिस्से में रहता था।
उन दिनों राजनीतिक गतिविधियों के लिए नेताओं से मिलना अधिक कठिन नहीं था। इसलिए जब भी अवसर मिला, अटल जी से चाय के साथ लम्बी चर्चा हुई। ताजा खबरों से अधिक उनके विचार सुनने-समझने का लाभ मिला। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू दर्शन से पूरी तरह जुड़े अटल जी असहमति वालों के प्रति पूरा सद्भाव, सम्मान रखते थे। अटलजी से विपक्ष की राजनीति के कई आंतरिक समीकरणों को समझने का लाभ मुझे पत्रकारिता में मिला।
1993 में मैंने अपनी एक पुस्तक ‘राव के बाद कौन’ के एक अध्याय के लिए अटल जी से लम्बी बातचीत की थी, तब उन्होंने कहा था- ‘‘मैंने बहुत प्रतीक्षा कर ली। मुझे यह भी शक है कि मैं इतना बड़ा दायित्व संभाल सकता हूं। मैं स्वीकार करता हूं कि मैं सत्ता में बने रहने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने में अक्षम भी हूं।’’
उनकी स्वीकार्यता में आदर्शों और जीवन मूल्यों की ध्वनि थी। तभी तो पहले उन्हें 13 दिन, फिर 13 महीने और बाद में जाकर पांच वर्ष प्रधानमंत्री के रूप में गठबंधन की सरकार को बनाए रखने के लिए कई बार समझौते करने पड़े। लेकिन उन्होंने सत्ता की राजनीति को नई दिशा दी। वर्षों तक स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं और सामान्य जनता के बीच काम करने से वह समस्याओं को अच्छी तरह समझते थे। तभी तो उन्होंने सड़कों के जाल बिछाकर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ग्रामीण शहरी क्षेत्रों के विकास के कार्यक्रमों पर सर्वाधिक जोर दिया। संचार, परमाणु परीक्षण के साथ ऊर्जा उत्पादन, समाचार माध्यमों में नए टीवी समाचार चैनलों को अनुमति देने जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन शुरू किया।
अटल जी संसद से सड़क तक जिस धारा 370 से कश्मीर को मुक्त कराने, राम जन्म भूमि अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने के लिए संघर्ष करते रहे, उस सपने को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा किया है। इसी तरह संचार सुविधा, ग्रामीण लोगों के सामाजिक आर्थिक जीवन में व्यापक बदलाव, रोटी कपड़ा मकान के अटल युग के नारे यानी उनके प्रेरक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के सपनों को साकार करने के लिए मोदी ने दस वर्षों में अनेक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाकर गांवों और आदिवासी इलाकों के सामाजिक आर्थिक विकास के हरसंभव दरवाजे खोल दिए हैं।