Assembly Elections Rahul Gandhi: हरियाणा और महाराष्ट्र में लगातार दो शर्मनाक पराजय के बाद राहुल गांधी के लिए चिंतित होने की वजहें हैं. कांग्रेस को फरवरी 2025 की शुरुआत में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोई उम्मीद नहीं है. जून 2024 में लोकसभा में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद पार्टी सातवें आसमान पर थी. उसने हरियाणा में लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन किया था और उम्मीद थी कि यह व्यवस्था आने वाले सालों में भी जारी रहेगी. लेकिन कांग्रेस अनिच्छुक हो गई और अब आप के अरविंद केजरीवाल ने घोषणा कर दी है कि कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा. हो सकता है कि महाराष्ट्र में हार के बाद बदले राजनीतिक माहौल में ‘सीटों के तालमेल’ की गुंजाइश हो.
ऐसी खबरें हैं कि दिल्ली में फिर से उभर रही भाजपा बाजी पलट सकती है, जहां केजरीवाल को 40 करोड़ रुपए का ‘शीश महल’ (नया सीएम बंगला) महंगा पड़ा है. कांग्रेस जानती है कि बिहार में भी उसका कोई मजबूत आधार नहीं है और वह राजद पर निर्भर है, जो अपनी कानूनी समस्याओं से जूझ रही है. बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में होने हैं और एनडीए मजबूत स्थिति में दिख रहा है.
भाजपा ने राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व के साथ समझौता कर लिया है. इन सब बातों ने राहुल गांधी के लिए परेशानी खड़ी कर दी है क्योंकि मार्च 2026 में असम में कांग्रेस का आमना-सामना भाजपा से होने वाला है. असम में कांग्रेस के कार्यकर्ता और मध्यम स्तर के नेता चिंतित हैं क्योंकि पार्टी को भाजपा के खिलाफ इसी तरह का हश्र झेलना पड़ सकता है.
कहा जा रहा है कि असम कांग्रेस के भीतर अंदरूनी कलह और राहुल गांधी द्वारा समय रहते जीत की रणनीति तैयार न कर पाना पार्टी के राज्य में जीत न पाने की कुछ वजहें हो सकती हैं. तमिलनाडु, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल और केरल में कांग्रेस भाजपा के साथ सीधी लड़ाई में शामिल नहीं है. इन राज्यों में भी अप्रैल-मई 2026 में चुनाव होने हैं.
अगले भाजपा अध्यक्ष के लिए दो प्रमुख शर्तें
महाराष्ट्र में चुनाव संपन्न होने के साथ, अब भाजपा वर्तमान अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के स्थान पर अपने नए अध्यक्ष का चुनाव करने पर ध्यान केंद्रित करेगी, जो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और राज्यसभा के नेता भी हैं. पूरी संभावना है कि अगले दो महीनों के भीतर नए भाजपा प्रमुख द्वारा पदभार संभाल लिया जाएगा. ‘संघ परिवार’ के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अगले भाजपा प्रमुख को दो प्रमुख मानदंडों को पूरा करना होगा.
पहला यह कि वह एक पक्का आरएसएस स्वयंसेवक होना चाहिए. दूसरा यह कि उसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वासपात्र भी होना चाहिए. पार्टी के सुचारु संचालन और सरकार के साथ समन्वय के लिए यह आवश्यक है. सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के बहुमत खोने के बाद आरएसएस की आवाज महत्वपूर्ण हो गई है. इसलिए नड्डा के उत्तराधिकारी को चुनने में कुछ देरी हुई है.
हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों के बाद कुछ नेताओं का ग्राफ आसमान छू गया है, जैसे; केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान, जो क्रमशः महाराष्ट्र और हरियाणा के प्रभारी थे. हालांकि मोदी के एक और चहेते अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय रेल और आईटी मंत्री, यादव के साथ रणनीति बनाने का हिस्सा थे, लेकिन पार्टी में अपेक्षाकृत नए होने के कारण वे दौड़ में नहीं हैं.
दिलचस्प बात यह है कि यादव और वैष्णव की जोड़ी ने 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान मध्य प्रदेश में भी जीत हासिल की थी. मध्य प्रदेश में, भाजपा ने सभी 29 लोकसभा सीटें भी जीतीं. यह अलग बात है कि शिवराज सिंह चौहान, जो भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे ऊपर थे, झारखंड में हार के बाद पिछड़ गए. उन्हें झटका तब लगा जब भाजपा ने झारखंड खो दिया, हालांकि वे राज्य विधानसभा चुनावों के लिए हिमंत बिस्वा सरमा के साथ प्रभारी थे. इस बात की भी काफी अटकलें हैं कि दक्षिण से कोई नेता उनकी जगह ले सकता है.
बिहार में एक और नेता-पुत्र का होगा उभार !
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गिरती सेहत के मद्देनजर चिंतित जनता दल (यू) के नेताओं ने उनके उत्तराधिकारी की तलाश शुरू कर दी है. पार्टी में कोई स्वीकार्य दूसरा व्यक्ति न होने के कारण पार्टी को एकजुट रखने के लिए खोज तेज कर दी गई है. पटना में इस बात की जोरदार अफवाह है कि नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने के लिए अत्यधिक दबाव में हैं, जो एक बड़ी दुविधा का सामना कर रहे हैं क्योंकि वे हमेशा राजनीति में ‘परिवारवाद’ के खिलाफ रहे हैं.
निशांत, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटी) मेसरा के पूर्व छात्र हैं, चकाचौंध और राजनीतिक आयोजनों से दूर रहते हैं. 49 वर्षीय निशांत ने कुछ समय पहले स्पष्ट रूप से कहा था कि उन्होंने अध्यात्म का मार्ग चुना है और उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है.
उन्होंने बाजार में देखे जाने पर अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की और कहा कि वे एक ऑडियो सेट खरीदने आए थे क्योंकि वे अपने मोबाइल फोन पर ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ सुनना चाहते थे, जिसकी आवाज कम है. जब भी वे पटना की सड़कों पर निकलते हैं, तो सुरक्षाकर्मी हमेशा उनके साथ होते हैं.
कुछ समय पहले उन्हें स्थानीय इलाके में एक पौधा लगाते हुए भी देखा गया था. दिग्गज राजनेता के बेटे के उत्थान पर अंतिम फैसला होना अभी बाकी है. लेकिन जद (यू) के पास भी विकल्प नहीं हैं. नीतीश कुमार ने पहले जिसे भी अपना संकटमोचक प्रभारी बताया था, उसके साथ लौटने के सारे दरवाजे बंद कर दिए; चाहे वह आरसीपी सिंह हों या अन्य.
केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और पार्टी के नए चहेते और राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा को भी नीतीश के उत्तराधिकारी के रूप में नहीं देखा जा रहा है. दरअसल नीतीश कुमार के बेटे को लाने की मांग के पीछे का उद्देश्य किसी भी आकस्मिक घटना की स्थिति में बागडोर संभालने की आकांक्षा रखने वाले अन्य नेताओं की संभावना को दूर करना है. अगले वर्ष 2025 में होने वाला विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है.