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शंघाई सहयोग संगठन 2025ः चीन की चाल...तानाशाह की किस्मत!

By विजय दर्डा | Updated: September 1, 2025 05:05 IST

Shanghai Cooperation Organisation 2025: भारत को डेड इकोनॉमी कहा लेकिन भारतीय जीडीपी अभी भी 7.5 की रफ्तार से बढ़ रही है.

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ठळक मुद्देइस बीच खबर है कि ट्रम्प ने अपनी प्रस्तावित भारत यात्रा रद्द कर दी है.पूरे उथल-पुथल के बीच एक खबर ने सबका ध्यान खींचा है.उत्तर कोरिया के खूंखार तानाशाह को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है.

Shanghai Cooperation Organisation 2025: हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान होते हुए चीन पहुंचे हैं. जापान से हमारे रिश्ते हमेशा ही बेहतरीन रहे हैं. जापान का नजरिया हमारे प्रति केवल आर्थिक ही नहीं है, सांस्कृतिक भी है. हम भले ही उन्हें आर्थिक रूप से पछाड़ कर तीसरी बड़ी शक्ति बन चुके हैं लेकिन जापान की तकनीकी क्षमता कमाल की है. जहां तक सात साल बाद प्रधानमंत्री की चीन यात्रा का सवाल है तो पूरी दुनिया की आंखें लगी हुई हैं कि ये महाशक्तियां क्या करने जा रही हैं. इस बीच खबर है कि ट्रम्प ने अपनी प्रस्तावित भारत यात्रा रद्द कर दी है.

उन्होंने भारत को डेड इकोनॉमी कहा लेकिन भारतीय जीडीपी अभी भी 7.5 की रफ्तार से बढ़ रही है. ट्रम्प को निश्चय ही मिर्ची लग रही होगी लेकिन मुझे लगता है कि अभी भी यदि सही तरीके से प्रयास किए जाएं तो दोनों देशों के रिश्ते पटरी पर लौट सकते हैं. इस पूरे उथल-पुथल के बीच एक खबर ने सबका ध्यान खींचा है.

चीन ने बीजिंग में 3 सितंबर को होने वाली सैन्य परेड के लिए उत्तर कोरिया के खूंखार तानाशाह को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है. उस सैन्य परेड में पुतिन भी होंगे. सवाल यह है कि इस साल चीन ने उत्तर कोरिया के तानाशाह को क्यों बुलाया है? इसके पहले 1959 में किम जोंग उन के दादा किम सुंग ने चीनी परेड में भाग लिया था.

उसके बाद से वहां के किसी नेता को चीन ने कभी बुलाया ही नहीं. तो इस बार ऐसा क्या हो गया कि किम जोंग उन के लिए अचानक प्रेम उमड़ पड़ा? यह हम सभी जानते हैं कि उत्तर कोरिया के दो सबसे बड़े समर्थक हैं. एक रूस और दूसरा चीन. वह दोनों की गोद में खेलता है.

लेकिन दोनों ही देश यह जानते हैं कि ये दुनिया का उपद्रवी गुंडा है और अमेरिका के खिलाफ एक कारगर हथियार के रूप में काम आ सकता है. किम जोंग उन जानते हैं कि यदि इन दो पड़ोसियों ने कभी नाक टेढ़ी कर ली तो मुश्किल होगी. इसलिए वे अपने सैनिकों को रूस की ओर से लड़ने के लिए भेजते हैं तो जरूरत के अनुसार रूस और चीन को मजदूरों की सप्लाई भी करते हैं.

मजदूरों और सैनिकों के हिस्से में बस थोड़ा सा पैसा आता है और ज्यादतर हिस्सा किम जोंग के हिस्से में चला जाता है. अमेरिका और नॉर्थ कोरिया में हमेशा 36 का आंकड़ा रहा क्योंकि कोरिया के दो भागों में टूटने के बाद साउथ कोरिया पर अमेरिका का साया रहा जबकि रूस के साये में नॉर्थ कोरिया तानाशाह के कब्जे में चला गया.

अमेरिका ने बहुत कोशिश की लेकिन किम जोंग उन ने आखिरकार परमाणु बम बना ही लिया और वह दावा करते हैं कि न्यूयॉर्क, वाशिंगटन  से लेकर दूसरे तमाम अमेरिकी शहर उनकी जद में हैं. आपको याद होगा कि 2019 में डोनाल्ड ट्रम्प ने किम जोंग उन से मुलाकात भी की थी. उस  मुलाकात में चीन ने पर्दे के पीछे से बड़ी भूमिका निभाई थी.

