-वेदप्रताप वैदिकअफगानिस्तान के शहर जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं का जिस तरह से कत्लेआम हुआ है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। उनका एक प्रतिनिधिमंडल अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिलने जलालाबाद जा रहा था। लेकिन वह वहां पहुंचता, उसके पहले ही 20 लोगों की हत्या कर दी गई। प्रतिनिधिमंडल में अक्तूबर में होने वाले संसदीय चुनाव के एक उम्मीदवार अवतार सिंह भी शामिल थे। इस हत्याकांड की जिम्मेदारी निजामे-मुस्तफा (इस्लामिक स्टेट) ने ली है, जो कि मूल रूप से अरब देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। किसी तालिबान संगठन का नाम इस मामले में अभी सामने नहीं आया है।
अफगानिस्तान में सिख और हिंदू लोग सदियों से रहते आए हैं। वे अपने धर्म का पालन निष्ठापूर्वक करते हैं लेकिन इस्लामी रीति-रिवाजों का सम्मान भी वे पूरी तरह करते रहे हैं। तालिबान से भी उनके संबंध सरल रहे हैं। काबुल के लोकप्रिय सांसद बबरक कारमल, जो बाद में राष्ट्रपति बने, मुङो काबुल के गुरुद्वारे और आसामाई का 1800 साल पुराना मंदिर दिखाने 1969 में ले गए थे। अफगान बादशाह जहीर शाह और लगभग सभी अफगान राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों का हिंदुओं और सिखों से सदा मधुर संबंध रहा है।
अफगानिस्तान की संसद के अध्यक्ष वरदक साहब ने मुङो 1969 में जब पहली बार संसद देखने के लिए बुलाया तो मुङो लेने एक सिख सांसद और उपाध्यक्ष अहद करजई (पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई के पिता) को भेजा था। अफगानिस्तान के सिखों ने अफगान-संस्कृति से पूरा तालमेल बिठा रखा है। वे पश्तो और फारसी बोलते हैं और ज्यादातर सिख व्यापारी हैं। उन पर तालिबान हमला करें, इसकी संभावना कम से कम है। यह हमला पाक के आतंकवादी गुटों की तरफ से किया गया हो सकता है। पाकिस्तान सरकार को अपने आतंकियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की जरूरत है।
(वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार)