कहावत है कि वक्त पहलवान को भी पटखनी दे देता है. सामान्य जीवन में तो यह बात हम महसूस करते ही हैं, यदि इतिहास पर नजर डालें तो वैश्विक स्तर पर भी यह बात सौ फीसदी सच लगती है. क्या कभी किसी ने सोचा था कि जिस ब्रिटेन ने करीब तीन सौ साल तक दुनिया के अलग-अलग हिस्सों पर राज किया, उसका पतन हो जाएगा. ब्रिटेन एक समय इतना शक्तिशाली था कि दुनिया के 56 देशों को उसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना गुलाम बना रखा था. धरती का करीब 24 प्रतिशत हिस्सा और 23 प्रतिशत आबादी उसके कब्जे में थी. आज उसकी हालत क्या है, यह किससे छिपा है?
केवल ब्रिटेन ही क्यों फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, नीदरलैंड और जर्मनी जैसे देशों ने भी कई देशों को अपना उपनिवेश बना रखा था. इतिहास बताता है भारत में ब्रिटेन का तो राज था ही, पुर्तगाल, फ्रांस, और डच लोगों ने भी अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा कर रखा था. क्या उन देशों ने कभी सपने में भी सोचा था कि भारत एक शक्ति के रूप में उनके सामने खड़ा होगा.
क्या इस्ट इंडिया कंपनी ने कभी सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब एक भारतीय उस पूरी कंपनी को खरीद लेगा? आज जिस महाशक्ति अमेरिका की सर्वाधिक चर्चा होती है, उस अमेरिका के बड़े भूभाग पर ब्रिटेन, स्पेन और फ्रांस का कब्जा था लेकिन वक्त पलटा और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वही अमेरिका पूरी दुनिया को निर्देशित करने लगा.
लेकिन यह सब एक दिन में नहीं हुआ. अमेरिका ने ब्रिटेन की तरह उपनिवेश नहीं बनाए लेकिन दुनिया के ढेर सारे देशों को अपना पिछलग्गू जरूर बनाया. 19 वीं सदी के अंत में अमेरिका ने दो काम एक साथ शुरू किए. उसने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना शुरू किया और दुनिया के मामलों में टांग अड़ाने लगा. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उसका तेजी से उभार हुआ.
अमेरिका की नीति रही कि जो देश पिछलग्गू न बने वहां सत्ता परिवर्तन करा दिया जाए. अमेरिका के बारे में कहा जाता है कि उसने अभी तक 70 देशों में सत्ता परिवर्तन कराया है. इसके लिए वह साम-दाम-दंड-भेद सभी का इस्तेमाल करता रहा है. उसने दुनिया के 80 देशों में 750 से ज्यादा सैन्य ठिकाने बना रखे हैं. अपनी सैन्य ताकत और आर्थिक मजबूती के कारण वह पूरी दुनिया को दादागीरी दिखाता रहा है.
लेकिन वक्त बदला और इस वक्त अमेरिका अपने इतिहास के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है. चीन में जापान के घुटने टेकने की 80 वीं वर्षगांठ पर चीन ने जिस तरह का सैन्य शक्ति प्रदर्शन किया और रूस के राष्ट्रपति पुतिन व उत्तर कोरिया के खूंखार तानाशाह किम जोंग उन की उपस्थिति में शी जिनपिंग ने जिस तरह से ऐलान किया कि हम किसी से नहीं डरते, वह वास्तव में अमेरिका को खुली चुनौती है.
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका ठीकठाक प्रतिक्रिया देने की हालत में भी नहीं है. उसके बड़बोले राष्ट्रपति बस इतना ही कह पाए कि चीन की आजादी के लिए अमेरिकियों ने अपना बहुत खून बहाया है. वही चीन उनके खिलाफ साजिश रच रहा है. निश्चित रूप से अमेरिका के खिलाफ चीन साजिश रच रहा है लेकिन यह साजिश छिपी हुई तो है नहीं!
जो काम वर्षों से अमेरिका करता रहा है, उसी राह पर जिनपिंग बढ़ रहे हैं. एक और महत्वपूर्ण बात है कि सैन्य परेड को देखने के लिए उस पाकिस्तान का राष्ट्रपति भी शामिल था जिसे ट्रम्प ने इन दिनों गोद में बिठा रखा है. ट्रम्प को तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि चीन की इस हरकत में भारत शामिल नहीं है.
शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन तो गए लेकिन वे सैन्य परेड के लिए नहीं रुके. उन्होंने उत्तर कोरिया के तानाशाह के साथ मंच शेयर नहीं किया. भारत आज भी अपनी अडिग भूमिका में है लेकिन ट्रम्प को भारत की अहमियत समझ में नहीं आ रही है जबकि अमेरिकी मीडिया और समझदार नेता ट्रम्प को लगातार समझा रहे हैं.
लेकिन ट्रम्प तो खुद ही तानाशाह बनने को उतावले हैं. इसे आप अतिशयोक्ति कह सकते हैं लेकिन कई बार यह शंका पैदा होती है कि ट्रम्प कहीं अमेरिका के मिखाइल गोर्बाचेव तो साबित नहीं होंगे? वक्त का क्या ठिकाना, कब पलट जाए?