तानाशाह ने ट्रम्प की एक बात भी नहीं मानी और ट्रम्प का शांति दूत बनने का ख्वाब अधूरा रह गया. ट्रम्प की चाहत है कि तानाशाह से वे एक बार और मिलें. अभी हाल ही में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्यांग से मुलाकात के दौरान ट्रम्प ने यह इच्छा जाहिर की थी. इसी साल के अंत में वे शी जिनपिंग से भी मिलना चाहते हैं.

ट्रम्प की इस इच्छा ने ही संभवत: चीन को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह किम जोंग उन को बुलाकर अमेरिका को यह संदेश दे कि दुनिया का ये गुंडा तो हमारा है! चीन की इस चाल के पीछे मंशा यही है कि अमेरिका को धमकाया जा सके. बीजिंग सैन्य परेड में पुतिन भी साथ में होंगे तो अमेरिका की कुछ ज्यादा ही जलेगी.

आपको याद होगा कि 2019 में ट्रम्प से मुलाकात के ठीक पहले 2018 में किम ने बीजिंग की यात्रा की थी. इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि अमेरिका को स्पष्ट रूप से संदेश मिल जाएगा कि ट्रम्प और किम के बीच चीन फंदा फंसाए रखेगा. जब ट्रम्प के साथ शी जिनपिंग की बात होगी तो निश्चित रूप से शी जिनपिंग ज्यादा भारी पड़ेंगे.

अब आप इस बात पर नजर डालिए कि चीन की यह बड़ी चाल तानाशाह के लिए तोहफा लेकर आई है. इस समय करीब-करीब पूरी दुनिया ने नॉर्थ कोरिया का बहिष्कार कर रखा है. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान, कंबोडिया, वियतनाम, ईरान, लाओस, मलेशिया, उज्बेकिस्तान, नेपाल, मालदीव, बेलारूस, तुर्कमेनिया, अर्मेनिया, सहित दुनिया के 20 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी वाली सैन्य परेड में किम की उपस्थिति निश्चित रूप से उनकी तानाशाही को वैधता ही प्रदान करेगी. लेकिन इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए? एक तानाशाह हमेशा दूसरे तानाशाह का साथ ही देता है.

मगर किम जोंग उन नाम का यह तानाशाह शायद ईदी अमीन और हिटलर से भी ज्यादा खतरनाक है. उसके शासनकाल में क्रूरता की सारी हदें पार की जा रही हैं. वहां से खबरें आमतौर पर बाहर नहीं आ पातीं लेकिन जो लोग किसी तरह सीमा पार करके साउथ कोरिया आने में सफल रहे हैं, उनकी कहानियां रोंगटे खड़े कर देती हैं.

राजधानी प्योंगयांग में रहने का अधिकार केवल उस वर्ग को है जो किम का वफादार है. देश के बाकी हिस्सों के नॉर्थ कोरियाई नागरिक राजधानी में नहीं घुस सकते. गांवों में भीषण गरीबी है. यदि किसी ने भूलवश भी किसी तरह की गुस्ताखी कर दी तो उसकी तीन पीढ़ियां जेल में सड़ेंगी. वहां लोग अपनी मर्जी के कपड़े नहीं पहन सकते, अपनी मर्जी से हेयर स्टाइल भी नहीं रख सकते.

कोई गुस्ताखी माफ नहीं है. उसके डिफेंस चीफ को बैठक में झपकी आ गई तो उसे गोली से उड़ा दिया गया. किम ने अपने भाई किम जोंग नैम को मलेशिया एयरपोर्ट पर चेहरे पर जहर मलवा कर मार दिया था. ऐसे तानाशाह को मजबूती मिलने का मतलब है, नॉर्थ कोरिया में दमन को वैधता प्रदान करना. लेकिन क्या कीजिएगा, ट्रम्प ने हालात ऐसे पैदा कर दिए हैं कि ऐसी शक्तियां एकजुट होंगी. आम आदमी की जिंदगी से उन्हें क्या लेना-देना! खुशनसीब हैं हम कि ऐसे भारत में रहते हैं जहां आजादी मौजूद है. सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा.

टॅग्स :चीननरेंद्र मोदीशी जिनपिंगदिल्लीअमेरिकाजापान
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