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ब्लॉग: प्राचीन भारतीय जानते थे सूर्य का विज्ञान

By प्रमोद भार्गव | Updated: January 15, 2024 11:08 IST

आमतौर से सूर्य को प्रकाश और गर्मी का स्रोत माना जाता है, लेकिन अब वैज्ञानिक यह जान गए हैं कि यदि सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो जाए, तो पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीव-जंतु तीन दिन के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे।

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ठळक मुद्देआमतौर से सूर्य को प्रकाश और गर्मी का स्रोत माना जाता है50 करोड़ साल पहले सूर्य की ऊर्जा की रहस्य को जानने के साथ ही ऋग्वेद में लिख गए थेविश्व की गतिशील तथा स्थिर वस्तुओं की आत्मा सूर्य ही है- ऋषि-मुनि

आमतौर से सूर्य को प्रकाश और गर्मी का स्रोत माना जाता है, लेकिन अब वैज्ञानिक यह जान गए हैं कि यदि सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो जाए, तो पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीव-जंतु तीन दिन के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। सूर्य के हमेशा के लिए अंधकार में डूबने के चलते वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प ठंडी बर्फ के रूप में गिर जाएगी और असहनीय शीतलता से कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह पाएगा। 

करीब 50 करोड़ साल पहले से सूर्य की  ऊर्जा की रहस्य-शक्ति को हमारे ऋषि-मुनियों ने पांच हजार साल पहले ही जान लिया था और वे ऋग्वेद में लिख गए थे, 'आप्रा द्यावा पृथिवी अंतरिक्षः सूर्य आत्मा जगतस्थश्च।' इसका मतलब यह हुआ कि विश्व की गतिशील तथा स्थिर वस्तुओं की आत्मा सूर्य ही है। ऋग्वेद के मंत्र में सूर्य का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व उल्लेखित है। प्रकृति के रहस्यों के प्रति जिज्ञासु ऋषियों ने हजारों साल पहले जिस सत्य का अनुभव किया था, उसकी विज्ञान ने पुष्टि अब 21वीं सदी में वैज्ञानिक प्रयोगों से संभव हो रही है।

सौर मंडल के ग्रह, उपग्रह और उसमें स्थित जीवधारी सूर्य से ही जीवन प्राप्त कर रहे हैं। पृथ्वी पर जीवन का आधार सूर्य ही है। सभी जीव-जंतु और वनस्पति जगत का जीवन चक्र सूर्य पर ही पूर्ण रूप से निर्भर है। सूर्य के इन्हीं गुणों के कारण वैदिक काल में अनेक काव्यात्मक सूक्तों की रचना की गई और ऐतिहासिक काल में सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया गया। वैदिक रूप में सूर्य को काल गणना का कारण मान लिया गया था। ऋतुओं में परिवर्तन का करण भी सूर्य को माना गया। 

वैदिक समय में ऋतुचक्र के आधार पर सौर वर्ष या प्रकाश वर्ष की गणना शुरू हो गई थी, जिसमें 1 वर्ष में 360 दिन रखे गए। वर्ष को वैदिक ग्रंथों में संवत्सर नाम से जाना जाता है। नक्षत्र, वार और ग्रहों के छह महीने तक सूर्योदय उत्तर-पूर्व क्षितिज से, अगले छह माह दक्षिण पूर्व क्षितिज से होता है। इसलिए सूर्य का काल विभाजन उत्तरायण और दक्षिणायन के रूप में है।

उत्तरायण के शुरू होने के दिन से ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। यही दिन मकर तथा कर्क राशि से सूर्य को जोड़ता है। इसलिए उस दिन भारत में मकर-संक्रांति का पर्व मनाने की परंपरा है। वेदकाल में यह साफ तौर से पता लगा लिया गया था कि प्रकाश, ऊर्जा, वायु और वर्ष के लिए समस्त भूमंडल सूर्य पर ही निर्भर है।

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