Trump Tariff on India: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प रूस को सबक सिखाना चाहते हैं. इसके लिए वे भारत पर बेतुका दबाव डाल रहे हैं. उन्होंने हिंदुस्तानी उत्पादों पर पचास फीसदी टैरिफ थोपा है. वे अमेरिका फर्स्ट की बात करते हैं, लेकिन भारत को इंडिया-फर्स्ट की बात नहीं करने देना चाहते. अर्थात ट्रम्प के लिए अपने राष्ट्रीय हित तो सर्वोच्च प्राथमिकता रखते हैं, लेकिन वे चाहते हैं कि हिंदुस्तान अपने राष्ट्रीय हितों को उनकी मंशा के लिए कुर्बान कर दे. ऐसी अपेक्षा संसार का कोई सिरफिरा राष्ट्राध्यक्ष ही कर सकता है. मैं नहीं कहता कि भारत को इस अनाप-शनाप टैरिफ बढ़ोतरी से कोई नुकसान नहीं होगा.
लेकिन अमेरिका की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था ऐसे झटकों को बर्दाश्त करने के लिए ज्यादा मजबूत है. इसे सिद्ध करने के लिए किसी गणित का फॉर्मूला लगाने की आवश्यकता नहीं है. फिर भी कुछ जानकारों के लिए याद दिला सकता हूं कि सोलह साल पहले जब वैश्विक महामंदी आई थी तो अमेरिका में हाहाकार मच गया था, बैंक डूब गए थे, करोड़ों अमेरिकी गोरों की बैंकों में जमा मेहनत की कमाई मिट्टी में मिल गई थी. अमेरिका में दनादन आत्महत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया था और सारा देश बदहवासी के आलम में था.
दूसरी ओर डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने हिंदुस्तान पर आंच नहीं आने दी थी. भारत के लिए वह मंदी छोटे-मोटे ट्रिमर्स ( अत्यंत हल्के किस्म की जमीनी हलचल या मामूली कंपन ) जैसी थी और अमेरिका के लिए सुनामी अथवा रिक्टर स्केल पर 8 या 9 पैमाने का भीषण भूकंप. कारण यह कि अमेरिका और भारत की औसत आर्थिक सेहत में बहुत फर्क है.
आम अमेरिकी के लिए रोजमर्रा की जरूरतों में बीयर की एक बोतल, गाड़ी के लिए डीजल-पेट्रोल, मछली पकड़ने के संसाधन, उम्दा मोबाइल फोन और शानदार कपड़ों को शामिल कर सकते हैं. मगर औसत भारतीय दाल-रोटी और प्रतिदिन की आवश्यकता के लिए मामूली खर्च से गुजारा कर लेता है. एक बानगी पर्याप्त होगी.
जब दिसंबर 2007 से जून 2009 के मध्य महामंदी विश्व भर में आई तो अमेरिका में आत्महत्याओं की बाढ़ आ गई थी. वहां 2007 में मौतों की संख्या में आत्महत्या ग्यारहवां बड़ा कारण था. करीब 35000 संपन्न लोगों ने आत्महत्याएं की थीं. उस दरम्यान लगभग पांच करोड़ लोगों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किया था. बीते पचहत्तर-अस्सी साल में अमेरिका ने ऐसा भयावह दौर नहीं देखा था.
भारत ऐसे जलजले से बचा रहा था. डोनाल्ड ट्रम्प ने नोबल पुरस्कार की वासना में शेष विश्व से जो जंग छेड़ी है, वह एक तरह से अपनी जांघ उघाड़ने जैसा उपक्रम है. उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. डोनाल्ड ट्रम्प के इस निर्णय से भारत, रूस, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे बड़े राष्ट्र यकीनन उनको धन्यवाद देना चाहेंगे.
अमेरिकी राष्ट्रपति के ऐसे बेतुके निर्णयों ने उन्हें आपस में और निकट आने का अवसर दिया है. ब्रिक्स जैसा संगठन अब और ताकतवर होकर विश्व मंच पर उपस्थित होगा और अमेरिकी टैरिफ से लगने वाले छोटे-मोटे झटकों से उबर जाएगा. बताने की आवश्यकता नहीं कि डोनाल्ड ट्रम्प ब्रिक्स से चिढ़ते हैं. उनकी आंखें उनकी ही रिपब्लिकन पार्टी की कद्दावर नेता निक्की हेली की चेतावनी से भी नहीं खुली हैं.
निक्की एक समय अमेरिका के राष्ट्रपति पद की गंभीर दौड़ में शामिल थीं. वे कहती हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों से अमेरिका की पिछले पच्चीस बरस की मेहनत बेकार चली गई है. भारत न केवल संसार की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, बल्कि डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाला बड़ा बाजार है. इसी कड़ी में संसार के सबसे बड़े अर्थशास्त्री जैफरी सैश की चेतावनी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
वे अमेरिकी हैं और कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. उन्होंने आगाह किया है कि भारत पर इतना ज्यादा टैरिफ लगाकर ट्रम्प ने अमेरिका का नुकसान किया है. इससे अमेरिका अलग-थलग पड़ जाएगा और उसकी कंपनियों को भारी हानि होगी. प्रोफेसर सैश ने एक साक्षात्कार में कहा कि ट्रम्प हिंदुस्तान की बांह मरोड़ने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन वह कामयाब नहीं होंगे.
डोनाल्ड ट्रम्प सोचते हैं कि वे भारत को धमकाकर काम निकाल लेंगे. पर यह सोचना समझदारी नहीं है कि वे इतने विराट लोकतांत्रिक देश को भयभीत कर सकते हैं. इससे होगा यह कि भारत अमेरिका से हमेशा के लिए छिटक जाएगा. उन्होंने कहा, ‘ट्रम्प अमेरिका को वैश्विक अर्थतंत्र से अलग-थलग कर रहे हैं. वह अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्र का नुकसान कर रहे हैं.
हो सकता है कि उनके इस कदम से अमेरिकी कंपनियां घरेलू उत्पादन बढ़ा दें, लेकिन वे अंतरराष्ट्रीय बाजार की होड़ से बाहर हो जाएंगी. अमेरिकी राष्ट्रपति अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हैं, बल्कि अमेरिका के पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. वह अपने विरुद्ध बाकी दुनिया को एकजुट करने का काम कर रहे हैं.’
सैश ने कहा कि ट्रम्प और उनके सलाहकार हिंदुस्तान के बारे में ज्यादा नहीं जानते. उन्होंने कहा, ‘मैं तो भारत में अपने दोस्तों से कहता हूं कि अमेरिका पर ज्यादा भरोसा न करें. दरअसल अमेरिका को भारत के विकास की कोई परवाह नहीं है.’ सैश ने भारत पर ज्यादा टैरिफ लगाने के ट्रम्प के फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह अमेरिका की विदेश नीति के इतिहास में अब तक का सबसे बेवकूफी भरा फैसला है. इससे अमेरिका को एशिया में भारत जैसे भरोसेमंद साथी से हाथ धोना पड़ सकता है.
अंतिम सवाल यह है कि क्या आज के संसार में कोई विकसित देश अपनी सनक के आधार पर दोहरे मापदंड अपनाते हुए दुनिया को संचालित कर सकता है? यूरोपीय देश तो रूस से 6 लाख करोड़ का कारोबार कर सकते हैं. रूस से खुद अमेरिका खाद और रासायनिक उत्पाद खरीद सकता है तो भारत को तेल खरीदने से वह किस आधार पर रोक सकता है ? खास तौर पर ऐसी स्थिति में कि उसे अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन के रूस से तेल आयात करने पर कोई ऐतराज नहीं है.