IND VS USA 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जिस तरह एक अगस्त से भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, उसे अगर विश्वासघात कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. दरअसल अमेरिका के साथ भारत की व्यापार वार्ता अभी चल ही रही थी और प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर अगले दौर की वार्ता के लिए अमेरिकी टीम 25 अगस्त को भारत आने वाली थी. यह भी संभावना जताई जा रही थी कि दोनों देशों के बीच डील सितंबर या अक्तूबर तक हो सकती है. हालांकि अमेरिका ने भारत के साथ अभी भी बातचीत जारी रखने की बात कही है,
लेकिन 25 प्रतिशत टैरिफ के उनके एकतरफा कदम की घोषणा से क्या यह वार्ता सकारात्मक माहौल में हो पाएगी? ट्रम्प ने रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदने के कारण भारत पर अतिरिक्त जुर्माना लगाने की बात भी कही है, लेकिन सवाल यह है कि भारत किन देशों के साथ कैसा और कितना व्यापार करे, इसका फैसला करने वाले ट्रम्प कौन होते हैं?
एक तरफ तो ट्रम्प भारत को अपना एक अच्छा दोस्त बताते हैं और दूसरी तरफ मनमाने ढंग से टैरिफ के साथ ही जुर्माना थोपकर उसे अपमानित करने की कोशिश भी करते हैं! पिछले कुछ महीनों में ट्रम्प ने विभिन्न वैश्विक मामलों में जिस तरह से पलटी मारी है, उससे यह साबित हो गया है कि वे विश्वास के योग्य बिल्कुल भी नहीं हैं.
वे एक दिन जो बात कहते हैं, पूरी बेशर्मी के साथ अगले दिन उससे पलट जाते हैं. जबकि रूस हमारा आधी सदी से भी अधिक पुराना आजमाया हुआ दोस्त है और ऐसे मौकों पर भी भारत के साथ चट्टान जैसी मजबूती के साथ ढाल बनकर खड़ा रहा है जब लगभग पूरी दुनिया ही हमारे खिलाफ थी.
इसलिए ट्रम्प जैसे सनकी अमेरिकी राष्ट्रपति की टैरिफ और जुर्माने की धमकी से डरकर रूस जैसे अपने विश्वासपात्र देश के साथ दूरी बनाना कतई उचित नहीं होगा. अमेरिकी और यूरोपीय देशों के पाखंड पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले साल यह कहकर करारा वार किया था कि ‘भारत जितना तेल रूस से एक महीने में खरीदता है, यूरोप मॉस्को से उससे कहीं ज्यादा तेल आधे दिन में आयात कर लेता है.’
जहां तक ट्रम्प की व्यापार घाटे की शिकायत है और भारत पर ‘टैरिफ किंग’ की तोहमत लगाने का सवाल है, भारत अगर इतना ही टैरिफ लगाता तो चीन हमारे यहां इतना अधिक निर्यात कैसे कर पाता? अगर अमेरिका का महंगा सामान हमारे देश में खपता नहीं है तो इसमें गलती किसकी है?
बेशक कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां अमेरिका को घुसपैठ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती और कृषि क्षेत्र भी इसमें शामिल है. जनसंख्या के मुकाबले अमेरिका के विशाल क्षेत्रफल के चलते वहां के सस्ते अनाज को अगर भारतीय बाजारों में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी तो हमारे किसान तो तबाह ही हो जाएंगे!
इसके अलावा वहां के ‘नाॅनवेज दूध’ से बनने वाले दुग्ध उत्पादों को भी भारतीय बाजार में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती. हकीकत यह है कि वैश्वीकरण से जिस तरह पूरी दुनिया का भला होने की उम्मीद जताई जा रही थी, वह भ्रम अब टूटने लगा है. इसलिए हमें अब कम से कम बुनियादी चीजों के मामले में तो अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी होगी, ताकि फिर कोई ट्रम्प जैसा सनकी शासक हमें धमकाने की जुर्रत न कर सके.