‘फुटबॉल हूलीगैनिज्म’ या ‘सॉकर हूलीगैनिज्म’ यह एक संज्ञा है जो फुटबॉल समर्थकों के उपद्रवी आचरण को देखते हुए गढ़ी गई.
इसे ‘फुटबॉल फर्म्स’ भी कहा जाता है. इंग्लैंड के फुटबॉल समर्थक ‘फुटबॉल हूलीगैनिज्म’ के लिए दुनियाभर में बदनाम हैं, बल्कि हम नहीं सुधरेंगे यह उनका फलसफा है. रविवार को यूरो कप के फाइनल में इटली के खिलाफ परास्त होने के बाद इग्लैंड के समर्थकों ने फिर अपनी तासिर पेश कर दी.
पांच दशक से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन इंग्लैंड की फुटबॉल टीम कोई बड़ा खिताब अपने नाम नहीं कर पाई है. सन् 1966 में इंग्लैंड ने पश्चिम जर्मनी को 4-2 से परास्त कर विश्वकप पर कब्जा किया था लेकिन तबसे इसे बड़े खिताब के लाले पड़े हैं.
यूरो कप-2020 के फाइनल में पहुंचते ही इंग्लैंड के समर्थक हवा में तैरने लगे थे और चूंकि फाइनल घर में (लंदन) ही था इसलिए उन्होंने अपनी जीत पक्की मान ली थी, पर इटली ने जैसे ही उन्हें जमीन पर पटका उनका संयम टूटा. हार से विचलित इंग्लैंड के समर्थकों ने इटली के समर्थकों को तो पीटा ही, साथ ही पेनल्टी शूटआउट में निशाना चूके अपने ही देश के तीन खिलाड़ियों पर नस्लीय टिप्पणी करने से भी वह बाज नहीं आए. ताज्जुब इस बात का है कि ब्रिटिश खेल प्रेमी क्रिकेट, हॉकी या टेनिस में शांति से मुकाबलों का मजा लेते हैं.
खासकर क्रिकेट और टेनिस में उनकी निष्पक्षता की मिसाल दी जाती है. जो रूट के शतक पर इंग्लैंड के समर्थक जितनी तालियां बजाते हैं उतनी ही तालियां विराट कोहली के शतक पर भी बजाई जाती है. हाल ही में समाप्त प्रतिष्ठित विंबलडन टेनिस चैंपियनशिप के नॉकआउट दौर में इंग्लैंड का कोई खिलाड़ी नहीं था लेकिन अंग्रेज दर्शकों ने सभी खिलाड़ियों की निष्पक्षता से हौसला अफजाई की.
मगर जिक्र फुटबॉल का हो तो इंग्लैंड समर्थकों का दिमाग घूम जाता है. इतिहास बताता है कि इंग्लैंड के फुटबॉल समर्थकों की बेलगामी साठ के दशक से शुरू हुई है. अस्सी और नब्बे के दशक तक पहुंचते-पहुंचते वे हिंसक भी हो गए. 2004 के यूरो कप टूर्नामेंट के एक मुकाबले में इंग्लैंड को फ्रांस के खिलाफ नाटकीय अंदाज में हार का सामना करना पड़ा.
फ्रेंच कप्तान जिनेदिन जिदान ने इंजुरी टाइम में लगातार दो गोल दागे और 1-0 से आगे चल रहा इंग्लैंड हार गया. इसके बाद पूरे देश में हिंसा भड़की. उपद्रवियों ने पुलिस तक पर हमले कर दिए. कुछ साल पहले एक अध्ययन में इंग्लैंड के फुटबॉल समर्थकों को दुनिया के सबसे घटिया और हिंसक दर्शक माना गया था.
कहा जाता है कि फुटबॉल खेल ही ऐसा है जो खेलनेवालों और देखनेवालों के खून में उबाल लाता है लेकिन यह अध्ययन का विषय है कि आखिर वह कौन-सा मनोविज्ञान है जब खिलाड़ी नहीं, लेकिन दर्शक हिंसक हो जाते हैं. जो भी हो यह तो सच है कि अंग्रेज चाहे जितना कहें लेकिन अब भी उनका नजरिया नहीं बदला है.