PM Modi SCO Summit China: इतिहास में दर्ज कई कटु अनुभवों के साथ भारत और चीन एक बार फिर साथ मिले हैं. चीन के तियानजिन पहुंचने पर जोरदार स्वागत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई है. वर्ष 2018 के बाद प्रधानमंत्री मोदी का यह पहला चीन दौरा है. पिछले साल तक करीब 127.7 अरब डॉलर तक का द्विपक्षीय व्यापार करने वाले देशों की कटुता के बावजूद मुलाकात अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ‘टैरिफ’ नीति के कारण संभव हुई. ट्रम्प दोनों ही देशों के साथ आर-पार करने में जुटे हुए हैं,
जिसके चलते दोनों के समक्ष व्यापार घाटा कम करना बड़ी चुनौती है. मेल-जोल का यह मुहूर्त शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के बहाने निकला है, जिसमें शामिल होने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी चीन के चार दिवसीय दौरे पर पहुंच गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ बैठक की.
भारत ने अपने नए दौर को पिछले साल अक्तूबर में रूस के कजान में हुई सार्थक चर्चा के बाद अगला कदम बताया, जिसका एक परिणाम कैलाश मानसरोवर यात्रा का दोबारा आरंभ होना बताया गया. इसी से दोनों देशों के संबंधों को एक सकारात्मक दिशा मिलने के साथ सीमा पर शांति और स्थिरता का माहौल बना है. दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें भी फिर से शुरू की जा रही हैं.
भारत जहां दोनों देशों के बीच सहयोग को 2.8 अरब लोगों के हितों से जोड़कर देखता है, वहीं दूसरी ओर चीन बदलाव का हवाला देने के साथ दोनों देशों को विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों के अलावा दो सबसे प्राचीन सभ्यताएं मानता है. इसीलिए चीनी राष्ट्रपति के शब्दों में दोनों देशों का दोस्त बने रहना, अच्छे पड़ोसी होना तथा ड्रैगन और हाथी का साथ आना बहुत जरूरी है.
मगर सवाल यही है कि चीनी मिठास का भरोसा कैसे किया जाए? आजादी के बाद से दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध बनाने के प्रयास हुए, लेकिन हर बार भारत को ही धोखा खाना पड़ा. हाल के दिनों में सबसे कटु अनुभव जून 2020 में गलवान घाटी में चीनी आक्रामकता के चलते सेना के 20 जवानों के बलिदान के रूप में सामने आया था.
जिसके बाद चीन के खिलाफ अनेक कदम उठाए गए, जिनमें व्यापार से लेकर हवाई सफर तक शामिल था. हाल के दिनों में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान चीन ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया और अब सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी शामिल हैं. इस दृष्टि से चीन की ईमानदारी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
फिलहाल अमेरिका के बाद व्यापार के लिए अनेक साझेदारों की तलाश चल रही है, जिनमें एक चीन भी शामिल हो सकता है. यह मजबूरी की दोस्ती हो सकती है. इसमें आपसी विश्वास के बढ़ने की गुंजाइश कम है. यदि कम से कम व्यावसायिक स्तर पर भी ईमानदारी निभाई जाए तब भी दोनों देशों के लिए लाभप्रद हो सकता है. पुराने अनुभवों से शायद नई पहल भी यहीं तक सीमित रहेगी.