PM Modi in Maldives: इसे कहते हैं कूटनीति! भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते सप्ताह मालदीव के स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने राजधानी माले पहुंचे तो नजारा शानदार था! माले की सड़कों पर हर ओर भारतीय तिरंगा शान से लहरा रहा था. अपने चुनाव अभियान में भारत के खिलाफ जहर उगलने और भारत आउट का नारा लगाते हुए राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाले मोहम्मद मुइज्जू ने नरेंद्र मोदी के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा दिए. आखिर मोहब्बत की ये नई बहार आई कैसे? हर तरफ ये सवाल पूछा जा रहा है!
मो. मुइज्जू ने अपने चुनाव के दौरान पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के साथ मिलकर मालदीव में ‘इंडिया आउट’ का घनघोर अभियान चलाया था. सत्ता संभालने के बाद मुइज्जू ने फरमान जारी कर दिया कि भारत अपने सैनिकों को वापस बुला ले. दरअसल इब्राहिम मोहम्मद सोलिह जब मालदीव के राष्ट्रपति थे तब भारत ने मालदीव को दो हेलिकॉप्टर और एक डोनियर एयरक्राफ्ट इमरजेंसी मेडिकल सर्विसेज, रेस्क्यू और समुद्र की निगरानी और पैट्रोलिंग के लिए दिया था. इसकी देखरेख के लिए भारतीय सेना के कुछ अधिकारी एवं सैनिक वहां भेजे गए थे.
मुइज्जू का कहना था कि मालदीव की धरती पर विदेशी सैनिकों को रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती. दरअसल उनकी आक्रामकता के पीछे चीन का बहुत बड़ा हाथ था. चीन उन्हें ढेर सारे प्रलोभन दे रहा था. मुइज्जू भी चीन के इश्क में डूबे हुए थे. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने पहली यात्रा चीन की ही की.
वहां से लौटे तो भारत की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम छोटे देश हैं इसका यह मतलब नहीं कि किसी की धौंस में रहें. मुइज्जू भारत के साथ संबंधों को तार-तार करते रहे लेकिन भारत ने एक शब्द भी नहीं बोला. भारत समझ रहा था कि मालदीव में चीन अपना स्थायी बसेरा बनाना चाहता है. भारतीय सैनिकों को वहां से इसलिए हटाना चाहता है ताकि समुद्र पर भारत नजर न रख सके.
भारत के लक्षद्वीप से मालदीव की दूरी महज 700 किलोमीटर है और सामरिक दृष्टि से भारत के लिए मालदीव बहुत मायने रखता है. भारत को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना था जिससे रिश्ते पूरी तरह टूट जाएं लेकिन मालदीव पर दबाव भी बनाए रखना था कि वह चीन की गोद में पूरी तरह न बैठ जाए! वैसे वहां चीनी पैठ पहले से है और राजनीति का एक तबका चीन समर्थक है.
जनवरी 2024 के पहले सप्ताह में नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप की यात्रा की. वहां समुद्र किनारे बैठे, स्नॉर्कलिंग की और लक्षद्वीप की खूबसूरती की तारीफ भी की. उन्होंने मालदीव से लक्षद्वीप की तुलना नहीं की थी लेकिन मालदीव में भारत विरोधियों को यह नागवार गुजरा. इधर सोशल मीडिया ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया जिससे भारत में मालदीव के खिलाफ वातावरण बनने लगा.
बहुत से पर्यटकों ने मालदीव की यात्रा रद्द कर दी. जिस देश के लिए पर्यटन उसका मुख्य आधार हो, वैसे मालदीव के लिए यह बड़ा झटका था. इधर वहां के तीन मंत्रियों ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोल दिया. उसके बाद मालदीव की आंतरिक राजनीति में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि उन तीनों मंत्रियों को मुइज्जू को निलंबित करना पड़ा.
रिश्तों की ये बर्फ तब भी जमी रही जब मोइज्जू ने पिछले साल भारत की यात्रा की. मगर भारत ने शालीनता बरती और मालदीव को लगातार इस बात का भरोसा दिया कि पूर्व में हर संकट के समय जिस तरह से भारत खड़ा रहा है, भविष्य में भी वैसे ही खड़ा रहेगा. भारत ने स्पष्ट किया कि छोटी समस्याएं रिश्तों को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर सकतीं.
इधर मुइज्जू को एहसास हो गया कि चीन ने जो सपने दिखाए थे, वह पूरे नहीं हो रहे हैं. चीन अपनी शर्तों पर मदद करता है. वह अपना मुनाफा देखता है जबकि भारत का दिल बहुत बड़ा है. संकट कोई भी हो, भारत तत्काल मदद के लिए आगे आता है. 1988 में वहां तख्तापलट की कोशिश को भारत ने ही नाकाम किया था.
सुनामी के दौरान भरपूर सहायता की और 2014 में जब माले में पानी का भीषण संकट पैदा हुआ तो भारत ने ही प्यास बुझाई थी. कोविड-19 से निपटने के लिए भारत ने न केवल चिकित्सकीय सामग्री और रसद पहुंचाई बल्कि भरपूर वित्तीय मदद भी की. चीन से इस तरह की मदद की मालदीव उम्मीद भी नहीं कर सकता.
भारत ने मालदीव को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दे रखा है जिसके चुकाने का समय आ गया लेकिन मालदीव के पास पैसे नहीं थे तो भारत ने कर्ज को एक साल के लिए और बढ़ा दिया. मालदीव इस समय भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है और भारत उसके लिए बड़ी उम्मीद है.
यही कारण है कि मुइज्जू को यह समझ में आ गया कि मालदीव को संकटों से निकाल कर सही रास्ते पर ले जाना है तो भारत के साथ रिश्तों के तार मजबूत होने चाहिए. भारत भी संकटमोचक की भूमिका निभाने के लिए सदैव तत्पर रहा है और भविष्य में भी रहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मालदीव के 60वें स्वतंत्रता दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में बुलाकर मुइज्जू ने बर्फ पिघलाई है तो यह दोनों देशों के हित में है. मोहब्बत की ये नई बहार अब और परवान चढ़नी चाहिए.